पंजाब में सरकार व् पोलिटिकल पार्टीज सब धरतीपुत्रों की मुट्ठी में हैं; एक सीएम की बलि भी वहां ली जा चुकी है; सरकार से सारी मांगें "लाइन हाजिर" करवाने वाले स्टाइल से मनवा लेते हैं; उदाहरण कल का ही देख लें| एक हिसाब से कहिए कि इतना जिगरा-जबरा-ब्योंत बिना इलेक्शन लड़े, सत्ता में आए ही इन्होनें बनाया हुआ है; वजह है - सारी जत्थेबंदियों की एकमुश्त एकता या एक-दूसरे को नहीं काटने की नैतिक सूझबूझ व् तालमेल|
हरयाणा में इसके समक्ष क्या स्थिति है; लिखने की जरूरत है क्या? 23-24 जत्थेबंदी हैं; क्या यह एकजुट हैं? आपसी तालमेल-सूझबूझ किधर गायब है इनकी? टोहाना-हिसार-रोहतक-करनाल तक जो नतीजे लिए, वह हांसी में क्यों नहीं हासिल हुए या देरी लग रही है? एक से नहीं 24 की 24 से यह सवाल पूछिए| बिना इलेक्शन लड़े पंजाब वालों जितना काबू व् जबरा क्यों नहीं बना रहे ये या बना ही नहीं सकते? मेरे ख्याल से तो बना सकते हैं अगर छुपे रास्ते पोलिटिकल पार्टीज, ठगपाल कालिख (फरवरी 2016 फेम), जैसों से दिशानिर्देश लेने छोड़, आपस में सरजोडें तो; स्टेट व् सेण्टर के सत्ताऱूढ़ों से पारिवारिक रिश्तों की दुहाइयां देनी छोड़ें तो|
अगर स्टेट लेवल पर पंजाब जैसी एकता के लिए दूसरी स्टेट का हस्तक्षेप नहीं चाहिए तो उसको लागू क्यों नहीं कर रहे?
पंजाब वाले पंजाब में इतने रौब से इसलिए दहाड़ पाते हैं क्योंकि एक तो वो एक हैं, दूसरा स्टेट लेवल का मतलब स्टेट लेवल रखे हुए हैं, मूवमेंट को गैर-राजनैतिक रखने का मतलब सही मायनों में उसी राह पर चले हुए हैं; कहीं कोई अपवाद या अफवाह उठती भी है तो तुरंत उसको कहने मात्र नहीं अपितु वहीँ की वहीँ दबाने वाला खंडन करते हैं| और इसीलिए नेशनल लेवल पर भी कमांड में हैं|
सच्चाई यह है कि जिस स्तर की परिपक्वता पंजाब वालों ने हासिल कर ली है, वह बाकियों को अभी हासिल करनी रहती है|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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