लेख का निचोड़: खापें लोकतांत्रित प्रणाली आधारित होती हैं गणतांत्रिक नहीं; जैसा कि इनको गणों से लगभग हर इतिहासकार जोड़ के लिखता है|
आइए इसको किसी भी खाप-पंचायत के "आदर्श पारम्परिक आयोजन व् समापन" से समझिए:
1 - दो पक्षों का झगड़ा हुआ, एक ने खाप को चिट्ठी लिखी, खाप ने चिट्ठी पे दूसरी पार्टी को आगाह किया व् चिट्ठी लिख पंचायत का आह्वान किया|
2 - पंचायत इक्ट्ठी हुई, एक पंचायत संचालक (coordinator) चुना गया, उसको preside करने वाला अध्यक्ष चुना गया|
3 - फिर मामले के हिसाब से सामाजिक एक्सपर्ट लोगों की 5 सदस्यों की सोशल जूरी (social jury) यानि पंचायत चुनी गई|
4 - फिर सभा में उपस्थित जनसभा से पाँचों पंचों बारे सहमति ली गई, एक भी सदस्य पे एक भी ऑब्जेक्शन हुई तो उस सदस्य को जूरी से निकाल दूसरा लिया जाता है|
5 - संचालक बारी-बारी दोनों पक्षों की बातें व् दलीलें सभा को सुनवाता है; जूरी दलीलें नोट करती जाती है| कई केसों में संचालक व् अध्यक्ष एक ही पाया जाता है|
6 - इसके बाद 5 सदस्यों की जूरी एकांत में जाती है व् आपसी मंत्रणा से केस का फैसला निर्धारित करती है|
7 - preside कर रहा व्यक्ति फैसला सुनाता है (ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका-यूरोप-ऑस्ट्रेलिया आदि में जज, सोशल जूरी का फैसला सुनाता है; सनद रहे विकसित देशों में सिविल मुकदमों यानि जिसमें दोनों पार्टी समाज से ही हों) में जज फैसले नहीं करते) व् उपस्थित सभा की सहमति असहमति मांगता है|
8 - सहमति हुई तो केस बंद| एक भी ऑब्जेक्शन हुई तो पंचायत ऑब्जेक्शन में आए बिंदुओं के मद्देनजर केस को फिर से स्टडी करती है| यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक सारी ओब्जेक्शन्स हल ना कर दी जाएं|
अब आते हैं गणतंत्र व् लोकतंत्र की परिभाषा पर:
गणतंत्र: जिसमें मेजोरिटी के रुझान के हिसाब से फैसला होता है व् माइनॉरिटी को दरकिनार किया जाता है|
लोकतंत्र: जिसमें समाज के एक मनुष्य को उसकी न्यूनतम इकाई मान के व् माइनॉरिटी समूहों के मानवीय अधिकारों की मेजोरिटी के समान रक्षा करते हुए; मेजोरिटी से फैसला लिया जाता है| यानि एक भी ऑब्जेक्शन होगी तो उसको सुना जाएगा; गणतंत्र की तरह मेजोरिटी का हवाला दे दरकिनार नहीं किया जाएगा| जैसे कि ऊपर बताया हर खाप-पंचायत के "आदर्श पारम्परिक आयोजन व् समापन" का तरीका|
लेख का उद्देश्य: खापों को लगभग हर इतिहासकार ने यह बारीक़ पहलु नोट व् address किये बिना गण व् गणतंत्र से जोड़ा है| जबकि व्यवहारिक तौर पर देखा जाए तो खाप का हर एक गाम उन्मुक्त स्वछंद लोकतंत्र होता है, गणतंत्र नहीं| गणतंत्र होते हमारे यहाँ तो पूरे भारत में गरीब-अमीर का सबसे कम अंतर खापलैंड पर नहीं होता|
ताऊ देवीलाल ने शायद इस व्यवस्था को सही तरीके से समझा था इसीलिए वह यह नारा देते थे कि, "लोकराज, लोकलाज से चलता है"| लोकराज यानि लोकतंत्र|
गणतंत्र, भीड़तंत्र होता है, जबकि लोकतंत्र सभ्य कुलीन समाज की निशानी| आजकल भीड़तंत्र कौन है, बच्चे-बच्चे को भान है; तो अपनी वास्तविक व् व्यवहारिक स्वभाव व् भावना को पहचान के ही इन लोगों से खुद को जोड़ें| वरना पता लगा तुम थे तो लोकतान्त्रिक परन्तु फंडियों के तुम्हारे ऊपर लगाए गणतंत्र के लेप में ही भटकते रहे ताउम्र|
नोट: खाप सिस्टम में खामियां हो सकती हैं, परन्तु पूरी की पूरी थ्योरी अपना मूल नहीं बदल सकती| तमाम ऐसी पंचायतें जो ऊपर लिखित प्रोसेस फॉलो करते हुए नहीं होती; वह निसंदेह ही खाप पंचायत नहीं होती|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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