यह बात उन लोगों के लिए सबक होना चाहिए जो यह समझते हैं कि तुम फंडियों से अपनापन दिखाने की होड़ में खुद को व् खुद के परिवार को, अपने पड़दादा को पब्लिकली "असली संघी" भी कह लोगे तो यह तुम्हें अपना मान लेंगे या मानने लगेंगे| किसान आंदोलन के दौरान बीजेपी से समर्थन वापस लेने बारे हरयाणा विधानसभा में हुई बहस याद है ना?
हमारे जैसे समझाने चलते हैं तो हमें जातिवादी बोल के, 50 साल पुराने विचार बोल के किनारा काटने लगते हो और फिर 100 साल पुराने विचार वालों से गठबंधन करे मिलते हो|
तुम इनसे जितना चाहे चिपक लो, यह तुम्हारा इस्तेमाल करके; तुम्हें फेंकना अच्छे से जानते हैं| इन्होनें बाबा रामरहीम नहीं बख्शा जिसने बैठे-बिठाए 2014 में यह सत्ता में ला दिए थे हरयाणा में; तुम्हें धरते ये सर पे?
अपने कौम-कल्चर के भाईयों से सरजोड़ के नहीं रखने के यही नतीजे होते हैं|
कितनी कोशिश की थी हुड्डा साहब ने कि 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही कि आ जाओ मिलके सरकार बना लेते हैं, डिप्टी सीएम भी बन जाना; परन्तु नहीं|
"अपना मारे, छाँव में गेरे" की लाइन पे चलते हुए उस वक्त अलायन्स कर लेते कांग्रेस व् जजपा तो आज जजपा के साथ यह कहानी नहीं बनती कि बीजेपी का साथ दे के अपनी क्रेडिट वैल्यू भी खोई, अकेले भी छोड़ दिए गए बीच आधी-टर्म और आगे के रास्ते भी बंद कर लिए| चौधरी ओमप्रकाश चौटाला की पहली सजा के वक्त तो कांग्रेस व् हुड्डा जी दोषी बता दिए; अब रुकवा ली सजा; स्टेट-सेण्टर दोनों जगह गठबंधन की सरकार होते हुए? ना दादा की रुकवा पाए व् अभी पिता-काका का भी पता नहीं कि शायद फिर से हो जाए|
हालाँकि यह राजनीति है इसलिए इसमें जो इस पल सही हो वह जरूरी नहीं कि हर वक्त सही ही हो; परन्तु वह जरूर हर वक्त सही ही होता है जो आइडियोलॉजी पकड़े रहता है, किनशिप थामे रहता है| और बीजेपी व् आरएसएस को यह अच्छे से आता है कि कौनसी, किसलिए, किनके लिए व् किसकी आइडियोलॉजी पकड़नी है व् वह उसको पकड़े चल रही है; भले ही उससे भला सिर्फ फंडियों का होता हो|
फंडियों ने कौन अपना और कौन "यूज एंड थ्रो" सब निर्धारित कर रखा होता है| यह बात सर छोटूराम समझाते-समझाते जा लिए धरती पर से| फंडियों-संघियों की ताकत यह है कि यह किसी भी हालत में अपनी आइडियोलॉजी नहीं छोड़ते; चाहे यह भूखे मर जाएँ या हँघाए छकें| भूखे होंगे तो मांग के खा लेंगे परन्तु आइडियोलॉजी नहीं छोड़ेंगे और जब छके होते हैं तो वही करते हैं जो बाबा रामरहीम के साथ किया या अभी जजपा व् चौटाला परिवार के साथ हो रहा है कि साथ दे के भी, सरकारें बनवा के भी निताणे के निताणे| और आइडियोलॉजी एक व्यक्ति या पीढ़ी का काम नहीं, इसको कायम रखना पीढ़ी-दर-पीढ़ी रिले-रेस जैसा होता है|
जजपा वालों के लिए मेरे अंदर कोई द्वेष आ ही नहीं सकता अपितु दुःख व् अपनापन ही झलक सकता है क्योंकि हम हैं तो एक ही कल्चर-किनशिप के| अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा अगर जजपा इनको लात मार के, कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ले तो| आ जाओ इनको छोड़ के, मौका है अभी भी| यह डिप्टी सीएम पद तो कांग्रेस के साथ भी कायम रह जायेगा|
रै रलदू, हुक्का भर ले भाई, स्थाई व् लम्बी राजनीति की ABCD सीखने आ रहा हूँ तेरे से| भाई-भाई को बाँट के कैसे खाना होता है व् बूढ़े जो वह कहावत बता गए ना कि
चलना राह का चाहे फेर क्यों ना हो,
खाना घर का, चाहे जहर क्यों ना हो!
सफर रेल का, चाहे बार क्यों ना हो,
और बैठना भाईयों का, चाहे बैर क्यों ना हो!
इसपे बौराएँगे व् ठहाके लगाएंगे!
जय यौधेय! - फूल मलिक
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