Thursday 7 October 2021

जैसे तुम्हारे पुरखे 1875 में थे, वैसे बन जाओ; अगर किसान आंदोलन का सुगम व् जल्द हल चाहो!

यह तुम्हें "जाट जी", "जाट देवता", "किसान राजाओं का राजा होता है" तभी तक लिखेंगे जब इनको लगेगा कि तुम तुम्हारे सन 1870-1875-1880 वाले जमानों वाले पुरखों की भांति स्वछंद हो, निर्भीक हो, पाखंड-मुक्त हो, मूर्ती-पूजा रहित हो| जब-जब इसके विपरीत अवस्था होगी, यह तुम्हारी यही दशा करेंगे, तुमको यही ट्रीटमेंट देंगे| जितना जल्दी समझ जाओ, उतना बेहतर|

आज इनके ढोंग-पाखंड-आडंबर-मिथक-कथाओं से बाहर आ जाओ; कल ही 3 कृषि बिलों पर कार्यवाही पाओ| वरना तो तुमको यह अपनी मिथक कथा-कहानियों के जरिए घेर कर इनके उस कटखड में ले आए हैं, जिसमें फंसे को यह शूद्र कहते हैं| और इनके अनुसार शूद्र का कमाया बलात हर लेना, उसको मार देना, उसकी औरतों को लूट लेना; इनके वर्णवादी सिद्धांतों में अपराध नहीं अपितु इनका अधिकार लिखते-बोलते हैं ये| और यह अधिकार तुमने खुद ही रिफल-रिफल में गंवा दिया है, खुद को पुरखों की लाइन से उतार; इस कटखड में पैर में फंसा कर| अपने पुरखों की भांति अगर आधे भी स्वछंद हो जाओ तो "तेल देखो और तेल की धार देखो"| पुरखों की तरह राजाई अंदाज, देवताई आभा व् जाट जी वाले तेवर तज के फिर तो रहे इनके पाखंडों के वशीभूत हो शूद्र बने तो किधर से सुने लेंगे इतनी सहजता से यह थारी बात?
लखीमपुर खेरी में मरने वाले सिख बेशक हों; परन्तु अल्पसंख्यक होने के चलते यह इनको भी इंसानों में नहीं गिनते| यह जो कहते हैं ना कि फलां धर्म वाले इतने प्रतिशत हुए तो तुम्हें दबा लेंगे; दरअसल यह तुमको खुद के बारे बता रहे होते हैं, और दबाए जाने का प्रैक्टिकल दिल्ली बॉर्डर से फैलता-फैलता पिछले 10 महीने में लखीमपुर पहुँच चुका|
1870-1875-1880 वाले थारे पुरखे 99% ग्रामीण थे, आज की अपेक्षा अक्षरी ज्ञान में थारे तैं कई गुणा कम पढ़े-लिखे थे; परन्तु फिर भी इनसे "जाट जी, "जाट देवते" व् "किसान राजाओं का राजा होता है" लिखवा लिया करते थे? किस बात के दम पर, विचारो जरा! आज वही चाहिए है!
जय यौधेय! - फूल मलिक

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