Saturday, 21 January 2023

बृजभूषण सरण इनको "जाति-विशेष" नहीं "सर्वखाप मिल्ट्री कल्चर" से ऑर्गेनिकली निकलने वाले पहलवान कहो!

बृजभूषण शरण द्वारा पहलवानों को "जाति-विशेष" का कहना इस आदमी की उस हताशा व् हीनता को दिखाता है जिसके तहत जब से (पिछले 11 साल से) यह रेसलिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (WFI) का अध्यक्ष चला आ रहा है तब से ले के आज तक; इसकी तमाम कोशिशों के बावजूद भी यह जाट-पहलवानों (इसके अनुसार "जाति-विशेष) के विल्कप नहीं ढूंढ पाया; ना तो इसके इलाके से और ना लगभग पूरे इंडिया से ही| इसकी इस हीन-भावना से पता चलता है कि इस आदमी ने कितनी कोशिशें नहीं की होंगी, "जाति-विशेष पहलवानों" जैसे ओलिंपिक मटेरियल ढूंढने की; व् शर्तिया बात है यह कि अगर इसको विकल्प मिल जाते तो पक्का; इसने जाति-विशेष पहलवान साइड करके, वह आगे बढ़ाने-ही-बढ़ाने थे| जो एक-दो आगे बढ़ भी पाए तो वह उसी हरयाणा देस (वर्तमान हरयाणा, वेस्टर्न यूपी के "सर्वखाप मिलिट्री कल्चर") के तहत गाम-गेल चलने वालों अखाड़ों से आते हैं जहाँ से तमाम जाति-विशेष के पहलवान निकलते हैं; अन्य जाति पहलवानों में उदाहरणार्थ योगेश्वर दत्त व् दिव्या काकराण|

हाँ, एक पहलवान मिला आज तक इसको पिछले 11 साल में भाई नर सिंह यादव (वह भी इसके वर्णवाद के ग्रसित सामंतवाद वाले गृह-जिलों व् इलाकों से नहीं); तो देख लीजिये उस पहलवान को इस आदमी ने कितनी गहरी राजनीति का शिकार बनवाया| पहले तो उसको सुशील कुमार से ट्रायल ना देने के लिए नए नियम लाया; उसपे भी सुशील कुमार के बार-बार कहने पर भी उसको बिना ट्रायल ही रियो में भेज दिया था व् इधर इस बहाने इसकी पोलिटिकल पार्टी ने जाट बनाम यादव व् तमाम अन्य वाली जो इनकी 35 बनाम 1 टाइप राजनीति चलती है; उसमें सारा खेल उलझा के रख दिया था|
जनाब आप जिस "विश्व की दुष्टम नस्लवाद व् अलगाववाद वाली वर्णवादी व्यवस्था" के प्रोडक्ट हो; उसके चलते आपसे ना प्रोडूस हो पाएंगे ओलिंपिक मटेरियल पहलवान; वरना कोई आदमी 11 साल से WFI का प्रेजिडेंट हो व् उससे एक ओलिंपिक मटेरियल प्रोडूस नहीं हो पाया, लखनऊ से पूर्व के इलाकों से; पूरे सिस्टम-तामझाम को 'जाति-विशेष" वालों के खिलाफ झोंके देने पर भी?
ऐसा है महाशय; ओलिंपिक मटेरियल प्रोडूस करने के लिए मनुवाद पर आधारित वर्णवादी व्यवस्था की दबी-कुचली मानसिकता से बाहर आना पड़ता है व् बच्चों की सोच स्टील-हार्ड बने उसके लिए "खापलैंड" के दो नियम खासतौर से गर्भ में पड़ते वक्त ही बच्चों को देने पड़ते हैं; एक "गाम-गौत-गुहांड" व् दूसरा "सर्वखाप मिल्ट्री कल्चर यानि गाम-गेल मिटटी के अखाड़े"; जहाँ बालक हठखेलियाँ भी मिटटी में लौट के करना सीखता है; और यह इकोसिस्टम बनता है "खाप-खेड़ा-खेत" की फिलॉसॉफी" से|
ऐसा है जब "जाति-विशेष" की बात कर ही दी है तो थोड़ा और सुन लो? तुम "क्षत्रिय" हो ना; वर्णवाद में जिनको तुमसे ऊपर वाले वर्ण का बॉडीगॉर्ड कहा जाता है? बेटा ऐसा है देश के लिए खेलने का ऐटिटूड इस वर्णवादी मानसिकता से नहीं निकल सकता; इसके लिए तो तुम सिर्फ उतने डेवेलोप हो पाते हो; जितना कि तुम्हें जिनकी बॉडी की रक्षा करनी है, उतने हो सको| इससे ज्यादा चाहिए तो उसके लिए ज्ञान मिलेगा यूनिवर्स के सिर्फ और सिर्फ "जट्टज्ञान" की फिलोसॉफी से; थोड़ा ठहर कर जाना करो इस बारे|
बल्क में ओलिंपिक मटेरियल (इक्का-दुक्का तो कहीं से भी निकल आते हैं, वह भी माँ-बापों की मेहनत ज्यादा व् सिस्टम की कम) चाहियें तो वर्णवाद से रहित उदारवादी सिस्टम में आओ; सामंती से नहीं आते इतने बल्क में पहलवान कि बाकी देश की धरती से 10-20% पहलवान भी नहीं निकाल पाते हो| अब ऐसे में "जाति-विशेष" से कुंठा ना होगी तो और क्या होगा? हमें सहानुभूति है आपसे जनाब|
हमारे पहलवानों समेत "खाप-खेड़ा-खेत" के लोगों से अपील: इस उदाहरण से आप समझ तो गए ही होंगे कि कैसे यह लोग हमारे इकोसिस्टम को तहस-नहस करने पर लगे हुए हैं? ओलिंपिक के लिए पहलवान या अन्य खिलाडी बनाने का काम इनको देना मतलब "बंदर के हाथ में बंदूक" देने जैसा है| क्योंकि वर्णवादी मानसिकता से ग्रस्त यह लोग यह नहीं देखते कि सामने ओलिंपिक मेडलिस्ट धरने पर बैठे हैं; देश की शान वाले हीरो बैठे हैं और वह अगर कोई ऑब्जेक्शन कर रहे हैं तो वह यूँ तो नहीं होगी? परन्तु उनको सीरियसली लेने की बजाये "जाति-विशेष" जैसी बात करने की लाइन पकड़ना; भविष्य में कुश्ती जैसे खेलों में देश की अंतराष्ट्रीय उपलब्धियों पर बंदूक चला देना है| क्यों, क्योंकि इनके लिए वर्णवाद सबसे बड़ी चीज है, राष्ट्रवाद तो सिर्फ पीपनी है; अंधभक्तों के लिए| वरना इनमें "राष्ट्रवाद" का जरा सा भी बीज होता तो एक कुश्ती जैसे किसी भी सिस्टम की खामियां दिखाने को उसकी टॉप क्रीम के बोलने से बेस्ट संदेश क्या हो सकता था कि सिस्टम में वाकई में गड़बड़ी है; उसको ठीक किया जाए? तो ऐसे में आप-हम का व्यक्तिगत दायित्व बनता है कि ना तो यह "मिल्ट्री-कल्चर" की किनशिप को टूटने देना है व् ना ही पहलवानों समेत तमाम समाज को किसी मानसिक व् सिस्टेमेटिक दबाव में आने देना है|
जय यौधेय! - फूल मलिक

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