1 - दोनों में मर्द-पुजारी रहित धोक-ज्योत की परम्परा है| जैसे खापलैंड के दादा नगर खेड़ों-भैयों-भूमियों के मूल-सिद्धांत में मर्द-पुजारी कांसेप्ट नहीं है, ऐसे ही प्रोटेस्टेंट्स की चर्च में पादरी नहीं होते|
2 - दोनों के मूल सिद्धांतों में माइथोलॉजी नहीं मानी जाती|
3 - दोनों साइंटिफिक व् तार्किक रहे हैं|
4 - दोनों मूर्ती-पूजा को मिथ्या कहते हैं|
5 - दोनों जहाँ-जहाँ बसते हैं अथवा बसते आये हैं; वो उस देश-जगह के सबसे खुशहाल, वर्णवाद टाइप की बीमारी से न्यूतम ग्रस्त व् साधन-सम्पन्न इलाके हैं; जैसे इंडिया में खापलैंड व् मिसललैंड और यूरोप में नार्डिक देश (डेनमार्क, नॉर्वे, आइसलैंड, फिनलैंड), आयरलैंड, स्वीडन, इंग्लैंड, नीदरलैंड| वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स की लिस्ट में यही देश टॉप लिस्ट में हैं|
विशेष: इस पोस्ट से कोई यह बेसिरपैर मत मारना कि अब तुम हमें ईसाई बनाओगे क्या? मैंने सिर्फ एक रिसर्चर के तौर पर एक सकारात्मक पहलुओं की तुलनात्मक बात रखी है| इंडिया से इस पहलु पर कुछ वर्ल्ड स्टैण्डर्ड का है तो इन पैमानों से जीने वाले समाजों की यह थ्योरी उनमें से एक है|
सावधान: खापलैंड जो इन पहलुओं पर सदियों से जागरूक रही है व् इनसे मुक्त रही है; उसको अब फंडी पुरजोर लगा के इसी गर्त में खींच रहे हैं| प्रोटेस्टेंट्स ने इस गर्त से 1500वीं सदी में लगभग दो सदी के खून-खराबे के बाद छुटकारा पाया था; जबकि खापलैंड वालो आप कभी से इनसे मुक्त रहे हो| परन्तु अब इन्हीं में घेरे जा रहे हो; इसलिए सचेत-सतर्क-सावधान हो जाओ| वरना कोई फायदा नहीं, कि इन फंड-पाखंडों से मुक्त समाज-धरती को पहले ऐसी गर्त में डलवाने का व् बाद में अगली पीढ़ियां इसी से मुक्ति पाने को संघर्ष करने में अपनी जिंदगी खोवें; ऐसी स्थितियां उनको दे के मत जाओ|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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