ऐसे लोग एक नंबर के उलंड होते हैं, खाना-खाने का सलीका नहीं और लगते हैं ज्ञान पेलने|
इनसे कोई पूछने वाला हो कि
1) 2020-21 के तीनों काले कृषि कानून वापिस करवाने के फ्रंट पर सफल किसान आंदोलन का आत्मिक बल कौनसी विचारधारा थी? क्यों इस किसान आंदोलन में चौधरी चरण सिंह का ड्राफ्टेड कच्चा मंडी कानून, सर छोटूराम ने फिट बना के APMC एक्ट की शक्ल दे के तब के यूनाइटेड पंजाब में जो लागू किया था, वह इस आंदोलन में 2020 में भी मुख्य मुद्दा था?
2) क्यों सरदार अजित सिंह जी का 1907 का "पगड़ी संभाल जट्टा" आंदोलन ही 2020-21 के किसान आंदोलन की भी प्रेरणा बना?
3) सर छोटूराम, जिनको "किसानी व् उदारवाद" के दुश्मन बता गए, उन्हीं झुंडों का पीएम क्यों 2017 में सर छोटूराम के स्टेचू का उद्धघाटन करने चला आता है; अगर वह आज पुराने व् यथार्थहीन हो चुके हैं तो?
कहते हैं कि यूनियनिस्ट मिशन ने जाट को बाकी समाज से अलग-थलग कर दिया| कौनसी पार्टी, कौनसे नेता के आदेश पर ऐसा कर रहे हो, महाराज?
पहली तो बात यह आइडियोलॉजी किसी की मोहताज नहीं, यह अपने आप में इतना दम रखती है कि यह खुद ही जिन्दा हो-हो बाहर आती रहेगी जैसे कि 2020-21 के किसान आंदोलन में उभरी| हर छोटा-बड़ा किसान नेता, वह भी हर धर्म का पूरे आंदोलन के दौरान जब-तब सर छोटूराम, चौधरी चरण सिंह व् सरदार अजित सिंह को याद करता नजर आया, उनके जन्मदिन व् मरणदिन मनाता आया व् तुम कहते हो यह खत्म हो चुके?
तुम अगर अपनी कौम की आभा-शोभा-सुश्रुषा नहीं ही संभाल व् कर सकते तो जाओ कुछ उनसे सीखो जो यूनिवर्सल चीजों को भी उसके नाम से रखता है व् फिर भी उसपे जातिवाद का टैग नहीं लगने देता| उनके बनाए शब्दों को कैसे बोल-बरत लेते हो बे तुम अगर एक ऐसी आइडियोलॉजी के बोझ से टूट जाते हो तो जो तुम्हारे अपने पुरखों के तप-बल ने विश्व स्तर तक जानी-पहचनवाई? इसका मतलब तो जब हम इसी तर्ज पर "जाट-जाटांड-जट्टचरियता-जाटकी" ले के आएंगे तब तो तुम बेशुद्ध हो के भागने लगोगे? हम एक भाषा के सम्मान में "हरयाणा-हरयाणवी-हरयाणत" लाएंगे तो तुम तो बावले ही हो जाओगे?
"जाटड़ा और काटड़ा, अपने को ही मारे" की गलत-उछाली गई कहावत की तर्ज पर, तुम्हें यह पुरानापन क्रमश: 77-33 साल पहले हो के गए सर छोटूराम व् चौधरी चरण सिंह में दिखने लगा है तो यह जो हजारों साल पुराणी के नाम पे माइथोलॉजी ढोते हो, उसपे तो तुमने कोहराम मचा देना चाहिए? पर हमें तो कहीं नहीं तुम चुसकते दीखते?
ऐसा है, कौम के नाम पे चुप रहना सीखो| एक शब्द होता है "KINSHIP" पहले उसको पढ़ो व् जानो| अभी तुम जिस आइडियोलॉजी पे कीचड़ उछाल रहे हो, उसके नर्सरी के लायक भी नहीं हो तुम| किसी नेता व् पार्टी की चमचागिरी मारनी है तो अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए खूब मारो, सभी मारते हैं परन्तु उसके चक्कर में नंबर बनाने को अपने पुरखों की आइडियोलॉजी, हस्ती व् विरासत को मत घसीटो| यूनियनिस्ट मिशन बनने को कलेजा चाहिए, छिछोरापन नहीं|
तुम वो वाले मृग हो जो अपनी ही कस्तूरी की खुशबु को संभालने-समझने की बजाए, उसमें मदहोश व् बावला हुआ आखिरकार मृत्यु को प्राप्त होता है; यही हश्र होगा तुम्हारा अंतदिन ऐ कौम के पुरखों के स्थापित सिद्धांतों व् शौर्यों पर गरद उछालने वाले/वालो| तुम शुद्रमती से ज्यादा कुछ नहीं हो, कहीं अपने आप कोआइडियोलॉजी के "चाणक्य" टाइप कुछ समझने की गलतफहमी में हो| पहले इतना ही सीख लो कि अपनी कौम को जिस आइडियोलॉजी ने 1907 में भी बचाया व् 2020-21 में भी देश के पीएम को झुकाया; उस पर आक्षेप लगा के किसी नेता-पार्टी की चाटुकारिता तो कर लोगे; परन्तु खुद को व् तुम्हें मानने वालों को पुरखों की बुलंदी की जड़ों से काट दोगे|
ऐसा करके तुम तो तुम्हारे पार्टी-नेता को खुश कर लोगे, परन्तु समाज-कौम को सिकोड़ के रख देती हैं तुम्हारे जैसों की यह हरकतें| इसलिए राजनीति करने को जो चाहे करो, परन्तु पुरखों की वैचारिक विरासत को निशाना मत बनाओ| वह उन जमानों में एक ब्राह्मण ऋषि दयानन्द से ग्रामीण व् तथाकथित अक्षरी अनपढ़ होते हुए 1875 में "जाट जी" व् "जाट देवता" कहलवा-लिखवा चले गए; तुम्हारी है क्या आज के दिन उसी आभा को कायम रखने की बिसात? या कहलवा-लिखवा लिया फिर से किसी से या किसी ने लिख दिया हो फिर से उसकी लेखनी में "जाट देवता" व् "जाट जी"? नहीं, बल्कि उल्टा 35 बनाम 1 झेल रहे हो| तो खामोश हो के पहले पुरखों के तेज को सहन करने की औकात बनाओ|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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