Friday, 30 April 2021

"दादा नगर खेड़ा" के लोकगीत व् स्तुतिगानों बारे!

पांच बताशे पना का जोड़ा, ले खेड़े पै जाईयो जी,

जिस डाळी म्हारा खेड़ा बैठा, वा डाळी फळ ल्याईयो जी!

यह उस लोकगीत यानि स्तुतिगान का मुखड़ा है जो मैंने मेरी दादी-माँ-काकी-ताई-भाभी मेरे गाम में और बड़-बुआ, बुआ, बहन उनकी ससुरालों में "दादा नगर खेड़े पर धोक-ज्योत लगाने जाते हुए उनके मुखों से बचपन से सुनता आया हूँ| आपने भी अधिकतर ने यही सुना होगा|

परन्तु इतना भर बताना मकसद नहीं, इसको यहां डालने का| ताज्जुब की बात तो यह सुनिए; खासकर "दादा नगर खेड़े" आध्यात्म से जुड़े समाजों की औरतें जरूर ध्यान देवें|

आजकल फंडियों ने "दादा नगर खेड़ा" पर एक आरती घड़ डाली है, थारे-म्हारे घरों की गाढ़ी कमाई को खेड़े के नाम पर लूटने को| और ताज्जुब की बताऊँ उसमें क्या है?

"जय गणेश, जय गणेश देवा" वाली बॉलीवुड फ़िल्मी आरती की तर्ज पर "दादा नगर खेड़े" पर भी आरती बना डाली है| और उसमें यह पांच बताशे नहीं अपितु पेड़े खिला के दादा खेड़ा को खुश कर रहे हैं, उस दादा खेड़ा को जिसमें मूर्ती का ही कोई कांसेप्ट नहीं रखा पुरखों ने| क्योंकि हमारे यहाँ मरने के बाद हर पुरखा पूजनीय हो जाता/जाती है, इसलिए सब पुरखों का एक अरूप यह "खेड़े" होते हैं हमारे| अब आरती की पंक्ति भी पढ़ लीजिये:

चार भुजा सर छत्र विराजे, भोग लगे पेड़ा!
जो छट-छमाही धोकै, प्रसन्न हो खेड़ा!!

बताओ, बताशों की जगह पेड़े चाहियें इनको खाने को; चढ़वाएंगे खेड़े के नाम पर और डाल ले जायेंगे अपनी पंडोकली में| देखा कैसे अपग्रेड करते हैं अपनी लाड़ी जीभ को, बताशे की जगह पेड़े चढ़ाओ इनको| और देखो च्यांदण वाले रविवार के अलावा यह छट और छमाही की धोक किधर से आ गई खेड़े पे?

चलो कोई नी बहुत जल्द, "दादा नगर खेड़ा" की शुद्ध परम्पराओं के तहत वाली आरती ला रहा हूँ| जब आरतियां ही गानी-गवानी होंगी तो शत्प्रतिशत शुद्ध परम्पराओं वाली गवाएंगे| हमें इनसे कोई दिक़्क़त नहीं, यह जो चाहें गवाएं; परन्तु अब आरती हम भी ला रहे हैं|

जागरूक रहिये, जागरूकता ही असली समाजभक्ति है| इसको कायम रखिये और प्रचारित रखिये|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

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