पोस्ट में सलंगित यूट्यूब के गाने, "जिंद ले गया वो दिल का जानी, ये बुत बेजान रह गया" में जिंद का जो मतलब है वही मेरे होमटाउन जिंद यानि जींद का मतलब है|
जिंद यानी जान; शायद ही विश्व में किसी शहर का इतना सुंदर नाम हो!
फुल्किया मिशल (सिख सरदार चौधरी फूल सिंह संधू के नाम से) की तीन सिख रियासतों में से एक रही है जिंद (अन्य दो पटियाला और नाभा रही हैं)| जिंद पंजाबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है जान|
वैसे इत्तेफाक से मेरा नाम भी फूल ही है| मेरे नाम से हमारे इलाके में बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियां हुई हैं| जैसे एक तो यह तीन फुल्किया रियासतें ही, जिनके संस्थापक पुरखे सरदार चौधरी फूल सिंह संधू थे| और दूसरे उत्तर भारत में महिला शिक्षा जागृति-प्रचार-प्रसार के कालजयी मसीहा भगत चौधरी फूल सिंह मलिक, जिनके नाम से भगत फूल सिंह महिला यूनिवर्सिटी, खानपुर, गोहाना है| यह वही यूनिवर्सिटी है जहाँ से मिस वर्ल्ड 2018 मानुषी छिल्लर अपनी एमबीबीएस कर रही हैं|
रियासत बनने से पहले जिंद एक गाम होता था, जिसका "दादा नगर खेड़ा" आज भी सफीदों गेट के पास सब्जी मंडी वाले मोड़ पर है| इसके अलावा मैंने अभी तक किसी अन्य शहर में दादा नगर खेड़ा नहीं देखा और जिंद में दादा नगर खेड़ा का होना प्रमाणित है कि जिंद रियासत बनने से पहले एक गाम था| अठारहवीं सदी के मध्य के अड़गड़े यह रियासत बनी थी|
जिंद की नहर तरफ सब खेत या बाग़-जंगल थे| आज जहाँ जयंती देवी मंदिर व् सीनियर सेकेंडरी स्कूल है वहां भी खेत-बाग़ होते थे| यह सब इस रियासत के बसने के बाद लगभग एक सदी बाद बने हैं|
दड़े वाले मिलिट्री हेडक्वार्टर वाले किले और रानी तालाब के पास वाले दीवानी कचहरी गतिविधियों वाले किलों के बीच पहले कोई बसासत नहीं होती थी| यह सब आज़ादी के बाद बसे बाजार हैं; खासकर हनुमान गली से ले दड़े वाले किले के बीच तो दोनों तरफ बाग़ हुआ करते थे| गली के इधर सिटी थाना होता था और कुछ राजकर्मचारियों की रिहायशें| दुर्भाग्यवश आज के दिन दोनों किलों में से एक भी नहीं है| यह दोनों किले जितने विशाल और बड़े होते थे, पूरे उत्तरी भारत में ऐसे ऊँचे और मजबूत किले नहीं हुए कभी| कचहरी वाला किला1993 में गिरा दिया गया था तो दड़े वाला दूसरा 2002 में|
लेकिन जेहन में दोनों किलों की यादें कैनवास की तरह आज भी तरोताजा हैं| दड़े वाले किले में सरकारी क्वार्टर होते थे और मेरे फूफा जी को वहां क्वार्टर मिला हुआ था| पहली बार इस किले में 4-5 साल का था तब जाना हुआ था| और उसके बाद से 2002 तक (जब इसको ढहाया गया) इस किले से इतना लगाव रहा कि आज भी इसकी मीनारें-दर-दरवाजे और उनकी ऊचाईयां-चौडाईयाँ जेहन में ज्यों-की-त्यों तरोताजा धरी हुई हैं| कोई नक्शा बनाने की कहे तो ज्यों का त्यों आर्किटेक्ट डिजाईन खींच सकता हूँ|
जिंद में जब तक रहा (कक्षा पहली से दसवीं आरएसएस के एसडी स्कूल, जिंद से की है) तो जैसे ही फुरसत लगती, भाई या दोस्त कोई मिलता तो ठीक, नहीं तो अकेला ही इस किले में राउंड लगाने चला आता था| एक-एक मीनार से होते हुए पूरे किले का राउंड लगा, शहर को हर मीनार से देख-निहार के ही उतरता था| फिर भले एक घंटा लगो या दो| ग्यारहवीं में जिंद छूटा तो भी जब भी छुट्टियों में आता तो इस किले की हर दरों-दिवार को छू के आता, शायद बातें भी करता था| सबसे रोचक होता था पूर्व-दक्षिण की दीवार पर खड़ा हो के रानी तालाब से ले अर्बन-एस्टेट वाली पानी की टंकी और इधर सफीदों रोड वाले कुंदन सिनेमा से नजरें होते हुए नहर पार राजा की कोठी तक कैनवास स्टाइल में सब देखना| वह मनमोहक कैनवास देखते हुए फीलिंग होती थी "गुमनाम है कोई बदनाम है कोई" गाने वाली|
काश! उस वक्त इतनी समझ होती और उन किलों को तोड़े जाने से बचा पाता|
खैर आप गाना सुनिए और इस नाम की मधुरता का आनंद लीजिये!
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment