Wednesday, 18 May 2022

हमारे खाप-खेड़ा-खेत का कोई भला सिद्ध नहीं होता इन बातों से जो फंडियों ने आज के दिन हव्वा बना रखी हैं!

हम आज भी मुस्लिमों के साथ इसलिए आराम से रह लेते हैं क्योंकि हम ही वो थे जिनके पुरखों ने इनसे सबसे ज्यादा लड़ाइयां लड़ी व् बहुतों में इनको हराया भी| तो म्हारा तो गुबार साथ की साथ लड़ के शांत होता रहा| चाहे वो मुग़लों के साथ लड़ी या अंग्रेजों के साथ| 


वह इन्हीं के पुरखे थे जो पानीपत की तीसरी लड़ाई जीतने पर, दिल्ली जाटों को देने की बजाए मुग़लों को ही देने की बात किया करते थे; हाल ही की पानीपत मूवी में देखा ना? तो फिर तब इतना प्रेम था मुग़लों से तो आज क्यों हवा हुआ जाता है? मतलब साफ़ है आपको आपके भगवानों का राजनैतिक इस्तेमाल करके इनकी सत्ता कैसे कायम रहे, उसके लिए बेवकूफ काट रहे हैं| खिलजी के हाथों चितौड़ के राणा रत्न को मरवाने वाले ये रहे, राजा नाहर सिंह को समझौते के नाम पर धोखे से कैद करवाने वाले ये रहे|  


ना सिर्फ इनके यह ऊपर बताए उदाहरणों वाले प्यार मुग़लों-अंग्रेजों से रहे, अपितु सबसे ज्यादा दरबारी इन पुरखे रहते थे| गुप्त अनैतिक समझौते करते थे| म्हारे वाले समझौते करते भी थे तो डंके की चोट पर, जैसे सर छोटूराम ने गेहूं का भाव 6 रुपये की बजाए 11 रूपये लिया था| रोटी-बेटी लेने-देने के रिश्ते इनके पुरखों ने सबसे ज्यादा इनसे रखे| तो इनको मलाल है की हम किसानों व् खापों की भांति इनसे कभी अपना लोहा नहीं मनवा पाए तो अब "सांप निकलने के बाद, लकीर पीटने वाली बात" की भांति जगह-जगह खुदाई करवा रहे हैं| 


ना यह अच्छे मैनेजर हैं व् ना अच्छे जिम्मेदार; तभी तो समाज का शिक्षा, नौकरी, व्यापार, स्वास्थ्य सब मोर्चों पर जनाजा निकला जाता है| और इन पर आपको फोकस करना है| वरना यह इतना ही धर्म के प्रति चिंतित होते तो अभी 13 महीने दिल्ली के बॉर्डर्स पर जिनसे धूल फँकवाई थी, वह क्या मुग़ल थे या अंग्रेज? फरवरी 2016 याद कर लो तो इनकी तरफ देखने का जी भी ना करे, चाहे सोने के रथ उतर रहे हों इनके घर| 


एक और कड़वी बात, कल को पहले की भांति कोई आक्रांता आ गया तो उस वास्तविक अवस्था में यही सबसे पहले भाग के उनके दरबारी बनेंगे जैसे इनके पुरखे बने| इसलिए इनके मुद्दों पर वक्त-ऊर्जा-दिमाग ज्याया मत करो, बल्कि नजर रखो व् कहीं स्थिति 2013 जैसी बनती दिखे तो उसको होने से पहले ही रोकने को अलर्ट रहो| अपने-अपने गाम-गली में यह जिम्मेदारी निभाओ; यही हमें हमारे दादा खेड़े सिखाते हैं|  


जय यौधेय! - फूल मलिक 

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