Sunday, 18 June 2023

पिछले 150 सालों में खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के समाजों का आध्यात्मिक सफर व् इसमें पड़े पड़ाव!

1) 1875 से पहले दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों का धर्म-वर्ण-जाति रहित धोक-ज्योत सिद्धांत ही इस किनशिप का सबसे बड़ा आध्यात्म था या गैर-वर्णवादी संतों की ही मान्यता थी| इसी वजह से ना यहाँ कभी देवदासियां पनपी, ना विधवा-आश्रम पनपे, ना सतिप्रथा रही व् ना ही प्रथमव्या व्रजसला लड़की को धर्म के नाम पर शुद्धिकरण को धर्माधिकारियों द्वारा उनके गैंगरेप हुए| 

2) यह कोशिशें हुई या इस किनशिप को जलील किया गया तो यह किनशिप बजाए वर्णवादियों के चंगुल में फंसने के इस्लाम या सिख धर्म अपनाना शुरू करने लगी| कैथल-करनाल तक जब सिख धर्म बढ़ता चला आया तो 1875 में इनको खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के केंद्रबिंदु यानि दादा नगर खेड़ों के मूर्तीरहित-पुजारीरहित सिद्धांत पर आधारित मूर्ती-पूजा नहीं करने के सिद्धांत का आर्य-समाज लाया गया| इसके यहाँ इतना सुपरहिट होने की वजह ही यह थी कि इसका मूर्तिपूजा नहीं करने का सिद्धांत दादा नगर खेड़ों के मूर्तिपूजा नहीं करने के सिद्धांत से उठाया गया था; वरना महर्षि दयानन्द के किसी विशेष ज्ञान की वजह से यह फैलाना होता तो आर्यसमाज सबसे ज्यादा उनके गुजरात में फैलता| इसमें राम व् कृष्ण को कोई अवतार ना बता के महापुरुष बताते हुए, इन समाजों में इनकी एंट्री की शुरुवात हुई; व् सॉफ्ट-माइथोलॉजी उतारनी शुरू की गई; अवतार नहीं अपितु महापुरुष बता के| 

3) फिर कालिकारंजन कानूनगो व् ठाकुर देशराज जैसे जाट इतिहासकार; शिवजी की जटाओं से जाटों के पैदा होने का कांसेप्ट ले आते हैं; बीसवीं सदी की शुरुवात में|  

4) 1987 तक खेड़े व् शिवाले यहाँ सबसे बड़े रहे; तब 1987 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व् टीवी माइथोलॉजी के अंधाधुंध प्रसार में वरदान साबित हुआ व् रामानंद सागर की रामायण व् बीआर चोपड़ा की महाभारत आई| व् लोग इनमें काल्पनिक कहानियों में अपने वंश तक ढूंढने व् जोड़ें लगे| यही वह दौर था जब धर्म-कर्म में आर्य समाज व् खेड़ों के जरिए किसी एक जाति की मोनोपॉली नहीं अपितु हर जाति में शास्त्री थे| जाट जैसी जातियों में आज जो 40-50 साल से ऊपर की उम्र के हैं, इनके 70% के ब्याह-फेरे इनके ही घर-कुनबे के बड़े दादा-ताऊ शास्त्री यानि जाट के ही करवाए हुए हैं व् ऐसे ही अन्य जातियों में| 

5) फिर आई 2014 में तथाकथित वर्णवादियों की सरकार व् इन्होनें सबसे पहला जो काण्ड किया वह यह धर्म-कर्म की मोनोपोली बनाने हेतु "फरवरी 2016 करवाया" जिससे 35 बनाम 1 हुआ व् तमाम किसान-ओबीसी जातियों के कर्म-कांडी शास्त्री वर्ग को मानसिक रूप से डराया व् साइड करवाने की मुहीम चली| जो अब तक लगातार जारी है व् इस हद तक जा चुकी है कि अगर यह लोग जल्द सत्ता से बाहर ना किये गए तो "सविंधान" हटा के "मनुवाद" घोषित रूप से लागू किये जाने को तैयार समझो| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

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