कभी मीडिया, कभी नेता, कभी कथावाचक; इन सब पर किसी भी जाति के शब्दों के इस्तेमाल पर कानूनी बैन होना चाहिए; ठीक वैसे ही जैसे "मार्केटिंग का कॉर्पोरेट लॉ है" - marketing law for corporates"| कॉर्पोरेट लॉ - corporate law कहता है कि बिना कॉम्पिटिटर - competitor का नाम लिए, उसकी बुराई किए, उससे तुलना किए; सिर्फ अपनी ब्रांड-प्रोडक्ट - brand-product की प्रमोशन करो| और इसके लिए वजह दी जाती है हैल्दी कम्पटीशन - healthy competition की व् कॉर्पोरेट के आपसी रिश्तों की - coporate relations management| यही मीडिया, नेता व् कथावाचकों पर होना चाहिए| आज के दिन इन मामलों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है "जाट" शब्द का और वह भी बड़े ही वाहियात और सेलेक्टिव तरीके से|
कथावाचक हैं इनको तो बाकी किसी जाति का शब्द दीखता ही नहीं, "जाट" के अलावा; ऐसे बना के दिखाएंगे कि ना तो धरती पर जाट से बड़ा कोई भगत ना दाता| और जब इसी जाट पे 35 बनाम 1 होती है तो सबसे बड़ी दड्ड (घुन्नी चुप्पी) यही मारते हैं|
मीडिया तो पिछले 2 दशकों से तो खासतौर से देखते ही आ रहे हो|
हद इन नेताओं ने कर रखी है, मलाल जाति-विशेष में भाजपा को थोक में वोट दे के भी, सीएम की कुर्सी नहीं मिलने का और भाजपा को डराने का औढ़ा "जाट" के जरिए| बल्या, "ये तो राज देख रे हैं, ये तेरे से कैसे खुश होंगे"| रै भले मानस, राज देखने की बात है तो तेरे आळे सेण्टर के टोटल 70 साल में से कितने साल राज देख रे सें, उसको देखते हुए तो फेर अदला-बदली ही करवा दो ना; स्टेट का राज थम ले लो और सेण्टर का हमने दे दो| या आपको जो माँगना सीधी मारो बीजेपी के टक्कर, जाटों को क्यों इस नेगेटिविटी में घसीट रहे हो? पॉजिटिव शायद ही कुछ करके दिया हो जाट के लिए आज तक, पर नेगेटिव में घसीटेंगे|
यार मतलब "जाट" शब्द चौराहे पे खड़ी गाय बना दी; वैसे तो माता और खुशामद व् हक के नाम पर "तत्तत आगे नैं चाल"|
जाट समाज के जागरूक लोगों को, इन पहलुओं पर बात करनी चाहिए|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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