अक्सर यह कहा जाता है कि मुगलों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया थ, लेकिन अंग्रेजी शासन के समय के आंकड़े कुछ और ही कह रहे है, देखिये सलंगित पन्ना।
1881 की जनगणना के मुताबिक संयुक्त पंजाब में हिन्दू जाटों की जनसंख्या 14 लाख 45 हजार थी। पचास वर्ष बाद अर्थात 1931 में जनसंख्या होनी चाहिए थी 20 लाख 76 हजार लेकिन घटकर 9 लाख 92 हजार रह गई। संकेत साफ है कि अंग्रेजी शासन के इन 50 सालों में 50%जाट सिक्ख व मुसलमान बन गए। इस दौरान हिंदुओं की आबादी 43.8%से घटकर 30.2%हो गई व सिक्खों की आबादी 8.2% से बढ़कर 14.3% व मुसलमानों की आबादी 40.6% से बढ़कर 52.2% हो गई।
जाटों ने धर्म परिवर्तन इसलिए किया क्योंकि फंडियों की सनातनी चतुर्वर्णीय व्यवस्था, इनको ठीक वैसे ही जलील कर रहा थी, जैसे अब 2014 से जब से यह सरकार आई है 35 बनाम 1 के नाम पर कर रही है। पाखंड व अंधविश्वास की लूट उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही थी।
जाट सदा से प्रकृति के नजदीक रहा है। इंसान जीवन मे सरलता ढूंढता है लेकिन सनातन ने कर्मकांडों का जंजाल गूंथ दिया था जिससे मुक्ति के लिए धर्म परिवर्तन करना पड़ा।
हालांकि दयानंद सरस्वती के अथक प्रयासों के कारण जाटों को धर्म परिवर्तन से रोका गया था। चुपके से जाटों के "दादा नगर खेड़ों/बाबा भूमियों/दादा भैयों" से मूर्तिपूजा नहीं करने का कांसेप्ट इनको बिना इस कांसेप्ट का क्रेडिट दिए उठाया व् "जाट जी" और "जाट देवता" लिख-लिख स्तुति करी तो जाट रुके| आज आर्य समाजी ही राममंदिर निर्माण के लिए बधाइयां दे रहे है,चंदा दे रहे है जैसे वहाँ मूर्ति नहीं लगनी हो| खैर,धरती में कोई धर्म नहीं होता है। जबरदस्ती किसी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। धर्म लोगों का ऐच्छिक विषय है।
जात नहीं बदली जा सकती है इसलिए धर्म बदलकर जीवन मे सरलीकरण ढूंढा जाता रहा है। अँधभक्तों की सुविधा के लिए यह बताना जरूरी है कि अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों ने पकड़कर रंगून भेज दिया था व उसके बाद पूरे भारत पर अंग्रेजों का राज कायम हो गया था।
1857 के बाद में हुए धर्म परिवर्तन का मुगलों से कोई संबंध नहीं था। वैसे भी मुगलों के दरबार मे बैठकर साहित्य रचने वाले ब्राह्मण जजिया कर से मुक्त रहते थे। अगर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन का मसला भी होता तो सबसे पहले ब्राह्मण इस्लाम मे होते!
लेख: फूल मलिक द्वारा सोधित, मूलत: लेखक पंडित हिमांशु कुमार
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