या तब तक वह राज करेंगे, जिन्होनें यह विडंबना बनाई है|
जो कोई भी पोलिटिकल पार्टी, सोशल मिशन या संगठन, क्रमश: इस वोटबैंक को एक जगह गिरवाने की व् इनकी किनशिप को बचाने की चिंता करता है; उसको यह उलझन सुलझानी होगी| या कम-से-कम से इसके सवालों के जवाब समाज में उतारने होंगे, इसके बगैर राह नहीं आगे| खाली ड्राइंग रूम्स की बैठकें, क्यास, आंकड़े व् पार्टी के बाहर-भीतर के तोड़जोड़ कामयाबी नहीं देने वाले|
आज की यथास्थिति व् इलेक्शन की अगली तारीख के बीच 2 साल हैं; इस बीच निबट सकते हो तो इस विडंबना से निबटो| पब्लिकली नहीं निबटना, नीचे-नीचे निबटना है| आपके पुरखों की "साइकोलॉजिकल वॉर गेम छापामार" नीतियों से इनको निबटाना है| वह छापामार नीतियां जो सर्वखाप ने विजयनगर साम्राज्य से ले गोलकुंडा-हैरदाबाद को ट्रेनिंग दे-दे सिखाई| जिससे आपकी खापें औरंगजेब व् अंग्रेजों से लड़ी| शिवाजी तक ने यह छापामार नीतियां अपनाई|
क्या बला है यह विडंबना?: यह विडंबना फंडी की बनाई ऐसी पिच है जिसपे वह आपको खेलने को बुलाएगा; आप खेले तो समझो आप निश्चित हारे| अपितु इन अगले 2 सालों में इस विडंबना को तोड़ आपको अपनी पिच बनानी होगी| तो क्या है यह पिच व् विडंबना?
फंडी (हर जाति-वर्ण-धर्म में मिलता है; किसी में कम अनुपात में तो किसी में ज्यादा में) का polarisation व् manipulation की पिच तोड़ो /बिगाड़ो तब बात बनेगी (पब्लिकली नहीं, फंडी के ही स्टाइल वाली छुपम-छुपाई से): और वो क्यों बिगाड़ो? क्योंकि फंडी उसकी polarisation व् manipulation की धाती को सीरी-साझी में इस स्तर तक ले जा चुका है कि कल तक इनमें जो छूत-अछूत-ऊंच-नीच-स्वर्ण-शूद्र-वर्णवाद के दंश से पीड़ित जातियां, वर्णवादियों से सीधा लोहा लेने की हुंकार भरती थी; वह इन मुद्दों पर चुप रहने लगी हैं, सहन करने लगी हैं| इसकी वजह फंडियों का फैलाया भय-द्वेष-लालच-दबाव-विघटन सब हैं| आपको यही भय-द्वेष-लालच-दबाव-विघटन क्षत-विक्षत करने होंगे|
दूसरा किसान व् खेत-मजदूर के बीच फंडियों ने कुछ और भी जहर के मटके भर के धर दिए हैं, वह भी फोड़ने होंगे व् दफनाने होंगे| इनके प्रकार व् उनको दफनाने के सारे सूत्र, आपको मिल जायेंगे| परन्तु काम अभी से शुरू करना होगा; अखिलेश यादव की भांति इलेक्शन से 5-6 महीने पहले या इलेक्शन डेट देलकारे होंगे के बाद अखिलेश के साथ आन मिलने वाले OBC नेताओं जितना देरी से नहीं|
साथ ही प्रवासी मजदूर वोटों पर भी सफलता पाई जा सकती है, इसके भी ऐसे अकाट्य सूत्र हैं; जिनको फंडी भी नहीं काट सकता|
मतलब दिन-रात कैडर झोंकना होगा, तब जा के कहीं आसपास पहुंचा जाएगा| फंडियों के घड़े फैलाए narratives काट के अपने narratives देने होंगे; यानि अपनी पिच बनानी होगी|
सत्ता चाहिए तो पहले सीरी-साझी बीच धरे, जहर के मटके फुड़वाइये; फिर ऊंच-नीच के इस अन्याय पर इनमें चर्चा करवाइए; रास्ता खुलता चला जाएगा| यह कर लिया तो वोट हैं वरना कोई तिगड़म, कोई अनुभव, कोई लिगेसी कुछ ही काम आए शायद|
सब नीचे-नीचे करना होगा; पब्लिक में बता-दिखा के कुछ भी नहीं होगा| अब शेर दहाड़ के हिरण मारने चलेगा तो हिरण थोड़े ही हाथ आएगा; इसलिए सब चुपचाप करना होगा|
फंडियों से मत घबराओ, इनकी ताकत बस दो चीजें हैं; एक सामने वाले की अकर्मण्यता यानि चुप्पी व् दूसरा यह ज्ञान का दुरूपयोग करने में सबसे ज्यादा माहिर हैं; परन्तु दुरूपयोग की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह तभी तक चलता है जब तक सदुपयोग साइड धरा है| आप सदुपयोग से चुप्पी तोड़िए; रास्ते खुलते चले जाएंगे|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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