जब आप अपनी पुरखाई पहचान, वंशानुगत इतिहास फंडियों की कह-सुन के निर्धारित करते हो या फंडियों के सुपुर्द कर देते हो तो आपके साथ यही बनती है जो आजकल कुंवर अनिरुद्ध के साथ बनी हुई है| इनके किले में एक लोह-स्तम्भ है व् अभी पिछले दशक ही पट्टिकाएं लगवाई हैं; जिनमें इनको यदुवंशी बताया गया है| और अभी की कुंवर अनिरुद्ध की एक नई ट्वीट में यह फंडियों के बहकावे में आ के खुद को कोई जादों क्लैन (आदर-सम्मान है इस सम्प्रदाय का भी) से बता रहे हैं| यानि दोनों ही लाइन इनको जाति से बाहर ले जाती हैं|
मुश्किल से युदवंशी वाली लैन को जाटों की स्थापित किया था इस राजघराने से चिपका के फंडियों ने, वह भी कई पीढ़ियां लगा के; परन्तु कुंवर की ताज़ी ट्वीट वाली नादानी इनको खुद ही उस क्लैन से हटा रही है| क्या यह कोई मजाक है कि जब मन किया यदुवंशी बन जाओ व् जब मन किया जादों|
यह ऐसा क्यों कर रहे हैं, यह इनका निजी विषय हो सकता है; परन्तु समाज यह समझ ले कि बहकावे में सिर्फ अनपढ़, कमअक्ल आदि ही नहीं आ सकते; पढ़े-लिखे शाही घराने वाले सबसे ज्यादा आते हैं|
दूसरा अर्थ यह है कि अपनी आइडेंटिटी अपनों से जानों, फंडियों से नहीं; फंडियों के लिखे गपोड़ों से नहीं; वरना खुद की जाति छोड़ कभी उस जाति से निकले बताओगे तो कभी उससे|
हालाँकि इस विषय पर अच्छा ख़ास बड़ा पोस्ट व् वीडियो तक बन सकता है, इतना कंटेंट है; परन्तु अपने हैं तो इतना ही लिखा जितने से बाकी की जनता उनकी पोस्ट देख के हताश ना हो व् अपने आपको स्पष्टीकरण दे सके, कुंवर की नादानी का|
इसलिए ना रियासत का नाम लिख रहा हूँ, ना और कोई अन्य बात; बस उतनी आइडेंटिटी से बात कह दी, जिससे पढ़ने वाला बात पकड़ जाए व् किसी को ठेंस भी ना लगे|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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