Saturday, 4 September 2021

कई बार लोग पूछते हैं कि आरएसएस लोकल स्तर पर लोकल लोगों की मदद से लोकल लोगों के चंदे से ही इवेंट्स करना कहाँ से सीखी?

वह लोग खापों/मिशलों व् खाप-मिशाल कल्चर से ही निकली विभिन्न किसान यूनियनों के द्वारा कल मुज़फ्फरनगर महापंचायत में लगने वाले 500 से ज्यादा लंगरों की व्यवस्था से जान लें| कोई-कोई इन लंगरों की संख्या 1000 तक पहुँचने आशंका जता रहा है| यह ऐसे ही लंगर 1925 से पहले भी लगते थे, जब आरएसएस नहीं थी| तब खापें व् मिशल यह करती थी; इन्हीं खापों की यह लोकल स्तर पर इवेंट मैनेजमेंट की कार्यप्रणाली आरएसएस ने कॉपी की है|


बस एक चीज, जिसमें आरएसएस, खापों से आगे निकल गई है वह है अपने-आप को गैर-राजनैतिक रख के; बाहर से अपना राजनैतिक दल पालना जैसे कि बीजेपी| यानि आरएसएस सीधा-सीधा सत्ता की राजनीति में शामिल नहीं होती|

और खापों ने अपनी यही लकीर यानि गैर-राजनैतिक रहने की परिपाटी जब से छोड़ी है; तब से खापों की सांझी पावर व् प्रभाव घटा है| अन्यथा पहले विरला ही कोई खाप चौधरी, सीधा राजनीति में जाता था और जाता भी था तो या तो सीधा एमएलसी बनता था अन्यथा तुरंत राजनीति छोड़ वापिस खापों में सामाजिक बन काम करता था|

जिस दिन फिर से खापों ने अपनी यह कमी दुरुस्त कर ली; उसी दिन से इनका प्रभाव पुरखों जैसा हो उभरेगा| हालाँकि "किसान आंदोलन" ने फिर से खापों को उभारा दिया है; यही वह उभारा है जहाँ से खापें पुरखों की लाइन ले जावें तो वापिस इतिहास बनेंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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