वो यानि फंडी| एक नहीं कई वक्ताओं ने आज इस बात को दोहराया|
बात अगर हरयाणे की की जाए तो 2014 में आते ही इन्होनें उत्तरी भारत की सबसे बड़ी किसान बिरादरी से एक-एक करके कई किसान बिरादरियां दूर करी या आपस में खाई खड़ी करी; जिसकी कि इनकी कोशिशें आज भी जारी हैं:
1 - सिलसिला शुरू हुआ सैनी बिरादरी व् जाट बिरादरी में दूरियां करवाने से; हालाँकि अब आपस में वापिस भी बहुत जुड़ चुके हैं, शायद किसान आंदोलन की बदौलत|
2 - धीरे-धीरे बढ़ता हुआ यह सिलसिला यह ले गए गुज्जर व् यादव बिरादरियों में ट्राई करवाने पे; यहाँ भी इनको आंशिक सफलताएं मिली परन्तु अभी दूरियां घटती देखी जा रही हैं|
3 - इनके बाद विशाल जूड के जरिए इन्होनें रोड बिरादरी पर ट्राई किया, परन्तु टिकैत साहब ने नीरज चोपड़ा के ओलिंपिक में गोल्ड जीतने पर, नीरज के गाम जा नीरज के पिता जी व् दादा जी को अपने किसानी भाईचारे वाली बधाई दे; फंडियों की इस चाल पर भी काफी हद तक ठंडा पानी डालने में कामयाबी पाई|
4 - अभी मुज़फ्फरनगर महापंचायत से सिर्फ 2 दिन पहले ही इन्होनें "कम्बोज किसान" बिरादरी के नाम से कोई सम्मेलन करवाया व् उनको भी जाटों से तोड़ने हेतु वहां जहर उगलवाए| आशा है कि मुज़फ्फरनगर महापंचायत उन चंद जहर उगलने वाले साथियों को "असल हितैषी कौन समाज का" का व्यापक आयाम दिखाने में मदद करेगी|
इससे पहले मुज़फ्फरनगर 2013 के दंगे हों या 26 जनवरी 2021 की लाल किला घटना के जरिए सिख व् हिन्दू समाज फूट डालने की कुचेष्टा; यहाँ भी इनकी चालें कामयाब ना होने देना; इस किसान आंदोलन की बहुत बड़ी कामयाबी रही|
और आज तो मुज़फ्फरनगर में जैसे उत्तरी भारत के किसानों की न्यूनतम 115 सालों (सन 1906 से ले सन 2021) की सरदार अजित सिंह से शुरू हो सर छोटूराम-सर फ़ज़्ले हुसैन की जोड़ी से होते हुए चौधरी चरण सिंह व् सरदार प्रताप सिंह कैरों के वक्तों से होती हुई बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के वक्त "अल्लाह-हू-अकबर, हर-हर महादेव" के नारों सवार होती आई यह लिगेसी सरदार बलबीर सिंह राजेवाल, चौधरी राकेश टिकैत, सरदार गुरनाम सिंह चढूनी व् पूरे किसान संयुक्त मोर्चे की अथक लग्न-मेहनत ने वापिस "अल्लाह-हू-अकबर, हर-हर महादेव" व् "जो बोले सो निहाल, शत श्री अकाल" के नारों पर चढ़ा दी है|
परन्तु हरयाणा में अभी भी ख़ास ध्यान देने की जरूरत है| फंडी को पता लग चुका है कि उनकी असलियत के ढोल फट चुके हैं; इसलिए वह आनन्-फानन में अपने काइयाँपन के नीचतम स्तर पर चलते हुए ना सिर्फ नई-नई किसान बिरादरियों को हरयाणा की सबसे बड़ी किसान बिरादरी से छिंटकने के हथकंडे चल रहे हैं अपितु अडानी-अम्बानी के प्रोजेक्ट्स भी बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ा रहे हैं; जिसकी कि एक बानगी है पिछले हफ्ते हरयाणा विधानसभा में पास हुआ नया भूमि अधिग्रहण बिल|
अत: हरयाणवियों को "किसान संयुक्त मोर्चा" के साथ-साथ अपने प्रदेश में भी तीन और फ्रंट्स पर लड़ाई लड़नी है| एक फंडियों का यह किसानी जातियों को ना सिर्फ आपस में छींटकाने का फ्रंट अपितु ओबीसी व् दलित बिरादरी को भी सच्चे-झूठे मुगालतों में डाल इनको भी आपसे दूर रखने की कवायद का अंत (जहाँ-जहाँ जो-जो हथकंडा फंडी रहे हैं, वहीँ उसकी काट ढूंढ के आपसे तोड़ी जा सकने वाली कम्युनिटी को वापिस जोड़िए; इन फंडियों के साथ "तू डाल-डाल, मैं पात-पात" वाली कर दीजिए); दूसरा नया आया भूमि अधिग्रहण बिल (इस पर एक खाप पंचायत हो चुकी है रोहतक में; और की प्लानिंग चल रही है जो बड़े स्तर पर कामयाब कर हरयाणा सरकार को तगड़ी भड़क बिठवानी है व् कोर्ट के जरिए इस कानून पर न्यूनतम स्टे ले; इसको वापिस करवाने की मुहीम उठानी होगी) व् तीसरा इन फंडियों की छद्म manipulation व् polarisation की सोच को धरातल पर उतारने का काम|
बहुत हो गया है, आज के यूथ पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है| गाम-गाम पंचायतें कीजिए व् इस फंडियों के फैलाए इस विष का मलियामेट कीजिए| इस विष को वापिस इन फंडियों को ही पिलाना शुरू कीजिये; तभी आगे राहें आसान हो सकेंगी| क्योंकि इनकी सोच को नकेल डाले बिना; शक्तिप्रदर्शन भी इतने प्रभावी व् कारगर नहीं होंगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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