Tuesday, 30 May 2023

मैं "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों व् सर्वखाप पुरख यौधेयों/यौधेयाओं को साक्षी-हाजिर-नाजिर मान कर आज 30 मई 2023 को निम्नलिखित 7 आजीवन व्रत धारण करता हूँ!

भूमिका: मैंने मेरे अगले इंडिया दौरे पर मेरे गाम के "दादा नगर खेड़े बड़े बीर" पर उसको साक्षी करके जो खुद को "खाप-खेड़ा-खेत किनशिप (असल-नश्ल-फसल)" के नाम दान करने का कार्यक्रम बना रखा था; आज 30 मई 2023 को ही उसकी अनौपचारिक घोषणा करता हूँ; औपचारिक घोषणा जब भी इंडिया का अगला दौरा होगा तब करूंगा|
घोषणा की वजह: "खाप-खेड़ा-खेत" के दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान व् कल्चर में "बेटी का सम्मान" ऐसा सम्मान है जिस पर सिवाए न्याय के दूसरी कोई चीज कभी खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के इतिहास, दर्शनशास्त्र व् मनोविज्ञान में देखने को नहीं मिलती| इस कल्चर-किनशिप में पलते-बड़े होते हुए तो यह चीज देखी ही, साथ ही इस किनशिप का इतिहास भी इन्हीं तथ्यों की गवाही देता है| न्याय की जब बात आती है तो बेटियों का मुद्दा ऐसा रहा है कि अगर खापों को इसके लिए रियासतों की रियासतें, राजाओं के राज भी धूलधरसित करने पड़े तो किए गए| चोरी, डकैती, पैसे के लेनदेन, जमीन-जायदाद जैसे तमाम झगड़े-मसले एक तरफ व् बहु-बेटी के सम्मान की नाजुकता व् गंभीरता एक तरफ| चोरी-डकैती-जमीन-जायदाद में खापों ने बेशक 2-4 ऊपर नीचे करके फैसले करवा दिए हों परन्तु "बेटियों के सम्मान" पर सिवाए न्याय के कभी कोई फैसला करके नहीं उठी| और आज 30 मई 2023 को इसी कल्चर-किनशिप से आने वाली पहलवान बेटियां, किस तरह से अमेरिका के महान बॉक्सर मोहम्मद अली (कैसियस क्ले) की भांति मेडल्स नदी में बहाने तक की नौबत तक आ पहुंची; यही वह नाजुक वक्त है जब हमने अगर हमारी पुरख किनशिप की वर्तमान अवस्था में आई खामियों पर विचार कर इनको दुरुस्त करने हेतु कोई कदम नहीं उठाए तो यह चीजें उस भयावह रूप तक जा सकती हैं कि जिसका रास्ता आगे खापलैंड पर देवदासी प्रथा, सति प्रथा, प्रथमव्या व्रजसला नाबालिगा का शुद्धिकरण के नाम पर गैंगरेप और विधवा आश्रमों की झड़ी लगने के दौर में प्रवेश कर जाएगा| और इन चीजों का खापलैंड पर ऐतिहासिक तौर पर नहीं होना हमारी किनशिप का सबसे बड़ा मानवीय-सभ्य हासिल रहा है| यह हासिल अगली पीढ़ियों तक ज्यों-का-त्यों पहुंचे उसके लिए अब "हद होने तक" वाला वक्त आ पहुंचा है, व् इसमें मैं आज घोषित तौर पर खुद को अर्पित करता हूँ|
घोषणा: मैं "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों (जो गाम गेल गाम के प्रथम पुरखों द्वारा गाम की स्थापना के वक्त गाम की फिरनी में किसी मूर्ती रहित, प्रतिनिधि रहित, 100% औरत की धोक-ज्योत की अगुवाई में स्थापित किया होता है) व् सर्वखाप पुरख यौधेयों/यौधेयाओं को साक्षी-हाजिर-नाजिर मान कर मेरी पुरख किनशिप "खाप-खेड़ा-खेत" के संवर्धन हेतु निम्नलिखित आजीवन व्रत धारता हूँ:
1) मैं, खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के शुद्धतम रूप को अनवरत-आजीवन सिंचित-स्थापित-प्रोत्साहित-प्रचारित रखूंगा|
2) मैं, कभी भी मेरी किनशिप से बाहर-भीतर ऐसे व्यक्ति/समूह को कोई दान-दप्पा नहीं दूंगा जो उस दान से मेरी ही जड़ें खोदने के कार्यों के लिए जाना गया है या ऐसा होने का मुझे लेशमात्र भी अंदेशा है या उस दान से उसको मुझपर ही 35 बनाम 1 तरह के षड्यंत्र रचने का संबल अर्जित होता हो या मुझसे दान लेने हेतु मुझे कोई भय-लालच-द्वेष-क्लेश-कर्तव्य आदि दिखाता-करता है| मैं, मेरे निहित अथवा अर्जित दान-दप्पे लायक पैसे को मेरी किनशिप के कार्यों में मेरी देखरेख में लगाने-लगवाने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी वहन करता हूँ|
3) मैं, चार प्रकार की राजनीतियों यानि धर्म-राजनीति, सत्ता राजनीति, सामाजिक राजनीति व् आर्थिक राजनीति में इनके भीतरी-बाहरी सब पहलुओं पर मेरी किनशिप की सम्मानजनक भागीदारी व् उपस्तिथि जहाँ नहीं होगी, वहां सहमति-सहयोग नहीं दूंगा|
4) जिस प्रकार अच्छी फसल हेतु आवारा जानवरों से उसकी बाड़ जरूरी होती है, ठीक उसी प्रकार अपने असल (पुरख दर्शनशास्त्र व् मनोविज्ञान) व् नश्ल की भी दो पैरों रुपी आवारा जानवर यानि किसी भी जनसमूह में पाए जाने वाले फंडी-फलहरी से बाड़ करनी होती है| बिना किसी से राग-द्वेष-क्लेश पाले दूसरों से इसका आदर-सम्मान अथवा स्पष्टता स्थापित करते/करवाते हुए मैं इसकी सुनिश्चितता हेतु अनवरत कार्य करूँगा, व् इसको आगे बढ़ाऊंगा|
5) मैं किसी भी प्रकार के जातिवाद, वर्णवाद, धर्मवाद, नश्लवाद की अंधता से खुद को दूर रखूंगा व् इन सबसे ऊपर जरूरी मानवता को रखूँगा; परन्तु साथ ही मानवता के नाम पर अपनी किनशिप का गला घोंटने-घुंटवाने की अवस्था आने से पहले ही उसको नहीं आने देने के सर्व इंतजाम एक दूरदर्शी की भांति करके रखूँगा| मैं, नश्लीय गौरव व् आध्यात्मिक गौरव को व्यक्तिगत रखते हुए कभी भी इनको नफरत-हेय-तुलना आदि की वजह नहीं बनने दूंगा|
6) मैं मेरी किनशिप से एंटी अथवा अनजान व्यक्ति/समूह से प्रोफेशनल रिश्ते तक सिमित रहूँगा; दूसरों के कल्चर-किनशिप का हर वैधानिक मान-सम्मान करते हुए, मेरी किनशिप-कल्चर को अपने चित में हमेशा सर्वोपरि रखूंगा| अनजान या एंटी लोगों के बीच चित में सर्वोपरि व् अपनी किनशिप के लोगों के बीच अपनी किनशिप का अनवरत प्रचारक रहूँगा|
7) मैं मेरी किनशिप के बुद्धिवान-विवेकवान व् बुद्धिविहीन-विवेकहीन दोनों का बराबरी से सम्मान करूँगा व् दोनों को मानवीय पहलुओं समेत मेरी किनशिप में परिभाषित हर अपनापन बराबरी से दूंगा| व् मैं इस बात की क्रियान्विनयता मेरी किनशिप के ग्रामीण-शहरी-NRI हर स्तर पर बराबरी से करूंगा, उनकी अमीरी-गरीबी-हैसियत आदि पर समरूप रहते हुए करूँगा| व् यह सिद्धांत, इसी बराबरी से हर उस व्यक्ति/समूह के प्रति रखूंगा जो मेरी किनशिप से बाहर का भी होगा परन्तु मेरी किनशिप का आदर करने वाला व् उसको बराबर की अहमियत देने वाला होगा|
मुझे ऊपरलिखित बिंदुओं पर अपनी किनशिप की बाड़ करने/रखने तक सिमित रहना है व् इसके क्रियान्वयन हेतु मैं किसी भी प्रकार के राग-द्वेष-क्लेश-हेय आदि से दूर रहूँगा|
फ़िलहाल यही अनौपचारिक घोषणाएं करके, इन व्रतों को खुद पर धारण कर रहा हूँ| हो सकता है जिस दिन इनकी औपचारिक घोषणा करूँगा उस दिन इनमें और भी बिंदु शामिल हों|
उद्घोषणा: इस ऊपर लिखित व्रत-धारण पर नकारात्मक-सकारात्मक दोनों तरह की बातें सुनने को मिल सकती हैं| पॉजिटिव क्रिटिसिज्म का स्वागत रहेगा; नेगेटिव क्रिटिसिज्म करने वाले डेड-स्याणे यह सोच के तो क्रिटिसिज्म करें नहीं कि वह किसी के भी दिमाग की दही कर सकते हैं| ऐसे "दिमाग की दही करने वालों के दिमाग का यहाँ तसल्लीबख्श गोबर किया जाता है"| दही तो कोई खा ले, उसकी लस्सी बना ले, घी बना ले परन्तु गोबर का क्या करोगे जो ना खाने का ना बगाने का| और जिसको हो शौक अपने दिमाग का गोबर करवाने का, वह कर ले इस पोस्ट का नेगेटिव क्रिटिसिज्म; जो ना ऐसा महसूस हो तो कि कित भींत म्ह टक्कर मारुं सूं|
जय यौधेय! - फूल मलिक

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