आंखा तीज एक ऐसा त्योहार था जिसमें मंदिर और बाजार का कोई रोल नहीं था... ना किसी मूर्ती की पूजा ना किसी देवी-देवता की... किसी पंडे का भी कोई रोल नहीं था ... यह सिर्फ किसान का त्योहार था .. किसान का खेत ही अक्षय भण्डार होता है उसी अन्न भण्डार के हमेशा भरे रहने की कामना के लिये यह प्रतीकात्मक त्योहार मनाया जाता था... हार्वेस्टिंग के बाद किसान फुरसत में होते थे.. अपने बच्चों की शादियां भी इसी दिन करते रहे l
मगर किस तरह 'आखा तीज' को अक्षय तृतीया में बदल दिया गया.. आपको पता ही नहीं चला.. इसे कहते हैं कल्चरल अटेक.. सांस्कृतिक आक्रमण... मोठ बाजरे की खिचड़ी और हल कहीं पीछे छूट गये... बाजार ने इसे लक्ष्मी से जोड़ दिया.. चांदी के सिक्के पर लक्ष्मी की फोटो ऊकेर कर... क्योंकि बाजार को हल से कोई फायदा नहीं... पंडों ने इसे महाभारत के अक्षय पात्र से जोड़ दिया... ताकि अप्रत्यक्ष कंट्रोल उनका रहे आपके त्योहार पर l
वो अक्षय पात्र जिसकी कल्पना आप करते हैं..जो हमेशा भरा रहे वो किसान का खेत है... दुनियाँ में कोई भी अक्षय पात्र आज तक बिना पसीना बहाये नहीं भरा रहा.. और ना ही कभी भरा रहेगा... ओलम्पिक से अगर कोई मेडल लाता है तो आप क्रेडिट खिलाड़ी को देंगे या महाभारत को ? फिर किसान अन्न का भण्डार धरती से पैदा कर घर ला रहा है ... मंडियों में लायेगा..देश का पेट भरेगा... इसका क्रेडिट उसे क्यों नहीं दे रहे... उसको अन्न की पैदावार के लिये सम्मान क्यों नहीं... उसके खेत को अक्षय पात्र कहने में क्या दिक्कत है आपको ?
लूट के तरीके बेहद सुक्ष्म हैं...पर बेहद सुनियोजित हैं ...बेहद लुभावनी पेकिंग में पैक हैं l एक काल्पनिक अक्षय पात्र पर नारियल रख कर बाजार और पंडे ने आपको एक फोटू दे दी.. अब अाप सारे दिन उस फोटू को पोस्ट करते रहो/एक दूसरे को फॉरवर्ड करते हो l बाजार आपको आपके खेत की /आपके हल की / आपके घर बणने वाली खिचड़े की फोटू डिजाइन कर के कभी नहीं देगा क्योंकि पंडे का अप्रत्यक्ष कंट्रोल रहे आपके दिमाग पर l आपकी माँ ने आखातीज को आपको जो मोठ बाजरे का खिचड़ा खिलाया है देशी घी में उसकी बराबारी दुनियाँ की कोई अक्षय तृतीया नहीं कर सकती .. उसे उचित सम्मान देणा आपका कर्तव्य है ll
अाप सभी को आखातीज की बहुत बहुत
बधाई
l आपके खेत हमेशा भरे रहे ll
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