पाड़ ल्यो पूंझड़ मेरा, वो सनकी लेखक/फंडी जो मात्र शब्दों के मिलाप के आधार इतिहासकार बने फिरते हैं| जो यह समझने को ही रेडी नहीं कि इतिहास सिर्फ शब्दों के मिलाप के आधार पर नहीं लिखे जाते वरन जेनेटिक्स, शिलालेख, आर्कियोलॉजिकल दस्तावेज भी साथ में रखने होते हैं|
इससे पहले नौसिखिया ज्ञानी, इंडवा / इंडि के तार कहीं यूरोप-थाईलैंड से जोड़ने निकल पड़े; जनता को बता दूँ कि इंडवा / इंडि म्हारे हरयाणवी कल्चर व् भाषा में सर पे मटके या भरोटे रखने के लिए कपड़े-जूट आदि के बनने वाले गद्देदार वृताकार को कहते हैं|
अत: खबरदार जो आज के बाद किसी ने "इंडिया" शब्द को विदेशी कहा तो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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