Thursday, 8 July 2021

साम (चाटुकारिता, प्रसंशा), दाम (लालच), भेद (भय, नफरत), दंड (वर्णवाद)!

फंडी तुम्हारे बीच साम (चाटुकारिता, प्रसंशा) के साथ उतरता है, तुम में दाम (लालच) पैदा करता है, इन दोनों से उसको तुम्हारे बीच रह के खेलने का मौका मिल जाता है व् वह अपने अल्टीमेट गोल भेद (भय, नफरत) व् दंड (वर्णवाद) पर इस तरह उतर आता है कि तुम्हारा सम्पूर्ण (कल्चर-सोशलिज्म-आध्यात्म) सर्वनाश होने तक तुम्हें सोधी ही नहीं आने देता| 


साम के वक्त वह इसमें सबसे ज्यादा अपनी औरतों का प्रयोग करता है, उनको तुम्हारे यहाँ नौकरानी तक बना के भेजता है| जो बड़े-ठाड्डे जमींदार रहे हैं उनके यहाँ असल तो आज भी अन्यथा एक-दो पीढ़ी पीछे जा के देखोगे तो इनकी लुगाइयां चूल्हा-चौका (रोटी-टूका-बर्तन-बुहारी) करती थी| 


दाम का मतलब यह मत मानों कि यह तुम्हें कोई रुपया-पैसा दे के रिझाते हैं; नहीं अपितु तुम्हें पदों-ओहदों-चाहतों-आदतों के लालच पलवाते हैं| 


भेद का मतलब तुम्हारे घरों-समाजों के आपसी मनमुटाव साम-दाम के रास्ते तुम्हारे भीतर घुस के देखते हैं और फिर निर्धारित करते हैं कि 35 बनाम 1 किस एरिया में तो जाट के खिलाफ किया जाए, किसमें ओबीसी यादव आदि के खिलाफ किया जाए, किसमें दलित के खिलाफ किया जाए व् कहाँ मुस्लिम या सिख के खिलाफ किया जाए| 


दंड, अब जो चल रहा है इंडिया में वह यह स्तर आया हुआ है| यानि वर्णवाद को लागू करने की आखिर परन्तु सबसे जोरदार कोशिश|   


इस कोशिश का विशेलषण: 


मोदी की कैबिनेट के नए विस्तार की परिपाटी में किसान आंदोलन के अगुआ वर्गों के नुमाइंदों (जैसे कि उत्तर-पश्चिमी भारत से कोई भी सिख,मुस्लिम, दलित, जाट, रोड़ व् गुज्जर नहीं लिया गया; ना लोकसभा के रास्ते से ना राजयसभा के रास्ते से) को सिरे से दरकिनार किया जाएगा यह लोगों को अंदेशा रहा होगा, मुझे तो पूर्ण विश्वास था| ख़ाक राजनीति नहीं ये इनकी, कूटनैतिक दबाव व् अन्य बिरादरियों को यह संदेश देने की कि हमारे तलवे चाटोगे व् मनमाने कानून मानोगे (चाहे उनको ढोने में तुम्हारी कमर टूट जाए) तो तुम हमारे अन्यथा 'तुम नहीं लागते हमारे तलाकी भी'| इनकी "हिन्दू एकता व् बराबरी" का नारा यही है कि, "वर्णवादी व्यवस्था के तहत हमारे आगे झुक के चलोगे तो तुम इस नारे में फिट हो अन्यथा शिट हो"| 


यह तो है इनका सोचना| आम समझदार किसान-मजदूर तर्कशीलता से सोचेगा तो इनकी हालत कुछ यूं पाएगा: 


बुद्धि की धार खत्म कर दी है किसान आंदोलन ने तथाकथित चाणक्यों की! और अगर फ़ोक्के नुमाइंदे कैबिनेट में शामिल कर लिए जाने से कोई यह सोचता हो कि उनके हक़-हलूल की रक्षा हो गई तो इससे बड़ा पिछड़ापन कुछ नहीं| और इस बात को हर वह व्यक्ति समझता है जो अपने हक-हलूल को लेकर संजीदा है, वह चाहे जिस किसी वर्ग-वर्ण से आता हो वह इनसे कतई प्रभावित नहीं होने वाला क्योंकि इनके दंड (वर्णवाद) की नीतियां क्या ओबीसी, क्या दलित, क्या किसान, क्या मजदूर, क्या छोटा व् मंझला व्यापारी सबकी जेब व् नौकरी दोनों पर डाका डाल रही हैं| 


किसान आंदोलन करने वाले वर्गों को ही कल के हीरो लिखा जाएगा, फिर चाहे उसमें किसान शामिल हो, मजदूर हो, दलित हो, ओबीसी हो या व्यापारी हो| क्योंकि अब यह लड़ाई फंडियों के लिए जहाँ सत्ता व् बड़े व्यापारियों का धंधा बचाने की है वहीँ यह बाकी सब के फसल-नस्ल-असल बचाने की लड़ाई है|    


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

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