Thursday, 19 May 2022

पंडित हिमांशुकुमार की पोस्ट!

हमारे परदादा पंडित बिहारीलाल शर्मा आर्यसमाजी थे। 


वे महर्षि दयानंद के उत्तर प्रदेश में पहले शिष्य थे। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद मुज़फ़्फ़रनगर में हमारे घर में ठहरते थे। 


उस समय आर्यसमाज वाले डंके की चोट पर प्रचार करते थे कि राम कृष्ण शिव भगवान नहीं है इनकी पूजा मत करो मंदिर मत जाओ मूर्तिपूजा मत करो। आर्यसमाजी अवतारवाद को नहीं मानते। वे राम कृष्ण या शंकर को भगवान का अवतार नहीं मानते। 


उस समय आर्यसमाजी सनातनियों से शास्त्रार्थ करते थे। बड़ी-बड़ी सभाएं होती थी और उसमें सनातनी और आर्यसमाजियों के बीच शास्त्रार्थ होते थे। जिसमें आर्यसमाजी सनातनियों के अवतारों की ख़ूब खिल्ली उड़ाते थे और उनके सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा देते थे। 


एक दौर था कि लाखों लोग सनातनधर्म छोड़कर आर्यसमाजी बन गये। भगतसिंह का परिवार भी आर्यसमाजी था। 


आज आरएसएस ने देश का माहौल इतना ज़हरीला बना दिया है। आरएसएस ने हिंदूधर्म को इतना कट्टर और ख़तरनाक बना दिया है कि आज अगर कोई राम-कृष्ण को अवतार मानने से मना करे तो संघी और बजरंग दल की भीड़ उसके घर जाकर उसका घर जला देगी। आज से 70 साल पहले हिंदुओं में जितनी सहिष्णुता थी आज वह भी आरएसएस ने ख़त्म कर दी है। 


हिंदुओं में शास्त्रार्थ की परंपरा थी आप खुलकर चर्चा कर सकते थे एक दूसरे के मतों का खंडन कर सकते थे अपना मत रख सकते थे वही हिंदू धर्म की विशेषता थी। आज आरएसएस ने ऐसा माहौल बना दिया है कि आप धर्म के ऊपर शास्त्रार्थ की बात सोच भी नहीं सकते आप की हत्या कर दी जाएगी या पुलिस में आप के ख़िलाफ़ एफ़आईआर कर दी जायेगी कि इन्होंने मेरी धार्मिक भावनाओं का अपमान किया है। 


हिंदुओं को गंभीरता से सोचना चाहिये कि आरएसएस द्वारा उनके धर्म को क्या से क्या बना दिया गया है ! अगर हम चर्चा नहीं कर सकते शास्त्रार्थ नहीं कर सकते अपने स्वतंत्र विचार नहीं रख सकते तो इससे भयानक कट्टरता क्या होगी हमसे ज्यादा कट्टर धर्म कौन-सा धर्म हुआ हम अपनी कौन-सी सहिष्णुता की डींग हांकते हैं ?


मैं मानता हूं ईसाईयों मुसलमानों यहूदियों के धर्म में परंपरा ही धर्म है। वहां अगर आप परंपरा छोड़ेंगे तो आप धर्म से बाहर हो जायेंगे। लेकिन भारत में धर्म हमेशा से शोध यानी खोज का विषय रहा है भारत में सत्य की खोज की जाती है और नये सत्य को स्वीकार किया जाता है। 


भारत का धर्म कभी परंपरा के पालन को मान्यता देनेवाला नहीं रहा हमारे यहां सत्य खोज लेने के बाद 'नेति नेति' कहा जाता था अर्थात यह भी नहीं यह भी नहीं अर्थात जाओ और नये सत्य खोजो ! लेकिन आरएसएस ने हर नये सत्य के लिए दरवाज़ा बंद कर दिया और अवतारवाद को सनातन धर्म और हिंदू धर्म का रूढ़ सिद्धांत बना दिया। 


भारत में षड्दर्शन थे जिसमें वैदिक दर्शन मात्र एक दर्शन था।  इसके अलावा यहां सांख्य योग न्याय मीमांसा वैशेषिका वेदान्त दर्शन भी थे


सांख्य दर्शन ईश्वर को नहीं मानता इसी तरह यहां अन्य अनीश्वरवादी दर्शन भी थे जो ईश्वर को मानते ही नहीं जिसमें जैन दर्शन है बौद्ध दर्शन है लोकायत यानी चार्वाक दर्शन है।  आज अगर आप कहे कि मैं ईश्वर को नहीं मानता मैं राम को भगवान नहीं मानता या मैं शंकर को भगवान नहीं मानता तो आप की हत्या की जा सकती है। 


भारत का जो धर्मविचार इतना विशाल समुंदर जैसा था उसे आरएसएस ने एक छोटी-सी गंदी नाली में बदल दिया है। इस गंदी नाली में तैरने वाली कुछ मछलियों और कीड़ों को धर्म रक्षक बना दिया गया है। और भारतीय धर्म विचार का जो विशाल महासागर था उसकी चर्चा को भी अपराध घोषित कर दिया गया है। 


आज मैं खुद को अनीश्वरवादी विचारों के ज्यादा नजदीक पाता हूं मुझे लोकायत और बुद्ध के विचार ज्यादा सत्य और व्यवहारिक लगते हैं। लेकिन अपने इन विचारों के कारण मुझे रोज गाली खानी पड़ती है 


मुझे रोज लगता है कि पता नहीं किस दिन मेरे खिलाफ कोई भाजपाई या संघी बजरंगी एफआईआर कर देगा और पुलिस द्वारा मुझे उठा कर जेल में बंद कर दिया जाएगा


हमारा धार्मिक सामाजिक राजनीतिक चिंतन रोज अपने स्तर से नीचे गिरता जा रहा है


भारत विचारहीनता के भयानक दौर में पहुंच चुका है जहां कोई भी नया दर्शन नया विचार नया रास्ता नहीं खोजा जा सकता क्योंकि ऐसा करना आपकी जान ले सकता है या आप को जेल पहुंचा सकता है ...! 

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