भरतपुर आले ज़ाट, कैप्टन पीटमेन क़ो लड़ाई में मारते हुये, सन 1825-26 ऐंग्लो-जाट वॉर पेंटिंग।
भरतपुर के जाटो में आजादी का स्वभाव जन्म से ही है। मुगलों के अत्याचारों से बगावत हो या 1805 में अंग्रेज सेना से युद्ध। हर मैदान को भरतपुर ने जज्बे से जीता है।
तत्कालीन गीतकारों ने इसे अपने शब्दों में भी ढाला। इस भूमि के कण-कण में शूरता, वीरता और पराक्रम को लेकर ब्रज भाषा के सुपरिचित कवि वियोगी हरि ने लिखा था...
भरतपुर की मर्दानगी की कहानी अंग्रेजों को अच्छी तरह मालूम थी। वर्ष 1805 में जसवंत राव होलकर का पीछा करते हुए लार्ड लेक भरतपुर आया तो महाराजा रणजीत सिंह ने होलकर को सौंपने के बजाए युद्ध करना बेहतर समझा। शरणागत की रक्षा में हुए इस युद्ध ने भरतपुर को ख्याति दिलाई, क्योंकि इसमें अंग्रेज सेना को भारी हानि उठानी पड़ी थी।
करीब दो महीने चले इस युद्ध में अंग्रेज सेना के 3 हजार 203 सैनिक मारे गए और करीब 8 हजार सैनिक घायल हुए थे।
कर्नल निकलसन ने अपनी पुस्तक नेटिव स्टेट आफ इंडिया में लिखा है कि जो नीति भरतपुर के राजा ने अपनाई उससे उनको माली घाटा तो बहुत हुआ। लेकिन, जाटों को कीर्ति, प्रसिद्धि और गौरव मिला।
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