आगे बढ़ने से पहले एक तो यह जान लें कि इंडिया के जितने भी जानेमाने गुरु-प्रवचन देने वाले हुए हैं या हैं लगभग सभी छुपे रूप से जिनसे मनोविज्ञान का ज्ञान चुराते हैं, आईये सीधा उनमें से एक सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत से समझते हैं कि क्या बला है ईगो। सिगमंड फ्रायड के सिद्धांत के अनुसार हर इंसान की तीन तरह की न्यूरोलॉजी यानि मानसिक अवस्था होती हैं, जिनमें ईगो आपको बीच में लटकाने वाली चीज है:
(1) आईडी/ID (इदम) न्यूरोलॉजी: जैसे आपकी बाह्य शक्ल-सूरत की एक सामाजिक आइडेंटिटी व् नाम होता है, ऐसे ही यह आपकी आंतरिक आइडेंटिटी होती है। आपकी आंतरिक आइडेंटिटी इच्छा / वासना / आकांक्षा / लालच / मूढ़ता से बनी होती है। आईडी व्यक्तित्व इंसान व् पशु दोनों में समान पाया जाने वाला एक पाशविक (पशु) हिस्सा है, जो कि ज्यादा यौन-क्रिया करने, जीवित रहने और पनपने मात्र तक की एक अचेत अवस्था है, जो बच्चे को दंभी अथवा दब्बू दोनों में से एक बना देती है। पशु इससे आगे विकसित नहीं हो पाते, परन्तु क्योंकि इंसान को प्रकृति ने इससे आगे विकसित होने का गुर बख्शा है तो वह अपने आपको इससे आगे विकसित कर सकता/ती है। जो ऐसा नहीं करता, वह खुद के शरीर को खुद खाने लगता है। सही समझ, देखभाल व् माहौल नहीं मिल पाने की वजह से शरीर के विकास का खुद ही दुश्मन बन बैठता है। और अगर यह दुश्मनी चिरस्थाई हो जाए तो ऐसा व्यक्ति "कस्तूरी वाले हिरण" की ज्यों कस्तूरी की तलाश में ही मर जाता/जाती है। इनको "भरी थाली को ठोकर मारने वाले भी कहा जाता है"। यह समस्या घर के भीतर-बाहर दोनों जगह से आपके बच्चे में आ सकती है। परिवार के भीतर बचपन में बच्चों को इस ट्रैक पर जानबूझकर भी धकेला जा सकता है व् जवानी या किशोरावस्था में वह खुद भी इसका शिकार हो सकता/सकती है। परन्तु अगर जन्म से 10 साल तक का वक्त बच्चे का सही देखभाल, निगरानी व् जिम्मेदारी से निकलवा दिया जाए तो किशोरावस्था में उसमें यह समस्या आने के आसार नगण्य होते हैं। घर से बाहर फंडी का गपोड़ ज्ञान व् प्रवचन आपके बच्चे को इसी अवस्था तक रोकने हेतु फंडियों के साइकोलॉजिकल वॉर गेम का हिस्सा होता है, इसलिए अपने बच्चों को इनसे अवश्य बचाएं।
(2) अहंकार/Ego (अहम) न्यूरोलॉजी: अहंकार वह जगह है जहां चेतन मन रहता है। यह एक यथार्थवादी और सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीके से आईडी/ID की जंगली इच्छाओं को पूरा करने के मुश्किल काम से भरा हुआ है। यह ID व् Super-Ego के मध्य की अवस्था है। यही वह स्टेज है जिसमें आपको लोगों से यह सुनने को मिलता है कि इसमें तो ईगो ही बहुत है। दरअसल यह अवस्था इस वजह से आती है क्योंकि आपने अभी तक अपनी नैतिकता व् विवेक को नहीं पहचाना होता है। हर आदर्श अभिभावक को अपने बच्चों को इस अवस्था से अगली अवस्था तक नहीं ले जाने तक उनकी जिम्मेदारी अधूरी रहती है।
(3) सुपर अहंकार / Super-Ego (परम-अहम) न्यूरोलॉजी: सुपर-ईगो व्यक्तित्व का नैतिक घटक है और उसे उसके नैतिक मानकों को प्रदान करता है जिसके द्वारा अहंकार यानि Ego को संचालित किया जाना होता है। सुपर-ईगो द्वारा की गई आलोचनाएं, निषेध और अवरोध एक व्यक्ति के विवेक का निर्माण करते हैं, और इसकी सकारात्मक आकांक्षाएं और आदर्श व्यक्ति की आदर्श आत्म-छवि, या "अहंकार आदर्श" का प्रतिनिधित्व करते हैं। मूलरूप से कहा जाए तो आपके नैतिक मूल्य आपकी सुपर-ईगो हैं। इन तक पहुंचा हुआ व्यक्ति ही ईगो व् आईडी को कण्ट्रोल कर सकता है| इसलिए सुनिश्चित कीजिए कि आप या आपके बच्चे सुपर-ईगो तक विकसित किए गए हों|
और इन्हीं को हमारे महारथियों ने इनसे कॉपी मार तामसिक, राजसिक, सात्विक की व्याख्याएं घड़ रखी हैं; बिना इनको क्रेडिट दिए| यही काम है इन फंडियों का|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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