Monday, 6 February 2023

सन 1881 के रोहतक गजटियर के अनुसार रोहतक में निम्नलिखित शहर/नगर होते थे!

बेरी, कलानौर, महम, काहनौर, सांघी, झज्जर, बहादुरगढ़, खरखौदा, बुटाना, गोहाना, बरोदा, मुंडलाना| 


इनमें काहनौर, सांघी, बुटाना, बरोदा, मुंडलाना आज गाँव कहलाते हैं; कौन जिम्मेदार है इस डिग्रडेशन का? 


और यही वजहें होती थी कि हमारे दादा खेड़े, "दादा नगर खेड़े" कहलाते आये हैं| अब सोचो तुमसे इसमें "नगर" शब्द हटवा सिर्फ "दादा खेड़ा" कहने की आदत किसने डाली? 


कभी सोचा करो इन बातों पर| शहरी मिजाज व् अंदाज के लोग थे थारे पुरखे, थम ग्रामीण कैसे बन गए? 


जब इन पे सोचना शुरू करोगे तो 35 बनाम 1 जैसे ड्रामे के सारे तार खुलते नजर आएंगे| व् जो धक्के से खुद को कबीला-कबीला करके सभ्यता के नाम पर जंगलों तक में धकेलने को उतारू हैं; उनको भी शायद कुछ समझ आये| वैसे भी कबीलों में गाम-गौत-गुहांड के नियम नहीं होते; तो ब्याह लो आपने बालक गाम-गौत में ही, के दिक्क्त सै? 


शुक्र है, यह अंग्रेज भले वक्तों में इन बातों को डॉक्यूमेंट कर गए, नहीं तो लोगों को उनके अतीत का सही आभास करवाना कितना मुश्किल काम होता; इन फंडियों की भरी गप-गपोड़ वाली पोथियों के बीच| 


आज की पीढ़ी की सोच की पंगुता का आलम इतना हो चुका हैं कि आगे तो क्या ही सभ्यता जोड़ेंगे; जो पुरखे खड़ी करके गए थे, उसी को संगवा लो तो गनीमत| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

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