जालौर में दलित बच्चे द्वारा मटके से पानी पीने पर मारने से उसकी मौत का कारण बनने वाला है, एक वर्णवादी; परन्तु दोष जातिवाद पर?
तुम्हारे दिमाग में कोई लोचा है क्या? वर्णवाद को वर्णवाद कहो ना? खामखा, रॉंग चैनल (wrong channel) पकड़े चल रहे दशकों से! वर्णवाद का शोर करो, फिर देखो नतीजा! वह वर्णवाद जो ना कर्म आधारित व्यवहारिक है और ना जन्म आधारित! थोथा सगूफा छोड़ रखा है, ना जाने कब से!
यह जन्म आधार पर सही होता तो ब्राह्मण वर्ण में सब अध्यापक, वाचक ही पैदा होते; दिल्ली -एनसीआर में रिक्शा चलाने वाला हर दूसरा पांडे-मिश्रा ना होता या खेती करने वाले पैदा ना होते इस वर्ण में| ऐसे ही जन्म आधार पर क्षत्रिय वर्ण में क्षत्रिय ही पैदा होते व् वैश्य व् शूद्र वर्णों में वैश्य व् शूद्र ही पैदा होते; यह वर्ण-क्रॉस कर क्षत्रियों में शूद्रमति वाला, शूद्रों में वैश्यमति वाला पैदा ना होता|
और ना ही यह कर्म आधारित व्यवहारिक है; ऐसा होता तो एक प्रोफेसर बने शूद्र को ब्राह्मण का सर्टिफिकेट मिलता व् एक रिक्शा चलाने वाले ब्राह्मण को शूद्र का|
मिलता है क्या ऐसा कुछ, कोई संस्था, कोई सिस्टम जो कर्म-के-आधार पर वर्ण बदलता हो? नहीं है, बल्कि जो जहाँ पैदा हो रखा वह ताउम्र वही लाभ-हानि-दंश झेलते-भोगते हुए जीता है; जीता है या नहीं?
तो है कोई व्यहारिकता इस कांसेप्ट में; खामखा गोबर-ज्ञान में टूटे रहते हो व् इसी को ढोते रहते हो|
जय यौधेय! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment