Friday, 30 April 2021

ब्राह्मण समाज की ऐसी बातों से सीखना चाहिए!

अक्सर सर्वसमाज के फंडियों के (सनद रहे सर्वसमाज लिखा है, कोई समाज या जाति विशेष नहीं) विरुद्ध रहने के चलते लोग मुझे यह मान लेते हैं कि यह तो ढोंग-पाखंड-आडंबर आदि के नहीं अपितु किसी जाति विशेष के ही खिलाफ है| अब इसमें या तो दोष ऐसे समाज का जो इन बातों का पर्याय माना जाता हो या समझने वाले की सोच ऐसी, वरना मैं सिर्फ फंड व् फंडी पर आक्रामक रहता हूँ| और इसमें मेरा कोई कसूर नहीं क्योंकि बचपन से मेरे सगे दादा से ले सारे चचेरे दादाओं, पड़दादाओं को फंडियों की रेल बनाते देखा है वो भी पिण्डियों पे लठ-कामची मार-मार के और बस इसीलिए इस फंडी शब्द से तो ऐसा बैर है जैसा बाजी-बाजी भैंस-गाय को लाल लत्ते से होता है| चलिए, आज के विषय पर आते हैं|

समाज में, जाति में, एकता सिर्फ "जाट एकता, गुज्जर एकता, राजपूत एकता दलित एकता, ओबीसी एकता" चिल्लाने भर से नहीं आया करती; उसके लिए ब्राह्मण की तरह आपको वजहें व् मंशाएं भी उतनी ही क्रिस्टल क्लियर होनी चाहियें जितनी इस लेटर में हैं| समाज में आपकी जाति आपकी कौम की एक ब्रांड कैसे कायम रखी जाए उसके लिए ब्राह्मण समाज से सीखिए कि "एक पंडित को थप्पड़ त्रिपुरा में लगता है और दर्द फरीदाबाद वाले को होता है"|
फिर भले ही इनमें आंतरिक कितना ही मतभेद हो; मतभेद इतना है कि महाराष्ट्र का चितपावनी ब्राह्मण, हरयाणा वाले को शूद्र तुल्य यानि ब्राह्मणों में सबसे न्यूतम श्रेणी का समझता है व् इनको हेय की दृष्टि से देखता है| और यही वजह है कि आरएसएस की सरकार होते हुए भी, हरयाणा में रामबिलास शर्मा जैसा सीएम योग्य ब्राह्मण चेहरा होते हुए भी इनको सीएमशिप नहीं दी गई| हालाँकि एक हरयाणवी होने के नाते इस मामले में मैं चितपावनी ब्राह्मण की बजाए हरयाणवी ब्राह्मण के साथ हूँ क्योंकि वह जाट के बाद हरयाणा की सबसे बड़ी कृषक जाति है|
विषय पर रहते हुए; आपकी आंतरिक एकता के, सौहार्द के, ब्रांड के पैमाने-सिद्धांत निःदेह सबके एक जैसे नहीं हो सकते; परन्तु इन बातों को कायम रखने के जो "वैल्यू-सेट" होते हैं, जिसको कि "KINSHIP" भी कहा जाता है; वह अगर आप अपनी अगली पीढ़ियों को पास नहीं कर रहे तो मानें कि आप बोझ हैं खुद पर और कौम-समाज पर भी; फिर चाहे आप कोई राजनेता हों, अभिशासक हों, कृषक हों, मजदूर हों, व्यापारी हों या चाहे धन के अंबार आपके यहाँ लगे हों; आप बिना "KINSHIP" समाज में कोई पहचान नहीं पा सकते| वो कहावत है ना कि, "धन तो वेश्या भी कमा लेती है, परन्तु इज्जत?"; यह कहावत समाज के धनी परन्तु "KINSHIP" से रहित लोगों पर भी इतनी ही सटीक होती है; किसी को इसकी व्याख्या चाहिए कि क्यों, तो फिर कभी बता दूंगा|
अपनी व्यक्तिगत व् प्रोफेशनल जिंदगी के अलावा मैंने मेरी सोशल जिंदगी, 2008 से इसीलिए "उदारवादी जमींदारी" की खाप-खेड़ा-खेत थ्योरी को समर्पित कर रखी है| फरवरी 2016 ने तो इस सोच में इतनी दृढ़ता ला दी कि जैसे यह उद्देश्य मेरा प्राण बन गए हों| निर्धारित है कि सोशल सर्विस के नाम पर कुछ करूँगा तो आजीवन पुरखों की "यौद्धेय" परम्परा को आगे ले कर जाऊंगा और इसको हर समय-बदलाव का फिट बना के ले के जाऊंगा| और जब-जब मुझे इसके लिए प्रेरणा की कमी महसूस होती है या अपने मार्ग की वजहें सुनिश्चितता से क्रॉस-चेक व् कन्फर्म करनी होती हैं तो "ब्राह्मण सभा" के ऐसे पत्रों व् मानकों को सामने रख के खुद को आश्वस्त करता हूँ; हालाँकि मैं खुद को प्रेरित करता हूँ सम्पूर्ण उदारवादी जमींदारी की थ्योरी के लिए जो कि इसके अग्रदूत समाज के साथ-साथ सर्वधर्म व् सर्वसमाज को ले कर चलती आई है| दूसरा ऐसा समाज है बनिया, वह तो ब्राह्मणों से भी महीन तरीके से सुलझा हुआ समाज है|
अत: अपने अंदर इतनी संवेदना, ललकता, दर्द जरूर रखिए कि थप्पड़ त्रिपुरा में लगे तो दर्द फरीदाबाद में हो, फरवरी 2016 का 35 बनाम 1 हरयाणा में हो तो दर्द फ्रांस तक हो या आप दुनियां के जहाँ जिस कोने में बैठे हों, वहां तक हो| और वह दर्द एक चिंगारी बन जानी चाहिए; उसमें हुए गलत-सही को समझ कर अपने समाज-कौम की आगे की राह सुदृढ़ करने हेतु|
काश, ब्राह्मण समाज पंडित हर्षवर्धन पर जब मनोहर लाल खट्टर ने फरसा चलाया था तब भी ऐसा लेटर पीएम को लिखने की हिम्मत कर पाता तो शायद आज हरयाणा का जो बेहाल हुआ पड़ा है यह होने से बच जाता| या ऐसी दरखास जाति देख के दी जाती है, पता नहीं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक



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