Wednesday, 30 March 2022

ऐसे संघठनों से प्रोफेशनल मतलब निकालने को बेशक जुड़ना, परन्तु इनको अपना कल्चर-किनशिप-बोली-भाषा कभी गिरवी ना रखना!

कौनसे-कैसे संघठन?: जो खुद को तुम्हारे आगे शालीन-सभ्य-मृदुलभाषी दिखने को व् यह दिखाने को कि वह खुद जातिवाद से कितने दूर हैं; इन बातों हेतु तुम्हारे नाम के आगे से गौत हटाने की कहें व् उसकी जगह नाम के पीछे "जी" लगा के बोलने की कहें; फिर तुम चाहे 5 साल के बच्चे हो या 50 साल के वयस्क| जैसे "विजय जी", "विकास जी"; परन्तु उन्हीं की टॉप लीडरशिप में ना सिर्फ वह एक ही जाति के सब बंदे रखने का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष विधान रखते हों अपितु वह अपना गौत भी ज्यों-का-त्यों कायम रखते हों| 


ऐसे संघठन सत्ता में हों तो इनसे प्रोफेशनली तो बना के रखो परन्तु अपना कल्चर-किनशिप-बोली-भाषा भूल के भी इनके आगे गिरवी मत रखना| क्योंकि यह चाहते होते हैं कि तुम अपने गौत-नात छोड़ दो परन्तु खुद के नहीं छोड़ेंगे; इसलिए इनकी टॉप-लीडरशिप गौत लगाती भी मिलेगी व् सबसे घोर जातिवादी व् वर्णवादी भी मिलेगी; क्योंकि सारे-के-सारे एक ही वर्ण-जाति के होते हैं टॉप में| हाँ, यदा-कदा 100 में 1 बार झूठा दिखावा करने को किसी दूसरी जाति वाले को ले भी लेंगे टॉप में तो भी दिखावे को|  


तुम्हारा क्या जाता है, ऐसे ही चिकना-चुपड़ा "जी" जुबान पे रख के तुम अपने काम निकालते रहो, वो कहावत है ना कि, "जाट, कहे जाटणी से, जै चाहवै राजी रहना; चींटी ले गई हाथी को, हांजी-हांजी कहना" इसकी तर्ज पे इनके साथ दीखते रहो; परन्तु अपने कल्चर-किनशिप-बोली-भाषा को कतई मत छोड़ना| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

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