(आप इसको अनुकम्पा की जगह दयालुता, उदारता, मानवता या जो भी शब्द ज्यादा जचे वह बोल-लिख सकते हो) जीते हुए पक्ष की परवाह ना करते हुए युद्ध में घायल हारी हुई सेना की मरहमपट्टी करने व् उनको आसरा देने का विश्व का सबसे बड़ा उदाहरण है यह| शायद ही अन्यत्र कोई इतना बड़ा उदाहरण विश्व में देखने को मिलता है| तारीख थी 14 जनवरी 1761, लड़ाई का मैदान था पानीपत, लड़ने वाले दो पक्ष थे पेशवा व् अब्दाली; लगभग दोपहर 2 बजे तक युद्ध का फैसला हो गया था; हारने वाला पक्ष था पेशवा, जीतने वाला पक्ष था अब्दाली; अब्दाली के भय से कोई विरला ही घायल-बदहवास माह-पोह की ठंड में ठिठुरते-भागते-पनाह ढूंढते सैनिकों को, मैदान में घायल पड़े सैनिकों को मदद देने की हिम्मत जुटा पा रहा था| ऐसे में सब अटकलों को विराम देते हुए, सामने आई तो उदारवादी जमींदारों की विश्व की सबसे प्राचीनतम सामाजिक संस्थाएं यानि खापें व् इन्हीं जमींदारों की सबसे मजबूत रियासत यानि लोहागढ़ जाट रियासत| कहते हैं महाराजा सूरजमल ने अकेले राज-खजाने से उस जमाने में 10 लाख रूपये इन घायल पेशवाओं की फर्स्ट-ऐड पर खर्च कर दिए थे; आज के दिन उस वक्त के 10 लाख रूपये कितने अरब-खरब बैठेंगे; किसी CA से पूछ लीजिये| इसके अतिरिक्त मुज़फ्फरनगर से ले कर धुर लोहागढ़ तक फैली खाप व् पालों ने गाम-गेल कितनी मदद की थी उसकी गिनती तो शायद कोई विरला ही कर सकता है| कुल मिलाकर इतनी ज्यादा कि शायद ही विश्व में आज तक ऐसी मदद हुई हो और वह भी तब जब जीतने वाला अब्दाली वहीँ सर पर बैठा था यानि दिल्ली में था| परन्तु पेशवाओं को हराने वाले की उसकी हिम्मत न पड़ी कि जाटों व् खापों को हारी हुई सेना की मदद करने से रोक देता| यह दिखाता है क्या रूतबा-रूआब रहा उदारवादी जमींदारों के सिस्टम का| यह तो पेशवाओं ने अपने अहम् में आ के मदद को आये महाराजा सूरजमल को ही बदनीयती दिखाई व् बंदी तक बनाने की हिमाकत की परन्तु महाराजा सूरजमल बच निकले उनके षड्यंत्र से; इसीलिए इतिहासकारों द्वारा एशिया के ओडीसूस व् प्लेटो कहलाये, लिखे गए| खैर, अपनी पीढ़ियों को यह गर्व का पन्ना जरूर पास करें; व् कुछ इसी अंदाज में पास करें कि वह अपनी किनशिप-कौम-कल्चर पर विजडम से भर जाएं! जय हो खाप-खेड़े-खेतों के इस सिस्टम की, जो ऐसे वक्तों में बैरी के भय से डर के दुबकने की बजाये, खापलैंड यानि दर पे पड़े घायलों की मदद को दौड़े| क्यों नहीं इस अध्याय को किताबों में पढ़ाया जाता? क्यों नहीं इस अध्याय पर फ़िल्में बन सकती व् क्यों नहीं इस अध्याय को भारत की संस्कृति की उच्चतम प्राकाष्ठा के उदाहरणों में जगह दी जाती? जय यौधेय! - फूल मलिक
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