Friday, 13 January 2023

14 जनवरी यानि "सर्वखाप अनुकम्पा दिवस", जिसको 'सकरात' के लबादे में ढांपने की कोशिश हुई है; वो क्यों व् कैसे?

सकरात को एक तरफ तो होली व् दिवाली जितना धार्मिक त्यौहार बना के दिखाया जाता है, परन्तु जब इनसे पूछो कि अच्छा ऐसा है तो बताओ फिर यह अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख के अनुसार क्यों मनता है; होली-दिवाली की भांति देसी महीनों की तारीखों में क्यों नहीं? तब सभी की नानी मर जाती है| 


जवाब इधर है: 14 जनवरी 1761; पुणे-पेशवाओं की पानीपत की तीसरी लड़ाई के मैदान में हार का दिन| वही दिन जिस दिन अब्दाली से हारे घायल-बदहवास पेशवे आसरे-आशियाने तलाश रहे थे, इस जनवरी यानि पोह-माह की ठिठुरती ठंड में| व् अब्दाली और मुग़लों के डर से कोई विरला ही इनको आसरा देने की हिम्मत कर रहा था| इसीलिए सकरात को शक-की-रात भी कहते हैं; क्योंकि कोई भी इनकी मदद करने हेतु आगे आने से डर रहा था, शक-शुबा में था कि इनकी मदद करना यानि मुग़लों से पंगा लेना| तब यह पंगा लिया "हरयाणा देश" (उस वक्त हरयाणा-दिल्ली-वेस्टर्न यूपी एक ही थे व् "हरयाणा देश" कहलाते थे) की खापों व् रोहतक-मेरठ-मैनपुरी-ब्रज-भरतपुर तक फैली लोहागढ़ की जाट रियासत ने अपनी उदारता के दर घायल-थके-ठिठुरते हुए पेशवाओं व् इनकी सेना के लिए खोले थे व् इनको खाना व् ओढ़ने-पहनने को कपड़े-लत्ते और कंबल दिए थे; मरहम-पट्टियां की थी| 


वैसे तो "देश हरयाणे" का हर गाम-नगरखेड़ा मानवता के इस मूल-सिद्धांत पर बसा हुआ है कि, "इतनी मानवता गाम का हर बासिन्दा पालेगा कि गाम में कोई भूखा-नंगा ना सोये'; और इसी वजह से यह कहावत चलती आई कि, "खापलैंड के गाम-नगरखेड़ों में आपको कोई भिखारी नहीं मिलेगा" (आशा है कि पिछले दशकों में हुए अंधाधुंध माइग्रेशन के बावजूद भी यह कहावत बरकरार रह पाई हो) परन्तु जब 14 जनवरी को इस मानवता की थ्योरी की अच्छाई बुलंदी पर थी तो इसको हर साल मनाया जाने लगा| 


परन्तु एक अनकहा सा कम्पटीशन वह लोग खाप-खेड़े-खेतों की इस डेमोक्रेटिक सोच से रखते हैं कि इसके यहाँ से जब भी कोई ऐसी अच्छाई की बहार बहती है तो हमारे सर छोटूराम की थ्योरी वाले फंडी या तो उसको मिटाने पे लग जाते हैं अन्यथा उसको किसी अन्य शब्द व् कांसेप्ट से ढांप के ओरिजिनल कांसेप्ट डकारने की कोशिश करते हैं| और यह सकरात शब्द इसी तरह की एक कोशिश है जो लोगों यह भुलवाना चाहता है कि किन्हीं वक्तों जाटों व् खापों ने क्या-क्या मानवतायें स्थापित की हुई हैं| 


खैर, हमारे लिखने व् बताने से यह अपनी आदत नहीं छोड़ने वाले| ऐसे में हम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपनी पीढ़ियों व् समाजों को इन कॉन्सेप्ट्स की ओरिजिनालिटी से अवगत करवाते चलें| बाकी सकरात भी सुथरा शब्द है इसको भी जारी रखो परन्तु इस दिन "सर्वखाप दयालुता/अनुकम्पा दिन" होता है यह जरूर अपनी पीढ़ियों कन्फर्म से बतावें| वरना फंडी तो लगे ही हुए हैं आपको धूर्त-क्रूर व् अन्यायकारी स्थापित करने पे; अब यह आपकी सक्रियता पर निर्भर है कि आप इनकी हरकतों से अपने असल-नस्ल को कैसे दुरुस्त सुनिश्चित रख सकते हैं|  


कोई-कोई इस वास्तविक तथ्य से इस तिथि को मोड़ने हेतु एक तर्क और जोड़ते हैं कि इस दिन सूर्य उत्तरार्ध होता है; बड़ा दिन होता है| बड़ा दिन 25 दिसंबर को मनता है, अंग्रेजी तिथि वाला; और 14 जनवरी अंग्रेजी तिथि ही है| तो अंग्रेजी तिथि में साल में दो बड़े दिन थोड़े ही हो जाएंगे| 


विशेष: हम मानवता के पालक हैं, हम ना किसी समाज से नफरत कर सकते ना हेय चाहे वह पेशवा हों या कोई अन्य, सभी का आदर व् स्थान यथावत रहे; परन्तु अपनी पहचान को भी यूँ किसी के द्वारा कुचलता नहीं देख सकते; इसीलिए बैलेंस की लाइन लेते हुए; इनका भी आदर-रखिये व् अपनी पहचान अगली पीढ़ियों को पास कीजिये!


जय यौधेय! - फूल मलिक 

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