कृषि-दर्शनशास्त्र, युद्ध-दर्शनशास्त्र व् वैवाहिक-दर्शनशास्त्रों के प्रख्यात हरयाणवी शेक्सपियर, शहीद सूर्यचंद्र कवि "दादा फौजी जाट मैहर सिंह दहिया जी" की जन्मजयंती (15 फरवरी 1918) पर विशेष:
"आह्मी-सयाह्मी":
दादा मेहर सिंह अर दादा लखमीचंद, एक बै सांपले म्ह भिड़े बताये|
दादा लखमी नैं दादा मेहरू धमकाया घणे कड़े शब्द सुणाए||
सुण दिल होग्या बेचैन गात म रही समाई कोन्या रै,
बोल का दर्द सह्या ना जावै या लगै दवाई कोन्या रै|
सबकी साहमी डाट मारदी गलती लग बताई कोन्या रै,
दादा लख्मी की बात कड़वी उस दिन दादा मेहरू नैं भाई कोन्या रै||
सुणकें दादा लख्मी की आच्छी-भुंडी उठ्कैं दूर-सी खरड़ बिछाये||
इस ढाळ का माहौल देख, लोग एक-बै दंग होगे थे,
सोच-समझ लोग उठ लिए, दादा लख्मी के माड़े ढंग होगे थे|
दादा लख्मी के उस दिन के सारे प्लान भंग होगे थे,
लोगां नें सुन्या दादा मेहरु, सारे उसके संग होगे थे||
दादा लख्मी अपणी बात पै भोत घणा फेर पछताए||
दादा मेहर सिंह कै एक न्यारा सा अहसास हुया,
दुखी करकें दादा लख्मी नैं, उसका दिल भी था उदास हुया|
दोनूं जणयां नैं उस दिन न्यारे ढाळ का आभास हुया,
आह्मा-सयाह्मी की टक्कर तैं पैदा नया इतिहास हुया||
उस दिन पाछै एक स्टेज पै वें कदे नजर नहीं आये||
गाया दादा मेहर सिंह नैं दूर के ढोल सुहान्ने हुया करैं सें,
बिना विचार काम करें तैं, घणे दुःख ठाणे हुया करैं सें|
सारा जगत हथेळी पिटे यें लाख उल्हाणे हुया करैं सें,
तुकबन्दी लय-सुर चाहवै लोग रिझाणे हुया करैं सें||
रणबीर सिंह बरोणे आळए नैं सूझ-बूझ कें छंद बणाए||
ऊपर पढ़ी रागणी विख्यात विद्वान्, कवि डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया जी की लेखनी में उकेरित है|
No comments:
Post a Comment