फरवरी 2016 में नया ईजाद हुआ 35 बनाम 1 का प्रपंच, कईयों में आखिरी तीर व् आश की तरह आज भी बचा हुआ पाया गया है| ऐसे में हमने भी 2-4 गांव में इन प्रपंचियों के सपनों को कुछ निम्नलिखित तरीके से पानी पिलाया| 35 बनाम 1 बार-बार लिखूंगा तो लम्बा शब्द हो जाएगा, इसलिए इससे आगे इसको "फंडी" पढ़ें!
1) फंडी जब दलित/ओबीसी के यहाँ वोट मांगने जाता है तो कैसे मांगता है: "जाटों के जुल्मों तले कब तक दबे रहोगे?", "जाटों की दबंगई खत्म करनी है तो हमें वोट दो"|
2) फंडी जब जाट के यहाँ जाता है तो कैसे मांगता है: "जाट तो गाम का मोड़ हों सें; जाट बिना कौन गाम चला ले"; "जाट, तो म्हारे जजमान हो सें; थारे बिना म्हारा कौन काम चला दे"|
हमारी टीमों से मिले इस फीडबैक पर, हमने टीमों से कहा कि दलित/ओबीसी भाइयों व् जाट भाइयों में जो भी इनकी नस्लीय वर्णवादी व् स्वर्ण-शूद्र वाली अलगाववादी मति से वाकिफ है व् जो अभी भी सीरी-साझी कल्चर की अच्छाई से वाकिफ है उनसे सम्पर्क करो| व् दोनों ही तरफ कहो कि अबकी बार जब यह फंडी वोट मांगने आवे तो फ़ोन पे ऑडियो रिकॉर्ड कर लो| और ऊपर पाई गई बातें खासतौर से रिकॉर्ड करवानी हैं| कहीं एक ट्राई में काम चल गया; कहीं 3-4 ट्राई में बात बनी परन्तु जिन-जिन गांव में हमारी टीमों ने यह एक्सपेरिमेंट किया; वहीँ हमें ऑडियो रिकॉर्ड करने में सफलता मिली|
फिर हमने निर्धारित किया कि अपने-अपने गाम के व्हाट्स-ऐप ग्रुप्स में व् लोगों को व्यक्तिगत तौर पर यह ऑडियो इंटरक्रॉस पास कर दो; यानि दलित-ओबीसी भाइयों के यहाँ यह जो बोलते हैं; वह जाटों के नंबरों पे भेज दो व् जो जाटों के यहाँ बोलते हैं, वह दलितों के नंबरों पे भेज दो| जो जाट-दलित-ओबीसी सभी के कॉमन ग्रुप्स हैं, वहां सभी की भेज दो| दूसरा काम यह किया कि जो लोग "सीरी-साझी कल्चर" को आज भी पसंद करते हैं, उनको बैठकों में मुखर करवा दिया; परन्तु यह ध्यान रखते हुए कि वहां फंडी का कोई साथी न बैठा हो| यह काम हुआ और गाम में फंडी सरपंच कैंडिडेट्स की ऐसी सिट्टी-पिट्टी गुम हुई कि जिन भी गामों में यह एक्सपेरिमेंट किये; फंडियों की तगड़ी हार हुई|
इससे बड़ा कोई और तिलिस्म नहीं है इनके पास| यह खुद को जिस मैनीपुलेशन व् पोलराइज़ेशन के एक्सपर्ट बोलते हैं; वह यह इतना सा ही बुलबुला है| बस जरूरत है आप-हम जैसे समाज के लोकतान्त्रिक लोगों द्वारा इस ऊपर बताये तरीके से एक्टिव होने की| इन तरीकों से लड़ना होगा आज के दिन इनसे पार पाना है तो, ट्रैन कर लो खुद को इनपे वक्त रहते|
अभी हरयाणे में विधानसभा चुनाव भी आएंगे; व् यही फंडी केटेगरी अभी से एक्टिव भी चुकी है; सबसे ज्यादा करनाल लोकसभा में एक्सपेरिमेंट चल रहा है| वहां पर टारगेट है कि जाट व् रोड को एक नहीं होने देना है| इसके लिए रोड़ों को मराठा बता के उनको "मराठा प्राइड" की लाइन पे ले जा के जाट से तोडा जा रहा है| परन्तु मैं इस बिंदु पर रोड बंधुओं को संदेश दूंगा कि "मराठा प्राइड तो पेशवाओं के घमंड ने पानीपत में तोडा था; जब यह जाटों को दुत्कारते हुए खुद समेत आपकी बलि चढ़ा गए; ज़रा याद करें, उसके बाद आपकी, आपके महिला-बच्चों की क्या दुर्गति हुई थी? अगर यही जाट न होते तो पानीपत से ले भरतपुर तक कौन मदद करता; किसने फर्स्ट ऐड करी थी आपकी? किसने आपको अपनों की तरह अपना के अपने यहाँ अब्दाली से भय ना खाते हुए भी मदद की थी"? इसलिए उस वक्त भी आपने पेशवाओं ने प्रपंच में फंसा के मरवाया व् अभी भी आपके साथ यही छल हो रहा है; बचें इससे| व् जिस जाट के साथ कल्चर-खेती समेत हर आचार-व्यवहार है, उससे ऐसे छिंटकेंगे तो आपको छिंटकवाने वाले भी क्या ही कद्र करेंगे आपकी|
व् ऐसे ही बेहूदे तर्कों से बाकियों से तोड़ने की कवायदें फंडियों की लगातार जारी हैं|
इन बिरादरी सम्मेलनों से कुछ नहीं होना जाना; कुछ करना है तो इस लेख जैसे उदाहरण वाला करें, अपने-अपने एरिया में|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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