Saturday 9 October 2021

 पुरखा या बाप बदलना कोई गुड्डे-गुड़ियों का खेल है क्या?:

20-25 साल पहले के जाट इतिहास लेखकों की किताबें उठा के देखो तो हर दूसरे ने जाट का जन्म शिवजी की जटाओं (हरयाणवी शब्द इंडी से जैसे कोई इंडिया शब्द को हिंदी या हरयाणवी का क्लेम कर दे; यह तो स्टैण्डर्ड हैं इन इतिहास लेखकों के) से लिखा हुआ है| 2014 में जब से यह सरकार आई है किसी ने जाटों को रामायण के रघुवंश (वास्तव में श्रीन्गु ऋषि के दत्तक पुत्र) के वंशज बताना शुरू कर दिया है किसी ने महाभारत के चन्द्रवंश (वास्तव में व्यास ऋषि के दत्तक पुत्र) से तो किसी ने यदुवंश से| एक बैरी तो 26 सितंबर 2021 की मुज़फ्फरनगर रैली में कश्यप ऋषि से ही जोड़ रहा था|
भाई, अगर माइथोलॉजी में ही बाप ढूंढने हैं तो शिवजी पे ही टिके रहो ना? कम-से-कम ब्रह्मा-विष्णु-महेश की तिगड़ी में शिवजी के डायरेक्ट वंश तो कहला सकते हो? ब्रह्मा, ब्राह्मणों का; विष्णु, बनियों का और शिवजी, जाटों का|
अब माइथोलॉजी यही तो कहती है कि ब्रह्मा-विष्णु से जब संसार नहीं संभलता तो शिवजी को तीसरी आँख खोलनी पड़ती है| और शिवजी बैठा है पिछले 10 महीने से दिल्ली के बॉर्डर्स पर तीसरी आँख खोले व् इन ब्रह्मा-विष्णुओं के वंशों को ठीक करने कि या तो यह अपना हगा हुआ संगवा लो नहीं तो शिवजी का तांडव देख, बुगटे भर-भर उल्टा खाओगे इसको यानि 3 काले कृषि कानूनों को|
कोई कहेगा कि जी राम, पाण्डु-धृतराष्ट्र, कृष्ण तो शिवजी से नीचे की पीढ़ी के हैं तो यह भी थारे ही हुए; अच्छा ऐसा है तो फिर इनको ऊपर शिवजी से जोड़ के कहाँ दिखा रहे हो? थम तो इनको कश्यप ऋषि के जरिये ब्रह्मा से जोड़ रहे हो?
और इसीलिए जरूरी है कि इस माइथोलॉजी से या तो जुडो मत अन्यथा इतनी हंसी भी मत पिटवाओ कि 20-25 साल पहले तक शिवजी थारा बाप था और 2014 के बाद से शिवजी को ही छोड़ बाकी सारी माइथोलॉजी थारी माँ-बाप बनी फिरै| इसीलिए 35 बनाम 1 झेल रहे हो|
कोई ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री को जोड़ के उनके माँ-बाप ढूंढ के दिखा दो माइथोलॉजी में; थारै जूत से मारेंगे; बने फिरें धर्मांध| पुरखा या बाप बदलना कोई गुड्डे-गुड़ियों का खेल है क्या; जो तुमने इनको इतनी छूट दे रखी कि यह मंडी के भाव की भांति थारे माँ-बाप बदल देवें और थम धर्म-धर्म खेलते रहो?
थारे से तो थारे 1875 के पुरखे भले थे, जो इनसे "जाट जी", "जाट देवता", "किसान राजाओं का राजा होता है" (रिफरेन्स: सत्यार्थ प्रकाश) तो लिखवा-कहलवा लिया करते थे; वह भी 99% ग्रामीण व् तुमसे कई गुना कम पढ़े-लिखे होते हुए|
सोचो ऐसा क्या था? वह था आपस में सरजोड़ का करिश्मा; और थम, थम चाल रे सरफोड़ पे| क्योंकि उन्होंने "दादा खेड़ों" के जरिए थारे पुरखे सदा अपने पास रखे| जब थारे पुरखे निर्धारित कर गए कि हम इन दादा खेड़ों में बैठे; चाहे हम शिवजी थे,चाहे हम राम थे, कृष्ण थे या कोई अन्य| क्यों म्हारे पै रोळा मचा रहे? हम सारे इस धोळे बाणे (रंग) वाले "दादा खेड़े" में मरे बाद सब एक शामिल हो जावें हैं; इसीलिए इनमें मूर्ती भी नहीं रखनी ताकि थमने कोई फंडी हर रोज नया बाप ना पकड़ा जा| और थम कहो हो अपने आपको आधुनिक व् तथाकथित पढ़े लिखे; अपने पुरखे व् वंश संभालने आते कोनी|
विशेष: यह पोस्ट सिर्फ अंधभक्तों को उन्हीं की भाषा में समझाने हेतु है; बाकी सामान्य लोग तो पहले से ही समझे हुए हैं|
जय यौधेय! - फूल मलिक

No comments: