सवाली: मिस्टर फूल मलिक, तुम नौसिखिया हो चुके हो, जो रोज-रोज खामखा के ऐसे त्यौहार घड़ ले आते हो जो पहले कभी थे ही नहीं! चाहते क्या हो तुम? ऐसे तो जिनको तुम फंडी बोलते हो उनमें व् तुम में क्या फर्क? आज ही देख लो, आज के दिन तुमने यह "सर्वखाप अनुकम्पा दिन" ला खड़ा किया? क्या औचित्य है इसका? हमें बाकी समाजों के साथ रहने दोगे या नहीं?
मैं: मखा, कैसे रहना चाहते हो तुम बाकी समाजों के साथ? 35 बनाम 1 झेलते हुए क्या? या अपने पुरखों वाली उस अणख के साथ जिसमें आज जो तुम पे शौक से 35 बनाम 1 किये हुए हैं, कल इन्हीं के पुरखे मजबूरीवश तुम्हारी स्तुति में तुम्हें "जाट जी" व् "जाट देवता" लिखते-कहते फिरते थे? ध्यान देना, मैंने मजबूरीवश लिखा है, इसका मतलब मुझे मेरे लिए तो यह भी नहीं चाहिए| परन्तु मुझ पर जो शौक से 35 बनाम 1 करना चाहेगा; उससे मैं उसकी मजबूरीवश "जाट जी" व् "जाट देवता" ही कहलवाना पसंद करूँगा; या मैं उससे बनिया-बाह्मण वाला समझौता जब तक नहीं होता तब तक नहीं रुकूंगा|
सवाली: बनिया-बाहमण वाला कौनसा समझौता?
मैं: मखा, बनिया बाह्मण को दान देता है तो बदले में क्या लेता है?
सवाली: क्या?
मैं: पता करो, फुल्ला जाट समझ आ जायेगा तुम्हें|
सवाली: समझना क्या है, तुम निरे फ्रॉड हो; तुम्हें हमें बरगलाने-बहकाने से मतलब है बस|
मैं: मखा, तुम अगर मेरे कहे से बरगलाये जा सकते हो तुम मेरे किसी काम के नहीं; कौम के भी किसी काम के नहीं!
सवाली: हमें पता है, जब धुन में आ के लिखते हो तो तुम्हारी कौन ही कलम पकड़ सकता है; इसीलिए यह शब्दों के जाल में मत घेरो मुझे व् सीधा-सीधा जवाब दो कि बनिया-बाह्मण का कौनसा समझौता?
मैं: बनिया बाहमण को धन देता है उसकी ब्रांडिंग व् बिज़नेस चलवाने के लिए! बाह्मण उस धन से मंदिर बनवाता है व् बदले में बनिये को ग्राहक देने के साथ-साथ सोशल उसकी सोशल रेपुटेशन की सिक्योरिटी की गारंटी देता है|
सवाली: सोशल रेपुटेशन की सिक्योरिटी की गारंटी?
मैं: देखा किसी दिन किसी बाह्मण मीडिया एंकर, पत्रकार, पंडत-पुजारी, महंत-संत को किसी बनिए या बनिया जमात की कोई बुराई करते हुए, उनके आंतरिक अथवा सामाजिक पहलुओं पर ऐसे ही टीवी डिबेट्स करवाते हुए, जैसे तुम्हारी खापों की मीडिया ट्रायल चलती आती हैं?
सवाली: हाँ, यह तो सही कही!
मैं: तो मखा थम कौनसा, धर्म के नाम पर बनिए से कम दान देते हो? मेरे ख्याल से कौम के स्तर पर देखो तो इंडिया की सबसे ज्यादा दान देने वाली कम्युनिटी हो?
सवाली: सो तो है|
मैं: तो फिर यही काम तुम भी ऐसा ही समझौता बना के क्यों नहीं करते? थारे पुरखों ने इसी शर्त पर तो इनके साथ 1875 में रहना स्वीकारा था, जब बाह्मणों ने तुम्हें "जाट जी", "जाट देवता" लिख गा कर तुम्हारी सोशल रेपुटेशन की ब्रांड की प्रमोशन करी थी| या तो यह कर, अन्यथा कम्युनिटी से बाहर दान नहीं देने पे कट लगाने का प्रचार चला लो|
सवाली: वह तो छलावा था हम से, हम को सिख धर्म में जाने से रोकने का| मूर्ख हो तुम फुल्ले जाट तुम्हें इतनी भी अक्ल नहीं| तुम तो वाकई में फ्रॉड आदमी हो|
मैं: मैंने कब कहा कि वह छलावा नहीं था; इसीलिए तो ऊपर लिखा "मजबूरीवश" किया गया था; तो यही तो वह मजबूरी बनाओ अपने पुरखों की तरह वाली| इनको डर नहीं बना के रखोगे अपने इनके जीवन में योगदान का व् उसकी जगह खुद को "फॉर-ग्रांटेड" इनके आगे परोस दोगे तो झेलोगे ही 35 बनाम 1|
पड़ रही है कुछ पल्ले या नहीं? ना बस तुम तो "जाटड़ा और काटड़ा, अपने को ही मारे" की तर्ज पर मेरे खस लो पहले|
सवाली: न्यू ना मानिये मेरे सवाल खत्म हो लिए; तुझे तो फ्रॉड साबित करके ही रहूँगा| तू यह बता इस नए त्यौहार का क्या फंडा निकाल के लाया है?
मैं: मखा नया कोनी, अधिक से उदारता के चलते; हमने अपने कीर्तिमानों को मनाने की रीत ही भुला दी थी; बस उसी को वापिस खड़ी करने की बात कहता हूँ; सर्वखाप अनुकम्पा दिन मना के| इससे वह जो तुम्हें 35 बनाम 1 में घोंट के चले हैं, उनके चंगुल से भोले लोगों को तो अपने पक्ष में निकाल लोगे अन्यथा न्यूट्रल कर लोगे; जो इस ड्रामे में बहके हुए तुमसे छींटकाये जा रहे हैं|
सवाली: मुझे नहीं लगता इससे कुछ हासिल होगा|
मैं: साइकोलॉजिकल वॉर गेम्स पढ़ो; वह ऐसे ही जीते जाते हैं|
सवाल: हम तो लठ की भाषा जानें, तेरी यह गपोड़-गप्प म्हारे पल्ले ना पड़ती|
मैं: मखा, मेरे होमवर्क की कॉपी फ्रीफंड में चेक करने वाला, मुझे तुझसे बेहतर कौन मिलेगा? इस रोल में ही रहना उम्र भर, व् अपनी इस आदत पर ही कायम रहना; फिर तुम्हें खुद अस्तित्व को मिटाने हेतु किसी लठ की भी जरूरत नहीं पड़नी; अगर तुम दिखती दिखाती हकीकत में हुई लड़ाइयों से जुड़े किस्से भी गपोड़-गप्प लगते हैं तो|
सवाली: बात्तां म्ह तो तू किसी ने जाने ना दे!
जय यौधेय! - फूल मलिक
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