Sunday 3 October 2021

स्वघोषित "कंधे से ऊपर मजबूतों" की मजबूती तोड़ता किसान आंदोलन!

मनोहर लाल खट्टर का 2015 का गोहाणा में दिया वह ब्यान तो याद होगा ही आपको जिसमें महाशय ने तंज कसा था कि, "हरयाणवी कंधे से नीचे मजबूत व् ऊपर कमजोर होता है"| इसका साफ़ संदेश था कि हरयाणवी लठैत होते हैं, झगड़ालू होते हैं|

बस क्या खट्टर बाबू? हरयाणवी किसानों ने अपनी अति-उदारवादिता (जिसको तुम कंधे से ऊपर की कमजोरी कहते हो) वह थोड़ी सी दुरुस्त कर बैलेंस-लाइन (fair and affirm) पर क्या कर ली; चले खुद लठैत बनने?
ऐसा है थोड़ा संभल के और अपना इतिहास खंगाल के चलियो| तेरे जैसे जब-जब लठ पर आए हैं, हमेशा पलायन ही झेले हैं|
बाकी यह हरयाणा है प्रधान, यहाँ एक कहावत चलती है कि, "जाट को सताया; तो ब्राह्मण भी पछताया" और "जाट के संग आया; तो ब्राह्मण, महर्षि कुहाया"| उदाहरण: पानीपत की तीसरी लड़ाई में ब्राह्मण सदाशिवराव पेशवा की हार सिर्फ इस बात पर हो गई थी कि उसने जाट महाराजा सूरजमल का अपमान कर पानीपत जीतना चाहा था; बाद में उसी पानीपत में घुटने टेक रोया था| तो इस कौम की तो इतनी बिसात है कि इसको किसी को लठ भी मारने की जरूरत कोनी, बस अपनी मेहर की नजर हटा ले उस पर से, तो वह खुद ही गर्त में बैठता चला जाए| और एक ब्राह्मण मूलशंकर तिवारी ने जाटों को सराहा "जाट जी" व् "किसान राजाओं का राजा होता है" लिखा तो जाटों ने इतना सरमाथे लगाया कि उत्तर भारत का सबसे बड़ा महर्षि कुहाता है, आज तक भी|
अब क्या चाहते हो कि अपनी उदारवादिता थोड़ी और टाइट कर दें, व तेरे जैसों की दुकानों से सामान खरीदना छोड़ देवें? सीएम तो भतेरे बने, परन्तु इतना बड़ा गंवार नहीं देखा जिसको जिस पद पर बैठा है उसकी सवैंधानिक मर्यादा का भी भान नहीं| वीडियो में बोलता हुआ ऐसे लग रहा है जैसे कोई सड़कछाप मवाली; यही ट्रेनिंग देती है क्या आरएसएस?
और इस देश में जैसे सविंधान-कानून तो मर ही चुका है, बिक ही चुका है जो अभी तक खटटर की उस वायरल वीडियो का संज्ञान नहीं लिया गया| जरा सोच के देखो जो होती यह वीडियो किसी साधारण जाट की भी (किसी सीएम जाट की तो दूर की बात) ओहो क्या रुदाली विलाप करना था; खट्टर जैसों की जमात से ले सारे मीडिया ने|
बता कर लो बात, जाट के बराबर "पाणी कान के हाथ धोने बैठे है"; न्यूं नी बेरा एक जाट म्हास के ब्यांत जितने बख्त तैं भी लम्बी पुगा दिया करै| वो चुटकुला तो सुना होगा जाट व् लाला वाला; जिसमें दोनों की ठन गई थी कि, "पाणी कान के हाथ धो के पहले कौन उठेगा?" तो खट्टर बाबू इतना जल्दी मत उकतावै, ईबे तो 10 महीने ही हुए हैं, "पाणी कान के हाथ धोने के कम्पटीशन को चलते हुए"|
जय यौधेय! - फूल मलिक

No comments: