शिवाजी ने ताकत के बल पर संगठन खड़ा कर लिया और भूभाग पर कब्जा भी कर लिया था लेकिन मध्यकालीन चातुर्वर्ण व्यवस्था के मुताबिक ब्राह्मण व क्षत्रिय ही राजा बन सकते थे।क्षुद्र को राजा नहीं माना जाता था।
ब्राह्मण व क्षत्रिय के अलावा जो भी राजा उभरता तो ब्राह्मण व क्षत्रिय उसका विरोध करते थे।औरंगजेब के सहयोग से राजा जयसिंह ने महाराष्ट्र के ब्राह्मणों को शिवाजी का राज्याभिषेक न करने के लिए "कोटि चण्डी"यज्ञ कराया था जिस पर 2करोड़ रुपये खर्चा हुआ।
महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने शिवाजी का राज्याभिषेक नहीं किया तो शिवाजी ने गागा भट्ट नामक नांदेड़ मूल के ब्राह्मण को,जो बनारस में रह रहे थे,भारी दक्षिणा का लालच देकर बुलाया और राज्याभिषेक कराया।
उच्च मराठा भी शिवाजी को राजा स्वीकार नहीं कर रहे थे।अहमदनगर के आसपास 96 परिवार जिनके पास राज्य भी नहीं था लेकिन खुद को क्षत्रिय कहते थे और शिवाजी को राजा नहीं मानते थे।
शिवाजी ने पुणे का राजकार्य एक ब्राह्मण को सौंप दिया था।उनकी कैबिनेट में ब्राह्मण मंत्री बनाये गए।44 की उम्र में मौंजी बंधन संपन्न कराया।दुबारा मंत्रोंच्चार के साथ शादी की।राजा बनने के लिए सबकुछ किया लेकिन स्थापित क्षत्रियों व बहुसंख्यक ब्राह्मणों द्वारा आलोचना जारी रही।
शिवाजी ने अपने वंशावली लिखवाई और खुद को मेवाड़ के सिसोदिया राजपूतों का वंशज लिखवाया ताकि वो क्षत्रियता हासिल कर सके।मध्यकाल में ब्राह्मण व क्षत्रिय वर्ग के अलावा जो भी राजा उभरे उनको चातुरवर्णीय व्यवस्था के हिसाब से राजा नहीं माना जाता था सबको शिवाजी की तरह विरोध का सामना करना पड़ा था।
यहां तक कि नेपाल के राजा भी खुद की वंशावली में उद्भव मेवाड़ के सिसोदिया वंश से बताते है।हालांकि अकबर के दरबारी कृष्ण भट सेशा ने अपनी किताब शुद्राचार शिरोमणि में लिखा था कि परशुराम द्वारा क्षत्रिय संहार के बाद कोई क्षत्रिय नहीं बचा था फिर भी उस समय मुगलों के सहयोग से राजपूत पूर्णतः ब्राह्मणों के नियंत्रण में नहीं रहे व खुद को क्षत्रिय कहलाने में कामयाब रहे।क्षुद्रों को रोकने के लिए ब्राह्मण भी राजपूतों का सहयोग बीच-बीच मे लेते रहे।
विजयनगर के द्रविड़ राजा व भरतपुर के जाट राजाओं को भी इसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ा था।इसलिए क्षत्रियता हासिल करने के लिए इन्होंने भी वंशावली लिखवाई थी जिसमे बालचंद के पीछे का कुछ नहीं लिखा है।ऐसा लिखा मिलता है कि बालचंद की राजपूत पत्नियों के कोई बच्चा नहीं था और जाट पत्नी से जो बच्चा पैदा हुआ उससे भरतपुर राजवंश स्थापित हुआ।
भरतपुर में जो सिनसिनवार जाट है उनकी उत्पत्ति जदु वंशी मानी जाती है और इनका यहां तक पहुंचने का रास्ता गजनी,सियालकोट,लाहौर से होते हुए है।जदु को यदु व जदुवंशी को यदुवंशी लिखना सरल था इसलिए कई दरबारी इतिहासकारों ने मिथिहास लिख दिया।
करौली के राजपूत राजा जादौन वंशी कहलाते थे।इसी बनावटी वंशावली में खुद को इस राजपूत घराने से संबंधित लिखवा लिया था।इसी वंशावली का सहारा लेकर यह अनिरुद्ध सिंह कह रहा है कि हम करौली वालों के वंशज है।खुद के राज परिवार को क्षत्रिय बताने के लिए एक नई वंशावली लिखवाकर सिसोदिया वंश से जुड़वा ले लेकिन बाकी सारे सिनसिनवार गोत्र का बाप दूसरा बताकर यह बदनाम नहीं कर सकता।
डी एन ए जब बदलता,बदल जात है अंश!
हिरण्याक्ष के प्रह्लाद हुए, उग्रसेन के कंस!!
जिस मजबूरी में लिखी गई वंशावली को फाड़कर फेंकना था उसी वंशावली को आधार बनाकर पूरे वंश,गोत्र,समाज पर कालिख पौतने की इस तरह की हरकत इस युग मे कोई मानसिक गुलाम ही कर सकता है!
प्रेमसिंह सियाग
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