Sunday, 3 July 2022

दुनियां में "दादा नगर खेड़ों" जैसी साफ़-सुथरी-स्पष्ट-निश्छल "धार्मिक फिलोसॉफी" का कोई सानी नहीं!

सबसे पहले दादा नगर खेड़ा के पर्यायवाची: दादा नगर भैया, बाबा भूमिया, गाम खेड़ा, जठेरा आदि|


कहां पाया जाता है: उदारवादी जमींदारे की खापलैंड व् मिसललैंड पर, उदारवादी जमींदारी कल्चर की आध्यात्मिक फिलोसॉफी है दादा नगर खेड़ा|

क्या होता है दादा नगर खेड़ा: गाम को बसाने वाले पहले पुरखों द्वारा स्थापित गाम की नींव का स्थल; जिसको केंद्रबिंदु मान के उसके इर्दगिर्द गाम बसा होता है| कहीं-कहीं इसको गाम के प्रथम मृत व्यक्ति (पुरुष या महिला) की याद में बनाया भी कहा जाता है|

साफ़-सुथरी-स्पष्ट-निश्छल "धार्मिक फिलोसॉफी" कैसे:

1) 100% औरतों की लीडरशिप की धोक-ज्योत होती है इनमें|
2) मूर्ती पूजा रहित सिद्धांत है|
3) कोई मर्द धर्मप्रतिनिधि नहीं बैठाया जाता इनपे|
4) खुद का लाया हुआ प्रसाद खुद ही बांटना होता है|
5) धर्म-वर्ण-जाति की कोई बाध्यता नहीं, गाम-नगर में बसने वाला कोई भी रंग-नश्ल का इंसान इनको धोक सकता है|

यानि धर्म के नाम पर किसी भी प्रकार के आर्थिक भ्र्ष्टाचार, सामाजिक व् नश्लीय भेदभाव, औरतों के प्रति दुराचार के रास्ते; इसके सिद्धांतों में ही बंद कर दिए थे पुरखों ने|

और इसीलिए फंडी वर्ग इनको हड़पना चाहता है, क्योंकि उसको वर्णवाद चाहिए, धर्म के नाम पर दान रुपी आमदनी चाहिए, औरतों पर आधिपत्य चाहिए (फंडियों के बनाए हुए तथाकथित धर्म स्थलों में धर्मप्रतिनिधि पुरुष बैठते हैं ना)|

इन खेड़ों/भैयों/भूमियों के बालकों को यह जानकारी जरूर पास करें, ताकि वह समझें कि वाकई में धर्म के नाम पर इंसानियत, सामाजिकता, बराबरी, संवेदना पालना कहते हैं तो उनके पुरखों के दिए इस धार्मिक सिद्धांत को कहते हैं|

उद्घोषणा: लेखक का किसी भी प्रकार की अन्य सच्ची-झूठी धार्मिक मान्यता से कोई विरोध नहीं है, लेखक ने सिर्फ वह बातें अपने लोगों के मध्य रखी हैं जो उसको उसके पुरखों से विरासत में मिली हैं, उसकी किनशिप हैं|

जय यौधेय! - फूल मलिक

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