1) - फसल: कृषक है तो उसके लिए खेती की उपज उसकी फसल है, व्यापारी है तो उसका व्यापार उसकी फसल है, नौकर है तो उसकी नौकरी|
2) - नस्ल: आपकी अगली-पिछली पीढ़ियों के जैनेटिक्स|
3) - असल: आपके समुदाय की दार्शनिक विरासत यानि किनशिप|
फसल व् नस्ल की दुरुस्ती का भी आधार है असल| अगर आपका असल नहीं है अथवा अस्त-व्यस्त बिखरा हुआ है तो आपकी फसल व् नस्ल को फंडी जीमता है, वह भी डंके की चोट पर| बिना असल का समुदाय ही दरिद्र है|
ऐसे ही उदारवादी जमींदारी समुदाय है उत्तर-पश्चिमी भारत में, जिसका असल हैं उसके खाप-खेड़े-खेत| इतिहास में झाँक के देखो जब-जब यह समुदाय अपने असल पर दुरुस्त रहा है तो समाज की इकॉनमी की धुर्री रहा है| इसलिए इस दार्शनिक विरासत को सबसे ज्यादा तन्मयता से लीड करने वाली जाति को "जी" व् "देवता"; इसकी दार्शनिकता पर ही गिद्द-दृष्टि रखने वालों द्वारा इसीलिए लिखा-कहा-गाया गया; क्योंकि इसी दार्शनिकता के चलते यह समाज के इकनॉमिक (आर्थिंक) पहिये की धुर्री बनते आए| परन्तु यह इस लिखत व् गाने से सुस्त होता चला गया, क्योंकि यह इसके अपनों ने नहीं लिखी थी व् दिग्भर्मित करने वाली बात थी, जिसके चलते यह उदारवादी से अति-उदारवादी होता गया| व् अति किसी भी चीज की बुरी होती ही है, तो इसके नतीजतन आज इनका असल अस्त-व्यस्त हालत में है और जिसकी वजह से यह 35 बनाम 1 झेल रहा है| और झेलता ही रहेगा जब तक अपने असल यानि अपनी दार्शनिक विरासत को अस्त-व्यस्त से व्यस्त नहीं करेगा|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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