हवन इतना कमजोर कब से हो गया कि उसको धूणी की पद्दी (पीठ) बिठाना पड़ रहा है?:
जिस बेहताशा से रोहतक जिले में धूणी के ऊपर हवन को बैठाया जा रहा है, लगता है हवन को जिन्दा रखने हेतु उसको धूणी की पद्दी बिठाया जा रहा हो? कहीं गए जमानों में हवन को, धूणी से ही तो नहीं निकाला गया था? यानि धूणी का पॉलिशड वर्जन बना के हवन नाम धर दिया हो? अन्यथा यह किस बात की बेचैनी है कि दिखती-दिखाती धूणी को हवन प्रचारित करवा रहे हैं? क्या हवन का अस्तित्व इतना सस्ता व् कमजोर है कि उसको धूणी पे ढंका जा रहा है? क्योंकि जिन अवस्थाओं में यह हो रहा है उसमें तो यही कहा जाता है कि भले वक्तों में गर्रा के अलग हुई या अलग की गई चीज, भीड़ में पड़ी जिससे अलग हुई थी या की गई थी; वापिस उसी की पद्दी बैठने की कोशिश करती है या बैठाई जाती है|
धूणी व् हवन में अंतर् समझें:
धूणी: जानवरों व् मौसमीय बिमारियों के कीटाणुओं को घर-ढोर के वातावरण से खत्म करने हेतु घर-घर घूम के दी जाती है| इसमें आग की बेदी नहीं जलाई जाती, सिर्फ सुलगाई जाती है ताकि अधिकतम धुआं बन सके| यह तो डांगरों के ठान के कोने में दो-चार गोस्से लगा के भी सुलगा दी जाती है|
हवन: मंत्रोचार का लेप लगा के, स्थाई कुंड में आग जला के (अंतर् नोट करें, धूणी में धुआं चाहिए, आग नहीं और धुंए से ही इसका नाम धूणी पड़ा है) एक क्रिया-अनुष्ठान किया जाता है, वह भी खुले वातावरण में; घर के अंदर हो तो खिड़की-दरवाजे खुले रख के|
तो इन परिभाषाओं के हिसाब से समझा जा सकता है कि रोहतक में गामों में जो दी जा रही है वह धूणी है, हवन नहीं|
धूणी को धूणी रहने दो, उसको हवन का नाम मत दो!
रिवाज को रिवाज रखो, उसको पाखंड का नाम मत दो|
धूणी भी एक रिवाज है, हवन भी एक रिवाज है; इनको मिक्स मत करो| मिक्सिंग को बुजुर्गों ने पाखंड कहा है इंग्लिस में बोले तो "manipulation"| जरूरत क्या पड़ी है जो सदियों से गामों में दी जाने वाली धूणी को हवन बता के प्रचारित किया जा रहा है? हवन की अपनी मर्याद है, उसको धूणी का सहारा लेने की क्या जरूरत? या कहीं किसी को कोई भय सता रहा है?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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