Tuesday, 28 November 2023

दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम!

 दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम का जन्म 28 नवम्बर 1861 को जाट परिवार के लाम्बा गोत्र में अलखपुरा गाम बवानीखेड़ा तहसील जिला भिवानी में हुआ। इनके पिता का नाम चौधरी सालिगराम था जोकि एक जमींदार थे।


सेठ छाजूराम का विवाह सांगवान खाप के हरिया डोहका गाम जिला भिवानी में कड़वासरा खंडन की दाखांदेवी के साथ हुआ था| लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इनकी पत्नी का देहांत हैजे की बीमारी के कारण हो गया। दूसरा विवाह सन् 1890 में भिवानी जिले के ही बिलावल गांव में रांगी गोत्र की दाखांदेवी नाम की ही लड़की से हुआ| लेकिन बाद में उनका नाम बदलकर लक्ष्मीदेवी रख दिया गया| इन्होंने आठ संतानो को जन्म दिया, जिनमें पांच पुत्र व तीन पुत्रियां हुईं, लेकिन चार संतानें बाल्यावस्था में ही ईश्वर को प्यारी हो गई| सबसे बड़े सज्जन कुमार थे, जिनका युवावस्था में ही स्वर्गवास हो गया। उसके बाद दो लडक़े महेंद्र कुमार व प्रद्युमन कुमार थे। उनकी बड़ी बेटी सावित्री देवी मेरठ निवासी डॉ. नौनिहाल से ब्याही गई थी।


चौधरी छाजूराम ने अपने प्रारंभिक शिक्षा बवानीखेड़ा के स्कूल से 1877 में प्राप्त की। मिडल शिक्षा भिवानी से 1880 में पास करने के बाद उन्होंने रेवाड़ी से मैट्रिक(दसवीं) की परीक्षा 1882 पास की। मेधावी छात्र होने के कारण इनको स्कूल में छात्रवृतियां मिलती रहीं लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। इनकी संस्कृत,अंग्रेजी,हिंदी और उर्दू भाषाओं पर बहुत अच्छी पकड़ थी।उस समय भिवानी में एक बंगाली इंजीनियर एसएन रॉय साहब रहते थे, जिन्होंने अपने बच्चों की ट्यूशन पढ़ाने के लिए चौधरी छाजूराम को एक रूपया प्रति माह वेतन के हिसाब से रख लिया। जब सन् 1883 में ये बंगाली इंजीनियर अपने घर कलकत्ता चले गए तो बाद में चौधरी छाजूराम को भी कलकत्ता बुला लिया। जिस पर इन्होंने इधर-उधर से कलकत्ता के लिए किराए का जुगाड़ किया तथा इंजीनियर साहब के घर पहुंच गए। वहां भी उसी प्रकार से उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। साथ-साथ कलकत्ता में मारवाड़ी सेठों के पास आना-जाना शुरू हो गया, जिन्हें अंग्रेजी भाषा का बहुत कम ज्ञान था। लेकिन चौधरी छाजूराम ने उनकी व्यापार संबंधी अंग्रेजी चिट्ठियों के आदान-प्रदान में सहायता शुरू की, जिस पर मारवाड़ी सेठों ने इसके लिए मेहनताना देना शुरू कर दिया। थोड़े से दिनों में चौधरी छाजूराम मारवाड़ी समाज में एक गुणी मुंशी तथा कुशल मास्टर के नाम से प्रसिद्ध हो गए।इन्हें जूट-किंग भी कहा जाता था।चौधरी छाजूराम लाम्बा कलकत्ता के 24 बड़ी विदेशी कम्पनियों के शेयर होल्डर थे। इनसे चौधरी साहब को 16 लाख रुपए प्रति वर्ष लाभ मिलता था।

एक समय में इनकी सम्पति 40 मिलियन को पार कर गयी थी|

इन्होंने 21 कोठी कलकत्ता में (14 अलीपुर, 7 बारा बाजार) में बनवायी| इन्होंने एक महलनुमा कोठी अलखपुरा में व एक शेखपुरा (हांसी) में बनवायी| चौधरी साहब ने हरियाणा के पांच गाँव भी खरीदे तथा भिवानी, हिसार और बवानीखेड़ा के शेखपुरा, अलीपुरा, अलखपुरा, कुम्हारों की ढाणी, कागसर, जामणी, खांडाखेड़ी व मोठ आदि गाँवों 1600 बीघा ज़मीन भी खरीदी| इनके पंजाब के खन्ना में रुई तथा मुगफली के तेल निकलवाने के कारखाने भी थे| उस जमाने में रोल्स-रॉयस कार केवल कुछ राजाओं के पास होती थी, लेकिन यह कार इनके बड़े बेटे सज्जन कुमार के पास भी थी|


कलकत्ता में रविन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन विश्वविद्यालय से लाहौर के डीएवी कॉलेज तक उस समय ऐसी कोई संस्था नहीं थी, जिसमें सेठ छाजूराम ने दान न दिया हो।

हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना में दिल खोल कर दान दिया ।1909 में भिवानी में अनाथालय  खोलने में दिल खोलकर दान दिया। 1925 में कालिका रंजन कानूनगो द्वारा जाटों का इतिहास प्रकाशित करने के खर्च का एक बड़ा हिस्सा चौधरी छाजूराम जियों ने वहन किया। 

सेठ चौधरी छोजूराम ने 1928 में पांच लाख रूपए की लागत से अपनी स्वर्गीय बेटी कमला की यादगार में लेडी हैली हॉस्पीटल बनवाया, जिस जगह पर आज भिवानी में चौधरी बंसीलाल सामान्य अस्पताल खड़ा है।

चौधरी साहब ने रोहतक में जाट एंग्लो वैदिक हाई स्कूल की स्थापना में 61000 का योगदान दिया और मंच से घोषणा की जो बच्चा मैट्रिक में प्रथम रहेगा उसे एक सोने का मेडल ओर 12 रुपए मासिक वजीफा दिया जाएगा 

यह सम्मान चौधरी सूरजमल हिसार ने प्राप्त किया था

सन् 1918 में हिसार में सी ए वी स्कूल की स्थापना में 61000 हजार दान दिया, हिसार में जाट एंग्लो वैदिक हाई स्कूल की स्थापना में 500000 rs दान दिया,

ऐसे न जाने कितने समाजिक कार्यो में चौधरी साहब ने लाखों 

दान दिए।

गांधी जी के हर आंदोलन में सबसे बड़ा दान चौधरी छाजूराम लाम्बा जी देते थे।

सुभाष चन्द्र बोस  को भी उनके द्वारा चलाए गए आजादी के हर आंदोलनों में सबसे अधिक दान देते थे।।

भरतपुर के महाराजा सर कृष्ण सिंह को 1926 में 2,50 लाख की भेंट दी ।

17 दिसंबर 1928 को सांडर्स की हत्या के बाद सरदार भगतसिंह और भाभी दुर्गा सेठ छाजूराम की कोठी कलकत्ता में लगभग ढ़ाई महीने तक रूके थे।

क्रांतिकारी भगतसिंह को चौधरी साहब की धर्मपत्नी लक्ष्मी स्वयं बना कर भोजन देती थी।

चौधरी साहब की मुलाकात गाजियाबाद स्टेशन पर दीनबंधु चौधरी छोटूराम से हुई।इस मुलाकात में ही चौधरी साहब ने दीनबंधु छोटु राम का पढ़ाई का सारा खर्च उठाने की हा की

छोटूराम ने चौधरी छाजूराम को धर्म का पिता मान लिया। इन्होंने रोहतक में चौ. छोटूराम के लिए नीली कोठी का निर्माण भी करवाया।  छोटूराम दीनबंधु नहीं होते और यदि दीनबंधु नहीं होते तो आज किसानों के पास जमीन भी नहीं होती। चौधरी छाजूराम नही होते तो भगतसिंह लोगो मे देशभक्ति की आग न लगा पाते

चौधरी छाजूराम लाम्बा न होते तो सुभाष चन्द्र बोस आजाद हिंद फौज को सुचारू रूप से नहीं चला पाते 

चौधरी छाजूराम लाम्बा न होते तो महात्मा गांधी अंग्रेजो के खिलाफ जनमानस की आवाज न उठा पाते।


चौधरी छाजूराम के बड़े पुत्र सज्जन कुमार बहुत ही होनहार थे| वह चौधरी साहब का व्यापार संभालने में भी माहिर थे, लेकिन 27 सितंबर 1937 को जब उनकी अकस्मात मौत हुई तो इस हादसे ने चौधरी साहब को अंदर से तोड़ दिया| और फिर 7 अप्रैल 1943 को चौधरी साहब लंबी बीमारी के कारण दुनिया को छोड़ के चले गए।आज चौधरी साहब की जयंती है।

पोस्ट को लिखने वाला - सागर खोखर


अपनी युवा पीढ़ी को पुरखो से अवगत कराएं। आज समाज को सेठ छाजूराम लाम्बा जी जैसे दानवीरों की जरूरत है

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