Sunday, 5 March 2023

चुगली करने बारे औरतों को तो खामखा बदनाम किया, "ढोल-गंवार-शूद्र-पशु-नारी, सब ताड़ना के अधिकारी" लिखने की मानसिकता वालों ने; असली व् सबसे बड़े चुगलबाज तो यह खुद हैं!

यकीं ना हो तो देख लो आजकल हरयाणे म्ह|

2024 के लोकसभा व् विधानसभा चुनाव जीतने हेतु नीचे-नीचे फिर से वही जाट बनाम नॉन-जाट फैलाया जा रहा है और तरीका क्या है?
दलित-ओबीसी भाई के सामने: "जाटा कै के जड़ राखी सै चौधर, जाट फेर तें सत्ता में आ गए तो थमनें खा ज्यांगे (हाँ, जाणू आज तैं पहल्यां तो दलित-ओबीसी भाई इनके बसाए ही बसे जाटों के बीच सदियों से), थारा के जातीय प्राइड सै कोनी (हाँ, जाटां नैं तो पुणे के पेशवों की भांति गळे में थूक की हांडी व् कमर पे झाड़ू बाँध राखी थी, थारे बताने से पहले तक)|
और यही लोग जाट के आगे क्या बोलते हैं: भाई थम तो चौधरी सो समाज के, जजमान सो म्हारे; थारे बिना के सै म्हारे धोरै; जाट ना हो तो हम तो भूखे ही मर जावां आदि-आदि!
बस यही है इनका 35 बनाम 1 करने का तरीका; व् इसी तरीके में इसकी काट छुपी है; जो मैं व् म्हारी टीम प्रैक्टिकल करके के इसको फ़ैल करते रहते हैं व् जहाँ-जहाँ ट्राई किया जबरदस्त सफलता हाथ लगी|
तरीका क्या है?: जब यह दलित-ओबीसी-जाट किसी के भी आगे जाट बारे जो-जो कहने आवें, उसको चुपके से रिकॉर्ड कर लो व् व्हाट्स ऐप ग्रुप्स में वायरल कर दो| ताकि लोगों को खड़े-पां इनकी "कंधे से ऊपर की स्वघोषित मजबूती" के तुरता-तुरति दर्शन हो ज्यां| बस यही है इनकी तथाकथित कंधे से ऊपर की मजबूती| इनका सांग सिर्फ इतना सा है कि "अगला शर्मांदा भीतर बढ़ गया, और बेशर्म जाने मेरे से डर गया"| They survive nothing but your absence on this front to counter it और हद से ज्यादा थारी उदारवादिता; सुहान्दे-सुहान्दे उदारवादी रहो, for granted स्तर तक मत उदारवाद धारो|
व् आपकी इतनी सी सक्रियता इनको नाकों-चने चबवा सकती है|
इसलिए जो भी हरयाणा के मूल कल्चर-सिस्टम-भाषा से प्यार करने वाला हो, यह करे| यह तो ऐसे जाएंगे जहां से जैसे भेड़ों के सर से सींग|
दलित-ओबीसी भाइयों से अपील: कोरेगांव की घटना में पेशवाओं को तभी पराजित कर सके थे आप लोग, जब मराठे आपके साथ थे| हरयाणे में जाट वही हैं आपके लिए| इनसे इस चक्र में मत छिंटको कि म्हारी बेशक दोनों फूटें, परन्तु जाटां की एक फूट रही है, वह बहुत म्हारे लिए| यह सोच बहुत आत्मघाती है| जाट तो फिर भी इनके हमलों से बच निकलेंगे अंत दिन, पर जो अगर थम यूँ ही छिंटके रहे तो इनके द्वारा आपके लिए फिर वही महाराष्ट्र वाली गले में थूक की हांडी व् कमर पे झाड़ू तैयार मिलेंगी; जिनसे छूटने को फिर से जाट चाहिए होंगे| इसीलिए जाटों से अगर कोई चूक हो भी रखी है तो वक्त रहते बैठ-बतला के सुलटा लो; वरना 2024 में ये आये और सविंधान बदला| और उसके बदलते ही क्या लागू होगा, कहने की लोड कोनी|
और जाट समाज के भी जितने चिंतक हैं, कृपया इस पहलू पे ऊपर बताये तरीके से सक्रिय हो जाओ; वरना वक्त आप-हम पे भी बहुत भारी है अभी आगे|
जय यौधेय! - फूल मलिक

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