अकेले भगवाधारी बाबाओं से धर्म व् समाज चलता तो खाकीधारी आरएसएस की जरूरत नहीं होती|
यह जरूरत आपके बूढ़े/पुरखे भली-भांति जानते थे इसलिए समाज-धर्म व् कारोबार में बैलेंस रखने को सदियों से खाप व्यवस्था (समाज को चलाने को), खेड़े (धर्म को चलाने को) व् खेत (कारोबार को चलाने को) रखते आए| आरएसएस तो 97 साल पुराना कांसेप्ट है|
एक बात और यहाँ समझनी जरूरी है कि आरएसएस व् खाप में क्या फर्क है? खाप "नैतिक पूंजीवाद" की धोतक है यानि "कमाओ और कमाने दो" व् सर्वसमाज को जाति-वर्ण-धर्म के भेद के बिना मुफ्त व् अविलंब अधिकतम सम्भव न्याय देने का रिकॉर्ड रखती है; जबकि आरएसएस "अनैतिक पूँजीवाद" यानि समाज की अधिकतम सम्भव पूँजी-सम्पत्ति चंद साहूकारों के कब्जे में होनी चाहिए की लाइन पर चलती है; शायद इसीलिए अडानी-अम्बानी के एकमुश्त अनैतिक तरीके से बढ़ने से ले माल्या-चौकसी जैसे किसी भी हजारों करोड़ के घपलों के भगोड़ों पे चुप्पी रख के चलती है|
जैसे एक व्यक्ति विशेष का जनमानस उसके परवार-ठोळे-पिछोके की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली किनशिप से बनता है व् वह कितना रुतबेदार होगा उसकी व्यक्तिगत क्षमता के साथ-साथ किनशिप की प्राचीनता-सुदृढ़ता व् महत्वता से निर्धारित होता है; ऐसे ही समाज भी एक सामूहिक व्यक्ति होता है जिसका चरित्र सैंकड़ों-हजारों परवार-ठोळे-पिछोके से बनता है| अगला-पिछला जन्म तो खैर नहीं ही होते (इसलिए किसी पाखंडी के चक्क्र में ना पड़ें इन पहलुओं पर) परन्तु पिछली पीढ़ीयों का किया-पाला-माना अगलियों पे जरूर चढ़ता है और वह बाबा टिकैत की इस सलंगित फोटो से भलीभांति झलकता है|
यह जो तीनों धर्मों के नुमाइंदे बाबा टिकैत के दरबार में उनको घेरे बैठे हैं, यह तप आपके पुरखों के पीढ़ियों के उस बल का था जो कभी अपने कारोबारी हकों हेतु लड़ने से राजसत्ताओं से ले कभी किसी पंडित-मौलवी या ग्रंथि से भी नहीं घबराए| सर छोटूराम का वक्त तो ऐसा था कि तीनों धर्म खड़े देखते थे व् वह फरिश्ता इनसे कहीं अधिक मजमा तीनों धर्मों के लोगों का अपने कार्यक्रमों में लगा लेता था| यह वही पिछली पीढ़ियों की बनाई छाप-साख थी जो बाबा टिकैत के जमाने तक फल देती रही व् तीनों धर्म चौधरियों के दरबार में यूँ ही हाजिर होते रहे, ज्यों इस फोटो में बैठे हैं|
परन्तु बाबा टिकैत के बाद, यह उस स्तर का नहीं रहा| अब एक धर्म वालों ने तो सुननी ही बंद कर रखी है| तभी तो किसान नेताओं व् कार्यकर्ताओं के बार-बार आह्वान के बाद भी कोई ही विरला मंदिर वाला 2020-21 के किसान आंदोलन में लंगर की सेवा देने आया हो या सरकारों से गुहार लगाई हो कि हमारे किसानों की सुनो|
बस तुमने एक समाज-सभ्यता-किनशिप के तौर पर कहाँ तक का सफर तय किया है, उसमें कितना उठान या गिराव है; इससे अंदाजा लगा लो|
बस इतना याद रखो कि चौधर-धर्म-समाज-कारोबार, चारों को बराबर नहीं रखोगे तो शूद्र कहलाओगे व् उस तरफ जाते जा रहे हो; वक्त रहते अपने पुरखों की अनख पे आ जाओ वरना हालात बहुत भयावह हैं आगे; क्योंकि लड़ाई "नैतिक पूंजीवाद" बनाम "अनैतिक पूंजीवाद" हो चली है व् अनैतिक वाले बहुत आगे निकल चुके हैं|
"जो टिका रहा, वो टिकैत" की पंचलाइन से मशहूर बाबा टिकैत की पुण्यतिथि पर इससे बढ़िया क्या ही लिख सकता था|
बाबा टिकैत को उनकी पुण्यतिथि पर शत-शत नमन!
जय यौधेय! - फूल मलिक
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