Friday, 25 March 2022

सुधांशु त्रिवेदी बाबू, "चौधराहट खत्म हुई या लौटने लगी है"?

उद्घोषणा: लेख पढ़ने से पहले पाठक सनद रखें कि चौधर किसी एक जाति की लागू नहीं है, यह खाप व्यवस्था का कांसेप्ट है जो किसी भी जाति के आदमी के पास हो सकती है; परन्तु फंडियों ने षड्यंत्र के तहत इसको एक बिरादरी का सिंबॉलिक बना छोड़ा है|


जयंत चौधरी व् किसान आंदोलन; दोनों का जलवा या उनकी दी भड़क व् खौफ ही कहिये कि पिछली भाजपा की यूपी सरकार वाले जहाँ यह कहते थे कि "चौधरियों की चौधराहट खत्म हो गई" व् एक भी इस बिरादरी से मंत्री नहीं बनाया था; इस बार उसी बिरादरी से 4 मंत्री बनाए हैं| अभी जल्द ही सेण्टर में भी बनाने वाले हैं|

जातिवादी तो मैं नहीं हूँ, परन्तु यह तो देखना ही पड़ेगा कि मुझे कोई "for guaranteed" भी ना ले| इतना जबरदस्त साइकोलॉजिकल करंट दिया है किसान आंदोलन व् जयंत चौधरी के उभार ने फंडियों को कि आगे के पाँच साल कुलमुलाते हुए ही निकलेंगे| बैलट वोट व् अपंग वृद्ध सिटीजन के घर जा के लिए वोटों की धोखाधड़ी से बहुमत लिए हैं, यह इनको भी पता है; इसलिए जीत कर भी वह रौनक गायब है जो अक्सर इनमें होती है|  

दूसरा सुखद पहलू यह है कि किसान आंदोलन के सबसे स्ट्रांग-होल्ड्स में बीजेपी का सूपड़ा साफ़ हुआ है; यानि पंजाब व् वेस्ट यूपी के मुज़फ्फरनगर-शामली-मेरठ-बागपत-बड़ौत क्षेत्र की 19 में से 13 सीटें बीजेपी हारी है| तीसरा स्ट्रांग होल्ड हरयाणा था, वहां अभी चुनाव नहीं थे|

सबसे सुखद बात यह है कि पंजाब ने वह साइकोलॉजिकल स्वछंदता पा ली है जो उसको अमेरिका-यूरोप का सिस्टम लागू करने का माहौल व् साहस देती है| बेसक वहां बनी सरकार संदेह के दायरे में है, फंडियों से अंदरखाते संदेह के चलते, परन्तु यह वाले वह बिन दांत वाले सांप हैं; जो अब पंजाब को साइकोलॉजिकली उतना नहीं काट पाएंगे, जितना पंजाब काट चुका| और कोई बात नहीं किसान यूनियनें अबकी बार वहां लड़े एलेक्शंस में ज्यादा सफल नहीं हुई तो, हो जाती अगर MSP ले के उठते तो, बस 15 दिन की जल्दी मचा दी; दिसंबर भी पूरा किसान आंदोलन जमाए रखा होता तो MSP भी मिलता व् वो साख व् क्रेडबिलिटी भी मिलती जो चुनाव जीतने को चाहिए|

इन चुनावों व् किसान आंदोलन के कुछ साइड के फायदे: ना सिर्फ सरदार भगत सिंह दोगुने स्ट्रांग हो के उभरे अपितु उनके चाचा सरदार अजित सिंह व् उनके गुरु सरदार करतार सिंह सराभा की जड़ें और गहराई पा गई| यह जो कुछ बेअकले "जैसे काटड़ा अपने को मारता है, ऐसे इनको मारने पे तुले हैं"; कुछ ना निकाल पाएंगे अपितु अपना दायरा व् साख खुद मिटटी में मिला लेंगे|

सुधांशु त्रिवेदी, हरयाणा में पानीपत के तीसरे युद्ध से एक कहावत चलती आती है कि, "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया"; (यह कहावत पुणे पेशवा सदाशिवराव भाऊ द्वारा महाराजा सूरजमल का उपहास उड़ाने व् उनको धोखे से बंदी बनाने की कुचेष्टा के बाद जब पानीपत में पेशवाओं की हार हुई तो तब चली थी); इसका संदेश साफ़ है कि, "चौधर जितनी कटती है, उतनी बढ़ती है"| हमेशा एक बात याद रखना, तुम्हारा ज्ञान, तुम्हारा दावा; तभी तक है जब तक वह चौधर से ढांक के रखा हो; जिस दिन खुले में आ के बोल दिया, उसी दिन से तुम्हारे जैसे चंदा ज्यूँ गहने शुरू हो जाते हैं| जा, पूछ बीजेपी से कि यह यूपी में 4-4 जाट मिनिस्टर क्यों बना दिए; जबकि तूने तो इनकी चौधराहट खत्म का ऐलान कर दिया था?

अभी क्या अभी तो 13 महीने का किसान आंदोलन व् फरवरी 2016 म्हारी छाती म्ह ए धरे सैं| और न्योंदे उधारे रखने का इतिहास भी नहीं म्हारा| वक्त चाहे कितना ही लगे; परंतु अबकी बार सारी अलसेट मेटते चले हैं|  

जय यौधेय! - फूल मलिक

  

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