Monday, 28 November 2022

पंजाब, हरयाणा, वेस्ट यूपी दिल्ली व् उत्तरी राजस्थान यानि गंगा से सिंधु नदी के बीच के क्षेत्र के प्राचीनतम बाशिंदों का कल्चर-खानपान-एथिकल-वैल्यू सिस्टम आज भी एक है!

इसको चार तीरीख़ों के जरिये देखें:


सन 1500 - जब सिख धर्म बना उससे पहले इस क्षेत्र में दो भाषाएँ हरयाणवी व् पंजाबी अघोषित व् अलिखित रूप में बोली जाती थी| सिख धर्म ने पंजाबी को लिपिबद्ध किया व् अपना साहित्य-इतिहास सब उसमें लिखा व् जगत को जनवाया| हरयाणवी भाषा वाले आज तलक भी इस मामले में लिपि नहीं बनाये हैं! लेकिन कल्चर-खानपान-पहनावा-एथिकल-वैल्यू सिस्टम (जिसको एक सामूहिक शब्द में "उदारवादी जमींदारी सभ्यता" यानि "सीरी-साझी वर्किंग कल्चर" भी कहते हैं) दोनों का बदस्तूर समान रहा|
सन 1858 - जब अंग्रेजों ने 1857 में सर्वखाप के किरदार की विशालता को देखते हुए, इस क्षेत्र को यमुना आर व् पार में इस कदर बाँट दिया कि यमुना के इधर-उधर रिश्ते तक बैन हुए; बताया जाता है| यानि इस क्षेत्र के अब पंजाब, हरयाणा आर व् हरयाणा पार; तीन हिस्से हो चुके थे; परन्तु कल्चर-खानपान-पहनावा-एथिकल-वैल्यू सिस्टम तीनों का बदस्तूर समान रहा|
सन 1911 - दिल्ली को खापलैंड के बीच अलग से चिन्हित करके, यहाँ देश की स्थाई राजधानी बनाई गई, जो कि इससे पहले कलकत्ता या मुग़लों के वक्त आगरा में रहती थी| आगरा से राजधानी दिल्ली में बादशाह शाहजहां के वक्त शिफ्ट हुई थी| परन्तु तब इस तरह अलग से चिन्हित नहीं हुई थी जैसे 1911 में हुई| यानि इस क्षेत्र के अब पंजाब, हरयाणा आर व् हरयाणा पार व् दिल्ली; चार हिस्से हो चुके थे; परन्तु कल्चर-खानपान-पहनावा-एथिकल-वैल्यू सिस्टम चारों का बदस्तूर समान रहा|
सन 1947 - भरतपुर व् धौलपुर रियासतें व् हरयाणा से लगते कुछ गाम-कस्बे राजस्थान में मिल दिए गए; जो कि इससे पहले इसी भूभाग में गिने जाते थे| भरतपुर व् धौलपुर तो बाकायदा हैं ही ब्रज बोली बोले जाने वाले क्षेत्र; जो कि हरयाणवी के दस रूपों में से एक है| परन्तु कल्चर-खानपान-पहनावा-एथिकल-वैल्यू सिस्टम पाँचों का बदस्तूर समान रहा|

और यही वजह रही हैं कि जब-जब इस भूभाग के किसी भी हिस्से में कोई आंदोलन खड़ा होता है तो उसका करंट; न्यूनतम इस क्षेत्र में समान रूप से जाता है; ताजा उदाहरण किसान आंदोलन| और यह तभी सम्भव है जब आपका कल्चर-खानपान-पहनावा-एथिकल-वैल्यू सिस्टम समान हो|

हाँ, एक चीज की कमी चली आ रही है, वह है हरयाणवी भाषा को लिपिबद्ध करके, पंजाबी की भांति इसको विकसित करना| यह काम हो जाए तो फिर अपनी भाषा होने के मामले में भी खापलैंड गिनी जायेगी; फ़िलहाल तो आयातित हिंदी को माथे लगाए चल रहे हैं| हिंदी की स्वीकार्यता अभी भी नहीं होने का आलम यह है कि ठेठ हरयाणवी गामों में आप आज भी शुद्ध हिंदी में बात कर दो तो; इतने में ही आपको अंग्रेजी काटने वाला मान लिया जाता है|

जय यौधेय! - फूल मलिक

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