मेरी आपबीती है:
वीकेंड पार्टी थी, 24 जणे हम इकट्ठे हो रखे थे (17 लड़के 7 लड़कियां) व्, हरयाणा-यूपी के हम 3 ही थे, एक मैं निडाना का जाट, एक फतेहाबाद का अरोड़ा/खत्री व् एक बिजनौर का शर्मा; बाकी सब गुजराती-मराठी या साउथ इंडियन| खाना-पीना, नाच-गीत-संगीत सब था| राउंड चल रहा था कि अपनी-अपनी स्टेट के लोक-कल्चर के गानों के सिर्फ मुखड़े यूट्यूब पे लगाएंगे व् बाकी सब उनपे डांस करेंगे| हरयाणा का नंबर आया तो फतेहाबाद वाले ने एक थर्ड-ग्रेड हरयाणवी रागणी, जिसमें गायक ने शराब पी रखी व् गाते-गाते नीचे गिर रहा, वह लगा दी व् तंज सा कसता हुआ बोला कि यही है जी हरयाणा में तो लोकगीतों व् कल्चर के नाम पे| यूपी वाला शर्मा भी सुर-में-सुर मिला बैठा|
मुझे बहुत महसूस हुई, मखा यह कैसे लोग, जो हरयाणवी को अपनी बता भी रहे व् उसका बेस्ट दिखाने की बजाए, सबसे घटिया दिखा रहे| मैं मेरा जूस का गिलास ऊठा के बालकनी में आ गया| पीछे-पीछे वह अरोड़ा व् शर्मा भी आ गए| और मेरे को लगे उपदेश देने कि जब तुम्हारे यहाँ है ही यह सब तो हम क्या करें? मैंने कहा, "हरयाणवी ही गानों पे अगर यह पूरी पार्टी नचा दी तो क्या इस बालकनी से कूद के मरोगे?" बोले, भूल जाओ तुम घोड़ुओं की चीजों को कोई पसंद करेगा व् वो भी यह कॉर्पोरेट व् यूनिवर्सिटियों में काम करने वाली क्लास तो कतई भी नहीं| मखा, मैं तो उम्मीद करूँ था कि तुम अपनी हरकत पे शर्मिंदा होवोगे परन्तु अब तुम इस बालकनी से कूदने की तैयारी कर लो, क्योंकि ईब हरयाणवी गाणों पे गुजरातन-मराठण व् साउथ इंडियन नाचेंगी और तुम खड़े देखोगे|
बस यह कह के मैं गया भीतर और यूट्यूब पे गाने चलाने की यह कहते हुए कमांड ली कि अभी आपने हरयाणवी का वर्स्ट देखा, अब बेस्ट दिखाता हूँ| उन दोनों का खून फूंकने को पहला ही गाणा, "मैं सूरज तू चंद्रावल, म्हारा जोड़ा ठाठ का" का मुखड़ा बजा के; "जीज्जा तू काला, मैं गोरी घणी" लगा दिया| दो जणियों ने कही की यह होता है म्यूजिक| और फिर तो सारे चंद्रावल के, लाडोबसंती, पनघट, पाणी आळी से ले गिटपिट और उस वक्त की फेमस एलबम्स से लगभग 20 गाणे एक-के बाद एक बजा छोड़े| उस ग्रुप को यह पता था कि यह अगर अड़ के बैठ गया तो इसको जिद्द पे लगा देने वालों के "मानसिक उत्पीड़न" करके छोड़ता है ये; इसलिए बाकी सब को जहाँ अपनी स्टेट के एक बार में अधिकतम 5 गानों के मुखड़ों पे नचवाना था, मैंने लगातार 20 पे नचवा दिए|
वो दोनों कभी कोने झांके, कभी टुकर-टुकर देखें|
बिजनौर वाला तो ऐसा डरा उस दिन के बाद, एक दिन कोर्ट में वीजा के काम से मिल गया; मेरे से 5 नंबर आगे खड़ा था| देखते ही जैसे सहम सा गया हो; फॉर्मल सी हाय-हेलो हुई| मेरा ध्यान 2 मिनट काउंटर वाली से अपने पेपर्स चेक करवाने में ही लगा था कि मुड़ के देखा तो वह गायब था| यानि जा चुका था वहां से| मखा, ले भाई आज सेधेगा; एक तो वीजा की मुश्किल से अपॉइंटमेंट्स मिलती हैं और आज वाली इसकी मेरी वजह से खाली गई; बेरा ना के श्राप दे के मुझे मारता हुआ गया होगा|
मैंने भी करी, "मखा न्यू जाट मरैगा तो जाट नैं जिवा भी देगा कौन"| यह निडरता मेरे दादाओं की उस सीख से आती है मेरे में जो वो कूट-कूट के भर गए मेरे में कि, "पोता, जिस जाट के आगे कोई वर्णवादी फंडी ज्ञान झाड़ जा, उस जाट नैं मरे बराबर मान लिए"|
इसलिए खेत में खड़े हो, या कॉर्पोरेट में; अपने पुरखों की अणख निभा के रखो| वरना यह ऐसे परजीवी हैं इनको पोहंचा दोगे, सीधे सर पे मूतते पावैंगे| पुरखों की अणख निभाने को, अपमान झेलना हो तो झेलो, कोई छोटा दिखावै तो दिखाने दो; पर कभी उसकी उड्डंदता को स्वीकार मत करो| पुरखों की अणख तुम्हें अपने आप साहम देगी, इतना विश्वास हमेशा रखना उनमें|
उद्घोषणा: इस पोस्ट में जिस किसी को जातिवाद दीखता हो, दीखता रहे; जो किसी कल्चर का सम्मान नहीं जानता, वो मेरा क्या ही सम्मान करेगा; उसको उसी रूप में सबके सामने नहीं रखेंगे तो लोग बुद्धू व् दब्बू समझने लगते हैं तुम्हें|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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