तो फिर यह गौतम अडानी व् अमित शाह को इसकी शिक्षा नहीं दी गई या यह दोनों जैन धर्म की अवज्ञा कर चुके हैं? सुनी है मोदी भी छुपे रूप से जैनी ही हैं (हिन्दुओं का मूर्ख बनाने को इस मुखौटे में छुपा बैठा बताया अन्यथा चतुर्मास के व्रत भी रखता है; जो जैन समाज का "रोजे" रखने जितना पक्का नियम है)|
एक तरफ तो जैन धर्म की इतनी विशालकाय उदारता कि सुनते हैं जीवों-कीटों पर जुल्म ना हो इसलिए यह खेती नहीं करते, श्वास के साथ मुंह-नाक के जरिये कोई कीट भीतर ना चला जावे व् जुबान से कोई वाक्-हिंसा ना हो जावे इसलिए मुंह पर पट्टी रखते हैं| यानि संदेश है कि शारीरिक व् मानसिक किसी भी प्रकार की हिंसा को जैन धर्म पनाह नहीं देता|
परन्तु दूसरी तरफ जैन धर्म से आने वाले अडानी-शाह ऐसी मानसिक हिंसा करते ही जा रहे हैं कि ना 9 महीनें से बैठे किसानों की सुन रहे हैं वरन और नए जनविरोधी, किसान-मजदूर विरोधी तानाशाही के कानून पास करवाने में वर्णवादी मानसिकता वाले फंडियों के साथ ताल ठोंके हुए हैं?
क्या इससे जैन धर्म की आभा आने वाले वक्तों में धूमिल नहीं होगी? जानते हैं कि आपके तरीकों से बेपनाह धन जोड़ा जा सकता है; परन्तु उन तरीकों में मानसिक हिंसा, मानसिक तानाशाही कब से शामिल होने लगी; जो कि अनएथिकल कैपिटलिज्म का धोतक है? हम तो आपकी शिक्षाओं व् सिद्धांतों को खाप-खेड़े-खेत वालों की तरह एथिकल कैपिटलिज्म वाले मानते थे|
विशेष: यह मेरी जैन धर्म के बुद्धिजीवियों से अपील है, आपका अनादर नहीं| हो सके तो कृपया इन महानुभावों को रुकवावें!
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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