Thursday, 31 March 2022

स्वर्ण क्या है, व् शूद्र क्या है?

स्वर्ण: जो अपनी जाति-समुदाय के भीतर सम्पूर्ण लोकतंत्र रखे व् बाहरी जाति-समुदायों में तोड़फोड़ मचवाये रखे| या जो अपनी सोशल-आइडेंटिटी की प्रोटेक्शन का ठेका स्वर्ण को दे दे व् बदले में स्वर्ण को चंदा-चढ़ावा देता रहे; परन्तु व्यक्तिगत नहीं उसकी पूरी जाति-बिरादरी की सोशल प्रोटेक्शन का| इन प्रोटेक्शन का ठेका देने वालों को स्वर्ण, आधा-स्वर्ण कहता है| 


शूद्र: जो अपनी छोड़, अपने परवार-ठोले-कुनबे-पान्ने-जाति की छोड़ बाकी सभी के लोकतंत्र की चिंता करे| अपनी के लिए सिर्फ व्यक्तिगत प्रोटेक्शन हेतु छुपे रूप से स्वर्ण को यह समझ के चंदा-चढ़ावा चढ़ाए कि वह उसकी सोशल आइडेंटिटी की रक्षा करेगा| परन्तु ऐसा कभी होता नहीं है| स्वर्ण उसको प्रोफेसर बनने पर भी स्वर्ण में शामिल ना करके, शूद्र ही कहते-मानते रहते हैं| स्वर्ण की चुसाई छद्म राष्ट्रवाद व् धर्मवाद की घूंटी यही सबसे ज्यादा पिए होते हैं|  


और यह नई सदी के नए शूद्र, तमाम उन बिरादरियों के लोग हैं, जो दो-तीन जनरेशन पहले तथाकथित स्वघोषित अर्बन हुए हैं| इनके पुरखे जब ग्रामीण थे तो अपने-अपने गाम के स्वर्ण थे, परन्तु यह मूढ़मति 99% अर्बन तो हुए परन्तु स्वर्ण वाला स्टेटस खो चुके| जबकि फंडियों ने जो ट्रडीशनली शूद्र घोषित किये हुए थे, वह कुछ-ना-कुछ स्वर्णता को अर्जित करते जा रहे हैं| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

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