Friday, 11 February 2022

कोक्को व् हाऊ!

चौधरी राकेश टिकैत जी को धन्यवाद जो उन्होंने शुद्ध हरयाणवी भाषा के ऐसे शब्द पुनर्जीवित करने का विगत एक साल से जैसे सिलिसला सा चला रखा हो, जो गैर-हरयाणवी पत्रकार लॉबी व् हरयाणवी को हिंदी का सबसेट समझने की भूल करने वालों को सक्ते में डाल दे रहे हैं| जैसे कि "गोला-लाठी दे देंगे", "बक्क्ल तार देंगे", "भुरड़ फेर देंगे" व् कल बोला "कोक्को ले गई"| कोक्को की केटेगरी का एक शब्द और है "हाऊ"| आइए थोड़ा इन बारे विस्तार से जानते हैं| 


"कोक्को" व् "हाऊ" शब्द ऐसे विचार का प्रतिबिम्ब होते हैं जो आसपास की कई चीजों का सामूहिक दर्पण होता है| जो चीजें हम देख सकते होते हैं व् उनका अस्तित्व भी होता है; परन्तु वह डरावनी होती हैं| जैसे कि 


"कोक्को": यह ऐसे पक्षियों की केटेगरी का नाम है जो आपके सर पर हमला कर देते हैं, आपकी थाली से रोटी उठा ले जाते हैं| बच्चों की थाली व् हाथ से तो जबरदस्ती उठा के या छीन के ले जाते हैं| जैसे कि कव्वा-कव्वी, चील, काब्बर आदि| काब्बर हालाँकि हमला नहीं करती, परन्तु आपकी थाली के पास मंडराती रहती है व् आपके इधर उधर होते ही या आपकी नजर इधर उधर होते ही चुपके से खा जाती है या उठाने लायक टुकड़ा हो तो ले के उड़ जाती है| और बच्चों के दिमाग में ऐसे पक्षियों के इम्प्रैशन का फायदा बड़े-स्याणे बच्चों से कोई चीज छुपाने को करते हैं व् नाम "कोक्को" का लगा देते हैं ताकि बच्चे को यकीन हो जाये कि वाकई में कोक्को ही ले गई| 


हाऊ: कपास के खेतों में, गोदामों में, धतूरे-आक-आकटे के पेड़ों-बोझड़ों के पास छोटी गेंद के आकार का सफेद रंग का बालों का चमकीला झुण्ड सा उड़ता हुआ देखा होगा? किसान व् खेत-मजदूरों के बालकों ने तो अवश्य ही देखा होगा? उसी को हाऊ कहते हैं| इसको सफ़ेद भूतों की केटेगरी में रखा जाता है, क्योंकि इसको छूने पे यह अटपटा सा अहसास देता है; उब्क या उल्टी या ग्लानि सी आने का| हानिकारक नहीं होता परन्तु इसका चिपकना किसी को अच्छा भी नहीं लगता| स्पर्श में अति-मुलायम व् सफ़ेद भूतों जैसा अहसास करवाता है| 


यह ज्यादा मशहूर तब हुआ था जब 1761 की पानीपत लड़ाई में आये पुणे के पेशवे भाउओ (भाऊ) से भी हमारी औरतों ने इस हाउ को जोड़ दिया| क्योंकि यह लोग भी यही गलानि व् ग्लीजता का अहसास दिलाते थे; इसीलिए हरयाणवी औरतों ने कहावत शुरू कर दी कि, "गैर-बख्त बाहर मत जाईयो, नहीं तो हाउ यानि भाउ उठा ले जायेंगे"| 


यह हरयाणवी भी कमाल की भाषा है, एक शब्द बोल दो; तथाकथित ज्ञानियों को इतने में ही दस्त लग जाते हैं| 


बाकी पहले दौर की कल हुई वोटिंग में गठबंधन 40 सीटें (हो सकता है ज्यादा भी जीते) तो आराम से जीत रहा है; बस यह फंडी लोग एडमिनिस्ट्रेटिव मशीनरी का दुरुप्रयोग नहीं करेंगे तो| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

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