अगर सामाजिक व् आर्थिक उन्नति चाहिए तो अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा को साइड में रखना ही होगा| जिनको इनको साइड में रखना किसी धर्म के खतरे में आ जाने जैसा लगता हो तो वह "सन 1789 की फ़्रांसिसी क्रांति" व् 15वीं सदी की "यूरोप की ब्लैक प्लेग त्राशदी" पढ़ लें| इन दोनों घटनाओं के बाद भी यहाँ ईसाई धर्म ही है, कहीं कोई धर्म खत्म नहीं हुआ| हाँ, जो खत्म हुआ वह हुआ अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा; जिससे लोग बाहर आये व् सामाजिक व् आर्थिक तौर पर आज़ाद बने|
इंडिया के खापलैंड क्षेत्र में लोग खाप-खेड़े-खेत की फिलोसॉफी के चलते सदियों से यह आज़ादी भोगते आ रहे थे; बस अभी मात्र डेड-दो दशक में जब से अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा की बेपनाह डॉज पब्लिक को दी गई तब से यहाँ भी लोग अपने सांझे मुद्दे भूल बस एक दूसरे में दुश्मन देखने लगे हैं व् कहीं 35 बनाम 1 तो कहीं ओबीसी बनाम फलाना आदि में उलझे चल रहे हैं|
5 सितंबर की मुज़फ्फरनगर महापंचायत से इस तथ्य का ऐलान हो जाना चाहिए कि सामाजिक व् आर्थिक आज़ादी की लड़ाईयों से ना कभी कोई धर्म मिटा ना उसपे खतरा हुआ परन्तु जो अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा में डूब भीरु-कायर बने रहे वह अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा बढ़ाने वालों द्वारा लूटे जाते रहे, मानसिक गुलाम व् बंधुआ बनाए जाते रहे| अत: स्पष्ट कहा जाए कि अन्धविश्वास व् अंधश्रद्धा से बाहर आए बिना आर्थिक व् सामाजिक आज़ादी सम्भव नहीं; उसकी पुरखों वाली निरंतरता सम्भव नहीं|
एक संदेश यह भी दिया जाए कि अहिंसा को सबसे ज्यादा सिरोधार्य रखने वाला, जीवों-कीटों के प्रति इतना संजीदा धर्म जो जीव ना मरें इसलिए मुंह पर पट्टी बाँध के चलता है; जुबान से मानसिक हिंसा ना हो इसलिए ख़ामोशी से अनवरत सिर्फ काम करता है; आखिर उसी के धर्म के अडानी-शाह जैसे लोग व्यापार के नाम पर सविंधान से ले कानूनों तक के जरिए उल-जुलूल कानून पास करवा देश-समाज के किसानों-मजदूरों की आवाज की अनदेखी कर मानसिक हिंसा क्यों कर रहे हैं? क्या हुआ आपके धर्म की शिक्षाओं का जिसमें "अहिंसा" हर हाल में पालनी होती है? यहाँ जिस धर्म की बात हो रही है आप समझ ही रहे होंगे| आखिर क्यों इतनी एथिकल वैल्यूज पालने वाले धर्म के लोग भी अनएथिकल तरीकों से देश में ढाँचे से ले व्यापार को बिगाड़ रहे हैं?
क्या इससे अच्छा तो उदारवादी जमींदारों का एथिकल वैल्यू सिस्टम व् एथिकल कैपिटलिज्म नहीं है; जो खाप-खेड़े-खेत की किनशिप पे फलता-फूलता आया; जिसमें कमियां तो हो सकती हैं परन्तु इस स्तर की अमानवता व् अनदेखी नहीं कि अपने ही धर्म-देश के लोग 9 महीने से सड़कों पर बैठे हैं व् किसी को परवाह ही नहीं? क्या विदेशी आक्रांता इनसे भी निर्दयी रहे होंगे?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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