Saturday, 6 November 2021

अरविंद शर्मा इंसान को इतना जल्दी अपनी पिछोका नहीं भूलना चाहिए!

आ जा तुम्हें बताऊँ कि जाट-जमींदारों जैसे सोच से कैसे शाही थे, हैं और रहेंगे; और तुम्हारे जैसे व् जिन उघाड़ों को साथ ले गलमठे पा रह्या थम कैसे चांडाल थे और रहोगे|

सबसे पहले तो आँख निकाल व् हाथ काट तेरे पुरखों के जो "किसान को राजाओं का राजा लिख-लिख मर गए"| किसानों की सबसे बड़ी बिरादरी जाट को "जाट जी" "जाट देवता" लिख-गा-बोल चले गए| सत्यार्थ प्रकाश उठा के पढ़ लेना|
फिर हाथ काट व् आँख निकाल तेरी दादियों-काकी-ताइयोँ की: जो सदियों से व् आज तलक भी जाट-जमींदारां की रसोई में रोटी-टूका बनाने व् बर्तन-भांडे साफ़ करने बदले में 4 रोटी पा गुजारा करते आए| मेरे बड़े नाना के यहाँ आती थी म्हारी एक मिश्राणी मामी; जिस दिन चाहिए उस दिन दे दूंगा गाम-नाम समेत सारी डिटेल| जा काट आईये उनके हाथ और काढ़ आईये उनकी आँख| परन्तु थारी तरह बेशर्म नहीं सैं हम, अपने कामगारों की भी इज्जत व् मर्यादा निभानी जाणैं सैं; इसलिए फ़िलहाल गाम-नाम समेत नहीं लिख रहा| और यह किस्से हर गाम गेल दे दूंगा; दिखां कितनों की आँख निकालेगा व् कितनों के हाथ काटेगा; जाट-जमींदारों के यहाँ से चूल्हे-चौके करने पे| थम इसलिए कुकाओ सो क्योंकि थारा यह जाट जैसा इतिहास नहीं| जाट-जमींदारों की हृदय-विशालता पर गुजारा करने वाले आज तू स्वघोषित स्वर्ण और शेर बनना चाहू सैं? थारे में से ही एक-दो की जुबानी सही में ठीक ही तेरे जैसों को आरएसएस वाले थारे ही गैर-हरयाणवी भाई, तुम्हें गंवार व् सबसे रद्दी कहवैं हैं| और जैसे जाट और बिरादरियों को दान देता आया, ऐसे तुम्हें तो सबसे ज्यादा ही दिया है|
जाट से इतना पा के जाट के ही नहीं हो सके; और लगे भी तो किनकी गेल, इन उघाड़ों गेल मिल कें आँख निकालोगे? और इन उघाड़ों के चक्रों में पड़ियों भी मत| "धोळी की जमीन की मलकियत खट्टर के हाथों थम खुसवाएं हांडो (म्हारे ही पुरखों से पाई थी, थारे पुरखों ने; जा पहले उनकी आँख निकाल व् हाथ काट) और कदे हाडों इनके फरसों से गर्दन बचाते और इनके साथ मिलके थम जग जितना चाहू सो? क्यों हंसा-हंसा पेट फाड़ै सै म्हारे|
और बोल कितना बोलेगा, जितने कह उतने पज पाडुं थारे तथाकथित आँख निकालूं व् हाथ काटुओं के|
जय यौधेय! - फूल मलिक





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